
यह भारत और मध्य एशिया में पाया जाता है। यह एक नर इंडियन गोल्डन ओरियल है। मादा ओरियल इतनी चटख पीली नहीं होती, उसकी आंखों में ऐसा कथकली वाला बड़का सा काजल नहीं होता है। इनका प्रजनन काल जून जुलाई का होता है।

इसे पतिंगा या पतरंगा भी कहते हैं इसे। छत्तीसगढी गीतों में इसके स्त्रीवाची रूप में पतरेंगी कहा गया है। पतरेंगी शब्द को यहां प्रेयसी के लिए उपमा के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। ये कार्तिक में दिखते है और उधर मार्च के बाद गायब हो जाते हैं। इनकी उड़ान देखने योग्य होती है। पंख तानकर, सीधे ऊपर और एकदम से सीधे नीचे आते ये सुखोई फाइटर प्लेन की तरह लगते हैं।



Pied myna (एशियन मैना)

महोक (Greater Coucal)
गांव कस्बों में ये पक्षी हमेशा दिखते हैं और अपनी विशिष्ट आवाज से वातावरण सुखद बनाये रखते हैं। अपनी आवाज चोंच बन्द करके निकालता है। पहले गले मे सांस भर लेता है फिर हूप हूप या कूप कूप जैसी आवाज निकालता है। महोक को भारद्वाज पक्षी भी कहते हैं। हो सकता है कि भारद्वाज गोत्र का यही पक्षी टोटम या प्रतीक हो। कोयल परिवार का यह पक्षी अपने अंडे खुद ही सेता है। जहां इसका रंग चमकीला काला होता है वहीं इसके पंख भूरे होते हैं। सारे भारत मे पाए जानेवाले इस पक्षी का आकार काले कौव्वे से थोड़ा बड़ा होता है।

भारत मे कोयल झारखंड का राजकीय पक्षी है। कोयल का सामाजिक व्यवहार बड़ा रोचक है। पत्तों के बीच छुप छुप कर गाते मधुर आवाज वाले इस पक्षी के सौम्य और शर्मीले व्यवहार की हम कल्पना करते हैं जबकि यह हिंसक और कटु व्यवहार का होता है। यह नीली आभा लिए काले पंखों वाला होता है। यह इतना शातिर है कि मादा कोयल के अंडों को दूसरे पक्षी के घोंसले में छोड़ आता है और वह पक्षी बाकायदा उन अंडों को सेता है। कैम्ब्रिज विवि के शोध में पाया गया है कि इसने खुद को ऐसा विकसित किया है कि इससे दूसरे पक्षी डरते हैं। इसकी लाल इस बात की तकसीद करती हैं।

इस सुंदर बारबेट का चेहरा यूं लगता है जैसे कथकली करने के लिए तैयार है। सन्नाटे में ऐसी आवाज आये कि लगे तांबे को कोई हौले हौले ठोक रहा हो तो समझिए यही जनाब हैं।

चलत मुसाफिर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया… इस गाने में जो मुनिया है, यही पक्षी है।
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