डॉ. अतुल चतुर्वेदी II
उन पर बेशर्मी की मजबूत लोई थी। वो जब-तब उसे मौका देखकर ओढ़ लेते थे । अलबत्ता नकटाई का मूल स्वभाव न छूटता था । वैसे भी बेशर्मी का कंबल, लोई या दोहर टाइप का आइटम निकृष्टता के तंतुओं से बुना हुआ होता है कि उस पर दो-चार व्यंग्य बाणों, तानों तीखे वाक् प्रहारों का असर आसानी से होता नहीं है । वस्तुत: यह एक इनबिल्ट संस्कार है जो दया, मानवता, परोपकार की तरह बाल्यावस्था से ही अपनी दिव्य प्रतिभा का प्रदर्शन जीव मात्र में दर्शाने लगता है । बेशर्म व्यक्ति जमाने को ठेंगे पर रखता है और उसका चित्त नित्य नूतन कारगुजारियों के संधान में प्रवृत्त रहता है । वो अपमान प्रूफ होता है, निंदा की आंधियां उसका बालबांका भी नहीं कर पातीं । उसे स्वाभिमान से चिढ़ होती है । उसका आत्माभिमान, अहं आदि से छत्तीस का आंकड़ा होता है । उसके जिस्म में एक विशेष किस्म का लचीलापन होता है और रीढ़ की हड्डी में पर्याप्त प्रत्यास्थता होती है । वो रीढ़ की हड्डी को मात्र एक सीढ़ी की तरह मानता है बल्कि एक बोझ ही मानता है काया में। न कि व्यक्तित्व की पहचान का हिस्सा । उसके लिएओढ़ी हुई विनम्रता ही वो पूंजी है जिससे नकटाई के प्रतिस्पर्धी बाजार में आप लंबे समय तक कुशलता से टिके रह सकते हैं । इस विनम्रता को वो रिरियाने के लिजलिजे स्तर तक ले जाता है और सौ प्रतिशत सफलता की गारंटी तय कर लेता है ।
अंतत: सामने वाला नि:शस्त्र हो ही जाता है आखिर कब तक आपकी चिकनी त्वचा पर उसके क्रोध का पानी ठहरेगा? आप तो घड़े हो गए हैं निर्लज्जता के । कितना भी पानी डालो आपकी चिकनाई के आगे क्या ठहर सकता है भला । यह चिकनाई ही आपके धंधे में इजाफा करती है । मार्केटिंग और सेल्स की दुनिया का लंबा-चौड़ा व्यापार इसी मूलमंत्र पर टिका है । लीड मिलते ही चिपक जाओ …छोड़ो मत क्लाइंट को । समझो वो एक भेड़ है और तुम भूखे व्याघ्र । उसे अपनी भोजन का ग्रास बनाना ही है । डरो मत, पूरी बेशर्मी से पीछे लग जाओ … दुत्कारने की चिंता न करो । फोन नंबर बदल बदल के प्रयास करो, तरह तरह की स्कीमें दो । उसके परिवार से ही क्या कुत्ते से भी प्यार से पेश आओ । यथासंभव जरूरत अनुसार खींसे निपोरो, रीढ़ की हड्डी क्षैतिज ही रखनी है सदा… हो सके तो चरणों में लोट जाओ । कोई बात नहीं यदि वो एक दो मुष्टिका प्रहार या व्यंग्य वर्षा करे तो । तुम पर तो है ही कवच बेशर्मी का । जिनके आत्मा नाम की चीज होती है डरते वो हैं । आपके साथ ऐसा कोई संकट कभी रहा ही नहीं । जमीर हो तो बचाया जाए न । यहां तो निरन्तर कामनाओं का खमीर उठता रहता है । और फिर उससे प्रलोभन की चाशनी में तर जलेबियां उतरती रहती हैं ।
यही जीवन है । लगातार कामनाओं के मृगों के पीछे बावले सा भागना । एक के बाद दूसरा तृष्णा अभियान । प्यास जी हां प्यास ही इंसान को बड़ा बनाती है । हमारे नकटेप्रसाद जी ने जीवन में इसी महामंत्र को आत्मसात कर तरक्की के परचम गाढ़े हैं । क्रोध उन्हें आता नहीं , विरोध वो कभी करते नहीं । तालमेल से लेकर घालमेल तक उनके व्यक्तित्व की विशेषता है । नया अधिकारी हो , नयी जिम्मेदारी हो या नया वातावरण बिना कुछ किये धरे वो समन्वय बैठा लेते हैं । आप गाली बक लें, हाथ छोड़ दें वे उफ तक नहीं करेंगे । ऐसी धैर्यशील, मनस्वी आत्मा हैं वे । एक दिन आप ही उनका मामला रफा-दफा करेंगे आखिर में । राग-द्वेष से ऐसा लगता है ऊपर उठ चुके हैं काफी । ऐसा भी नहीं है कि इस सब प्रयासों से वे सुधर जायेंगे… कदापि नहीं । उनका लापरवाह रवैया और उदासीनता का आचरण बादस्तूर जारी रहेगा । लेकिन बड़ी बड़ी भंवरों में भी संयम की पतवार नहीं छोड़ते । एक से एक खुर्राट अफसर ग्लेशियर बना के निकाल दिए ।
- बेशर्म व्यक्ति जमाने को ठेंगे पर रखता है और उसका चित्त नित्य नूतन कारगुजारियों के संधान में प्रवृत्त रहता है । वो अपमान प्रूफ होता है, निंदा की आंधियां उसका बालबांका भी नहीं कर पातीं उसे स्वाभिमान से चिढ़ होती है । उसका आत्माभिमान, अहं आदि से छत्तीस का आंकड़ा होता है । उसके जिस्म में एक विशेष किस्म का लचीलापन होता है और रीढ़ की हड्डी में पर्याप्त प्रत्यास्थता होती है । वो रीढ़ की हड्डी को मात्र एक सीढ़ी की तरह मानता है बल्कि एक बोझ ही मानता है काया में। न कि व्यक्तित्व की पहचान का हिस्सा ।
वे बेशर्मी को अमोघ अस्त्र मानते हैं आज के युग का । उनका स्पष्ट विचार है कि ज्यादा सेंसिटिव बंदा और कुछ नहीं ब्लड प्रेशर की गोलियां खाता है बस । जमाना खुद्दारी का नहीं, होशियारी और गद्दारी का है । अवसर की डाल देख कर फुदक के बैठ जाओ यही समय की मांग है । सिद्धान्त, मूल्य और विचार आदि सब पुराने अचार की तरह हैं जिन पर अब उपेक्षा की फफूंद लग चुकी है । इसे अब मन की रसोई से हटाने का समय आ गया है । एडजेस्टमेन्ट बहुत व्यापक शब्द है इसकी रेंज समझो और अपनाओ । यदि आपका बॉस नाराज हो तो थोड़ी देर गंभीरता का नकाब ओढ़ लो फिर चाटुकारिता के जल से उसके चरणों का प्रक्षालन कर लो तत्काल । उनका मानना है कि स्वाभिमान अमर गाथाओं के सिवा कुछ नहीं देता जीवन में । जबकि बेशर्मी का आकाश अनंत है, वहां सफलताएं हैं, उपलब्धियां हैं और समृद्धता है, सोशल स्टेटस है… चुनाव आपका है । यह कह कर वो एक बार फिस्स से हंसे । मैने कहा – महाराज, मुझ से न होगा ये सब । मेरा खाद-पानी कुछ अलग है । वे बोले- अभी सिस्टम में नए हो, धीरे-धीरे ढल जाओगे, जरूरतों के ताप से पिघल जाओगे । तब कहीं भी ये अन्तरात्मा की आवाज सुनायी नहीं देगी.. यह बड़ी कमबख्त चीज है नाहक परेशान करती है । यह कह कर वो एक बार फिर हंसे इस बार थोड़ा जोर से । अपने थूक की कुछ बूंदे मेरे मुंह पर फेंकते हुए । मुझे लगा कि मैं अंदर तक भीग गया हूं । मेरे संस्कारों की सूखी धरती पर ढेर सारा कीचड़ जमा हो गया है । लेकिन वो अभी भी मुझ में बदलाव के लिए पूरी उम्मीद के साथ मुंतजिर थे । उन्हें अपनी विद्या पर पूरा विश्वास जो था । वे जानते हैं बेशर्मी का मार्केट इन दिनों चढ़ाव पर है, उसकी ब्रांड वैल्यू को फ़िलहाल कोई खतरा नहीं।
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