व्यंग्य (गद्य/पद्य) हास्य-व्यंग्य

दिखते हैं, होते नहीं

फोटो : साभार गूगल

हरीश नवल II

कैसी विडंबना है कि हम ‘होना’ नहीं ‘दिखना’ चाहते हैं। ‘दिखना’ पर हमारा विशेष जोरदार अभियान सतत जारी रहता है। हम अमीर दिखें, इसके लिए ब्रांड-दर्शना क्रियाओं में लिप्त होते हैं। जो हम हैं, उससे ऊपर दिखें, कार हो या मोबाइल, जूते हो या गॉगल्स, हमें टॉप ब्रांड वाले चाहिए। भले ही हम उनके खरीदने के योग्य हों या न हों।

हम सुंदर दिखना चाहते हैं, कई तरह की मेडी/पेडी क्योर के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। मुख, हाथ, पैर सब सुंदर दिखे, •ाले ही अंतर्मन में कलुषता लबालब •ारी हो, कांच का दर्पण हमें सच्चा लगता है और मन का चारित्रिक दर्पण झूठा।

सत्य पर, शुभ पर, हम असत्य और अशुभ का मुलम्मा चढ़ा कर दिखाते है कि हम 24 कैरेट हैं, हम सौ टंच खरे हैं। हम विद्वान होना नहीं दिखना चाहते हैं। स्वाध्याय से दो कोस दूर रहते हैं। चिंतन, मनन आदि के लिए समय कैसे खराब करें, कुछ रट कर कुछ घौंट कर बौद्धिक पुड़ियाएं बना लेते है, अवसरानुकूल उन्हीं की खुराक देने से धाक जमाने में जुटे होते हैं। लोग हमें विद्वान समझें, यही हमारा मकसद रहता है।

  • हम सुंदर दिखना चाहते हैं, कई तरह की मेडी/पेडी क्योर के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। मुख, हाथ, पैर सब सुंदर दिखे, भले ही अंतर्मन में कलुषता लबालब •ारी हो, कांच का दर्पण हमें सच्चा लगता है और मन का चारित्रिक दर्पण झूठा।

हम सामाजिक सरोकारों के प्रति स्वयं को सचेत दिखाने के लिए अपने अचेत संस्कारों को अचेत ही रहने देते हैं। हमसे बढ़ कर कौन है, आत्ममुग्धता के सामचे में ढले हम घोर व्यक्तिवादी हैं। प्रचार तंत्र से दुनिया को दिखाते हैं कि हम कितने जिम्मेदार सामाजिक हैं।

हम दिखाते हैं कि हमारे हाथ-पैर, मुख सलामत हैं, हम पूर्ण समर्थ है किंतु जब कर्मरत होना होता है, हम कच्छपअवतार हो जाते हैं। अपने हाथ, पैर और मुख अपनी मजबूत बेशर्म खोल में छिपा लेते है।
सच में हम ‘शो पीस’ है केवल दिखते हैं, होते नहीं।

(देश के शीर्ष साहित्यकार हरीश नवल अब अश्रुतपूर्वा.काम के लिए लिखेंगे)

About the author

Harish Naval

हरीश नवल दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कालेज के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार हैं। मुख्यत: हिंदी व्यंग्य के पुरोधा हैं। उन्हें उनके ‘बागपत के खरबूजे’ के लिए युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हरीश नवल को पंडित गोविंद वल्लभ पुरस्कार और व्यंग्यश्री सम्मान सहित नौ अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। वे 50 देशों में हिंदी और हिंदी साहित्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नवल के साहित्य पर नौ शोधार्थियों को उपाधियां मिल चुकी हैं। उनकी 30 मौलिक पुस्तकें और नौ संपादित पुस्तकें हैं।
डॉ. हरीश नवल एनडीटीवी के हिंदी कार्यक्रम के सलाहकार, आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम सलाहकार रह चुके हैं। इसके अलावा वे इंडिया टुडे के साहित्य सलाहकार भी रह चुके हैं। डॉ नवल भारतीय अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की विख्यात पत्रिका के संपादक रहे हैं। लेखन और पठन-पाठन के क्रम में वे बल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय के विजिटिंग व्याख्याता और मारीशस विश्वविद्यालय के मुख्य परीक्षक भी रहे। वे अब तक 30 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हिंदू कालेज से सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. नवल की लेखन यात्रा का क्रम अनवरत जारी है।

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