व्यंग्य (गद्य/पद्य)

तुसी कर दे की हो

फोटो : साभार गूगल

हरीश नवल II

मैं कॉलेज से छुट्टी लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था। उन्हीं दिनों ‘तोषी मासी’ वही मेरी पत्नी की मौसी संतोष पाल हमारे घर अरइं। पहली बार आई थीं अत: पत्नी ने खातिरदारी में कसर न छोड़ी थी।

मौसी को पधारे चौथा दिन था, मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। मौसी मेरी पत्नी के साथ बगले वाले कमरे में बतिया रही थी। अचानक मौसी का तेज स्वर बहुत मंदा हो गया। मुझे शेयर बाजार की गिरावट लगी। मैं संभल गया और उनके मंदे स्वर के सुनने की कोशिश करने लगा… मौसी की आवाज आई, ‘सुधा तेरा खसम करदा की है?’ मैंने किताब बंद कर दी और उसके बदले में अपने कान पूरे खोल लिए। सुधा ने उत्तर दिया था, ‘क्यों मौसी, मैं समझी नहीं। क्यों पूछ रही हैं?’ बेटा मौसी की आवाज आई थी, ‘मैं ओनूं काम ते जांदे वेख्या नईं। चार दिन ते हो गए पुत्तर ओ कित्ते तैयार होके गया है र्नइं। ना तो बीमार लग रया है, ना ही थक्या होया। जो बच्चे कम कर दे ने, ओ काम ते जांदे जरूर ने, ओ की कर दा की है?’

‘मौसी जी वो कॉलेज में पढ़ाते हैं, आपको पता नहीं था क्या?’ तनिक खीझ कर पत्नी ने कहा था। ‘पुत्तर पर ओ तां चार दिनों ते कॉलेज गया ही नईं, ओत्थे हड़ताल है?’, मौसी ने पूछा था। ‘नहीं, हड़ताल नहीं है। वो छुट्टी पर हैं।’ पत्नी बोली। ‘छुट्टी ते है, हैं तो बिल्कुल वैल, इल तां नईं हैं, फेर वी काम ता करें।’ मौसी ने कहा। ‘मौसी जी, वो काम ही कर रहे हैं। पीएचडी कर रहे हैं।’ मौसी की आवाज आई, ‘पीएचडी दी की बमारी लग गई है। छड परे, जवानी च काम नईं करेगा ता कद करेगा, काम करना चाईदा है। मौसी जी तुनकते हुए पत्नी की वाणी बिखरी-मौसी वो बहुत काम करते हैं। पढ़ाने के अलावा कहानी लिखते हैं, कविता लिखते हैं।’
‘पुत्तर ओ पढ़ाए, कुछ वी लिख्खे पर काम ता करे।’
‘मौसी वो रेडियो, टीवी, अखबार के लिए भी लिखते हैं।’

‘पुत्तर लिख्खे, मैं कद मनां कित्ता है, बट कुछ करया ते करे। चार दिन तों देख रईं हैं। अपने रूम तो बाहर आंदा है, फ्रिज खोलदा है, कुछ खांदा है, फेर चाय दा आर्डर देके अंदर चला जांदा है। ना कपड़े बदल दा है, ना शेव करदा है। बिना काम कित्ते लाइफ चलेगी किदां, ओनूं कह कि कुछ वी करे पर काम तां करे।’

‘मौसी जी वो कॉलेज में पढ़ाते हैं, आपको पता नहीं था क्या?’ तनिक खीझ कर पत्नी ने कहा था। ‘पुत्तर पर ओ तां चार दिनों ते कॉलेज गया ही नईं, ओत्थे हड़ताल है?’, मौसी ने पूछा था। ‘नहीं, हड़ताल नहीं है। वो छुट्टी पर हैं।’ पत्नी बोली। ‘छुट्टी ते है, हैं तो बिल्कुल वैल, इल तां नईं हैं, फेर वी काम ता करें।’ मौसी ने कहा। ‘मौसी जी, वो काम ही कर रहे हैं। पीएचडी कर रहे हैं।’ मौसी की आवाज आई, ‘पीएचडी दी की बमारी लग गई है। छड परे, जवानी च काम नईं करेगा ता कद करेगा, काम करना चाईदा है। मौसी जी तुनकते हुए पत्नी की वाणी बिखरी-मौसी वो बहुत काम करते हैं। पढ़ाने के अलावा कहानी लिखते हैं, कविता लिखते हैं।’

फोटो : साभार गूगल

लगभग गुस्से से भरी पत्नी की आवाज आई थी, ‘मौसी जी, कितनी बार बताऊं कि वो कॉलेज में पढ़ाते हैं, वो इतना … बीच में ही मौसी का ऊंचा स्वर आ गया, ‘पुत्तर, मैं बेकूफ नईं हैं। मैं जानदी है कि परोफेसर है, कॉलेज च पढ़ांदा है। ठीक है परोफेसरी करे पर कुज कम वी तां करे। मैं कई लेकचरारां परोफेसरां नू जांण दी हैं, जो पढ़ांदे वी हैं पर काम वी कर दे नें। इक प्रोपरटी डीलर है। दो कारें ने ओदे पास, तेरे वाले दे पास स्कूटर ही है। इक ने परचून दी दुकान खोली होई है, ओदी वी कोठी बन गई है, टाई सौ गज दी। ओ मलावी दा जवाई वी नवां नवां लेकचरार है, ओ वी लाटरी दा काम करदा है। सारे इटैलिजेंट काम कर दे हैं, बस इक तेरा ही नईं कर दा, मैं तेरे भले दी कै रई हैं। कल नूं बच्चयां दी शादियां वी करनियां हैं। तू सोच सुधा, कुज सोच….ओ नूं कै कि कुछ वी करे पर काम जरूर करें।’

…सुधा ने सोचा या नहीं, पर मैंने काम के बारे में सोचते-सोचते कान बंद किए और किताब खोली, पर उसके हर पृष्ठ में यही प्रश्न लिखा पाया, ‘तुसी कर दे की हो। …तुसी करदे की हो…।’

About the author

Harish Naval

हरीश नवल दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कालेज के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार हैं। मुख्यत: हिंदी व्यंग्य के पुरोधा हैं। उन्हें उनके ‘बागपत के खरबूजे’ के लिए युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हरीश नवल को पंडित गोविंद वल्लभ पुरस्कार और व्यंग्यश्री सम्मान सहित नौ अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। वे 50 देशों में हिंदी और हिंदी साहित्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नवल के साहित्य पर नौ शोधार्थियों को उपाधियां मिल चुकी हैं। उनकी 30 मौलिक पुस्तकें और नौ संपादित पुस्तकें हैं।
डॉ. हरीश नवल एनडीटीवी के हिंदी कार्यक्रम के सलाहकार, आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम सलाहकार रह चुके हैं। इसके अलावा वे इंडिया टुडे के साहित्य सलाहकार भी रह चुके हैं। डॉ नवल भारतीय अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की विख्यात पत्रिका के संपादक रहे हैं। लेखन और पठन-पाठन के क्रम में वे बल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय के विजिटिंग व्याख्याता और मारीशस विश्वविद्यालय के मुख्य परीक्षक भी रहे। वे अब तक 30 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हिंदू कालेज से सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. नवल की लेखन यात्रा का क्रम अनवरत जारी है।

Leave a Comment

error: Content is protected !!