अश्रुत पूर्वा II
स्त्री प्रेम के बिना अधूरी है। उसके व्यक्तित्व को संपूर्णता किसी का प्रेम पाकर ही मिलती है। उसे धरती के रूप में देखें तो वह भी प्रेम ही चाहती है। मगर किस रूप में? वह दरअसल, अमन और मानवीयता से संतुष्ट होकर सबके लिए आंचल पसार देती है। अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ अपने सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘ठहरना जरूरी है प्रेम में’ में स्त्री विमर्श का नया आख्यान रचते हुए क्या कहना चाहती है? यह जानने के लिए हमें इनकी कविताओं के प्रवाह में बहना होगा।
संग्रह में दूसरी तरफ है धरती इस शीर्षक की कविता में ये पंक्तियां सबसे पहले ध्यान खींच लेती हैं- देखती है चिड़िया/और दोहराती है अपने आप में/किसी ने बताया नहीं तुम्हें/कितनी सुंदर हो तुम/नील चिरैया। … अमनदीप कहती हैं, लिखना, मेरे लिए खुद को खोजना है। कभी सायास लिखने की कोशिश नहीं की मैंने। कविताएं कभी उदासियों में लिखी गर्इं तो कभी प्रेम में, कभी दिन में तो कभी रात में उठ कर भी। एक रचनाकार का यही सच है कि अहसासों से जो हासिल करता है, वह शब्दों से लौटा देता है एक सुकून भरी दुनिया बनाने के लिए।
जीवन-संघर्ष, प्रकृति के बीच स्त्रियों के प्रति पुरुषों के मनोविज्ञान पर बेलौस होकर अमनदीप गुजराल ने एक कविता रची-समीकरण। वे लिखती हैं- भूगोल के विद्यार्थियों की ज्यादा रुचि/सामने की बेंच पर बैठी लड़कियों की/शारीरिक बनावट पर रही/ या फिर इतिहास प्रेमियों का ध्यान/अपनी प्रेमिकाओं के संघर्षों की गाथा/ सुनने व समझने से अधिक/उनके पूर्व प्रेमियों द्वारा दिए गए चुंबनों पर रहा…।
- प्रेम में पावनता कितना जरूरी है यह नदी और हवा की अनवरत यात्रा करते हुए समझा जा सकता है। यह एक प्रेमिका की कोमल भावना है-अपने हृदय से तुम्हारे हृदय तक/मुझे भी करनी है /एक यात्रा निर्विघ्न,/नदी से थोड़ी आद्रता,/पवन से कुछ मुलायमियत /और पारदर्शिता लिए आ रही हूं मैं…। अमनदीप इसी कविता में आगे लिखती हैं-तुम भी नदी और पवन को/यूं ही महसूस करना/तुम भी करना प्रेम…/प्रेम को महसूस करने के लिए/रुकना पल दो पल/कि ठहरना जरूरी है प्रेम में।
पूरी दुनिया में जिस तरह मनुष्यता मर रही है, उस पर कवयित्री की अपनी चिंता है। यह हम सबकी चिंता होनी चाहिए। मानवता सचमुच लुप्तप्राय है। इसी शीर्षक की कविता में वे लिखती हैं- बहुत मुमकिन है आगे निबंधों में/ लिखा और पढ़ाया जाए/ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है/संवेदनशून्यता की चरम स्थिति है समाज/तथाकथित मनुष्यों से डरो…।
प्रेम में पावनता कितना जरूरी है यह नदी और हवा की अनवरत यात्रा करते हुए समझा जा सकता है। यह एक प्रेमिका की कोमल भावना है-अपने हृदय से तुम्हारे हृदय तक/मुझे भी करनी है /एक यात्रा निर्विघ्न,/नदी से थोड़ी आद्रता,/पवन से कुछ मुलायमियत /और पारदर्शिता लिए आ रही हूं मैं…। अमनदीप इसी कविता में आगे लिखती हैं-तुम भी नदी और पवन को/यूं ही महसूस करना/तुम भी करना प्रेम…/प्रेम को महसूस करने के लिए/रुकना पल दो पल/कि ठहरना जरूरी है प्रेम में।
अमनदीप गुजराल कुछ गंभीर मुद्दों को अपनी कविताओं में बेहद सहजता से अभिव्यक्त करती हैं। इनके मन की परतें बेहद नरम हैं। एक तरफ कहन की गहनता है तो दूसरी तरफ सादगी। यूं सहज होना भी सरल नहीं। वे अपनी रचनाओं में स्त्री विमर्श को जन्म देती हैं। इसलिए महिलाओं की बेबसी को बेहद संजीदा होकर व्यक्त करती हैं-काम के बीच कुछ वक्त उधार मांग/झांकती हैं बाहर/ढूंढ़ने अपना खिड़की भर आसमान…।
अमनदीप की कविताओं का फलक बड़ा है। वह आहिस्ते-आहिस्ते आंखों से उतर कर दिल में बस जाती है। यह उनका पहला काव्य संग्रह है। वे पूरे दम-खम के साथ अपनी रचनाएं लेकर आई हैं। सौ पेज के इस काव्य संग्रह का आवरण प्रवेश सोनी ने बनाया है।
कवयित्री-अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’
संग्रह- ठहरना जरूरी है प्रेम में
प्रकाशक-बोधि प्रकाशन
मूल्य -150 रुपए
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