संस्मरण

स्वतंत्रता के महान यज्ञ में अपनों की आहुति

डाॅ.यशोधरा शर्मा II

आजादी की 75 वीं वर्षगाँठ पर शुभकामना के साथ श्रद्धांजलि स्वतंत्रता आंदोलन के वीर सेनानियों को….

कार्तिक मास हल्की ठंडक होने लगी थी। प्रातः चार बजे दरवाजे की कुंडी खटकी ।इस समय कौन? सभी के मन में संशय! संशय के घेरे में ही रहते थे सभी आज कल ‘कहीं पुलिस तो नहीं?’ दरवाजा खोला शाॅल से मुँह लपेटे मां जी खडी थीं।धक्का सा देती हुईं अंदर प्रविष्ट हो गईं “जीजी !पुलिस कभी भी आ सकती है वो दोनों पिस्तौल ले लो और चलो छिपाने। पचास पचपन की उम्र की दोनों महिलाओं ने पिस्तौल छिपाईं शाॅल में ,पूजा की टोकरी उठाईं और उतर गईं सीढियां। सिपाही झपटे “कहाँ जा रही हो? कौन हो?” भैया यमुना जी जा रहें हैं कार्तिक नहाने” और चलीं गई। यमुना की शीतल रेत में दोनों पिस्तौल दबा दीं। दूसरे दिन पुनः गयीं ,पानी के बहाव से पिस्तौल की नाल ऊपर आ गयीं थीं फिर से दबा कर घर आ गयीं।

समय 1942 महात्मा गाँधी का करो या मरो आंदोलन। ये घटना है आगरे के लोहामंडी के एक मकान की। यह घर है सुप्रसिद्ध कवि,लेखक, कुशल वैद्य स्व.नाथूराम शंकर जी के सुपुत्र पद्यश्री डाॅ हरिशंकर जी का।अगस्त 1942 भारत छोड़ो आंदोलन ने अँग्रेजो को विवश करने के लिये एक सामूहिक अवज्ञा आंदोलन “करो या मरो’ का निर्णय लिया। इस आंदोलन ने जैसे पूरे देश में बिजली सी भर दी। दिग्गज नेताओं की गिरफ्तारियों के साथ ही आंदोलन उग्र होने लगा।
स्वतंत्रता आंदोलन की इस पावन गंगा में इस घर के सभी लोग और उनके निकटतम मित्र मिलापी उतर चुके थे सभी का एक ही उद्देश्य येन केन प्रकारेण देश को आजाद कराना।
बंसत चाचाजीऔर झा बाबा अपने घर पर ही केमीकल से बारूद बनाते थे छिप कर, और बाबा के घर पर रखा जाता था। कब क्या करना है? ये सभाएँ भी इसी स्थान पर होतीं थीं। बाबा ( हरिशंकर शर्मा जी ) का घर स्टेशन के समीप होने के कारण प्रत्येक स्वतंत्रता सेनानी इसी घर में आश्रय लेते।

सूचना मिली कि लोहे के खंबो आदि को काटने की एक मशीन पठान कोट से ट्रेन द्वारा आ रही है। लेने गये मेरे बाबूजी डाँ दया शंकर शर्मा और चाचा जी कृपाशंकर शर्मा। पुलिस से छिपने के लिये अपनी लुंगियों का सिर पर साफा सा बाँधा और ठेले को चलाते हुए नियत स्थान पर छोड कर आए। पुलिस के संदेह के घेरे में हमारा घर आ चुका था। घर के नीचे पुलिस ही पुलिस। राशन, मिट्टी का तेल आदि लाना भी मुश्किल।घर में जो कुछ राशन पानी था समाप्त हो रहा था। मिट्टी के तेल की भी राशनिंग कर रहे थे ।बहुत आवश्यकता होने पर ही लालटेन जलाई जाती ।आधा पेट खाकर अंधकार में रहते। लेकिन स्वतंत्रता के समक्ष सभी कष्ट सह्य थे, इन परेशानियों की कीमत नहीं। दही के बिना ग्रास नही तोडते थे बाबूजी और चाचा जी और दूध दही के दर्शन दुर्लभ हो गये थे।चाचा जी ने इस पीडा को कविता में प्रकट किया”

‘अँखियाँ दधि दर्शन की प्यासी’
श्री कृष्णदत्त पालीवाल बाबा ( इनके नाम से आगरे का पालीवाल पार्क है ) छिपते छिपाते ,थोडा राशन,तेल आदि लेकर हमारे घर आये। बाबा से कुछ आवश्यक वार्ता भी करनी थी। पुलिस पीछे पीछे। कैसे छिपें? आँगन के तार पर सूख रहे घर की स्त्रियों के लँहगे को पहना, ओढनी से लंबा घूँघट किया और चक्की चलाने बैठ गये।सिपाही ने कड़क कर पूछा ‘कहाँ हैं?’ हाथ के संकेत से कह दिया-‘नही है’, खोज बीन करके सिपाही चला गया। कितने निर्भीकऔर साहसी थे ये आजादी के आंदोलन के वीर सिपाही।

  • सच में कितने उत्साह आल्हाद से भरा  होगा वह पल । हमने आँखे खोलीं आजाद भारत में। हम क्या जाने कैसे कैसे कष्ट उठाए गये। हमारे बुजुर्गों ने उनको भगाया और हम चुंबक की भाँति खिंच रहें है उधर और अपनी संस्कृति रीति रिवाजों को भी तिलांजलि देते जा रहैं हैं। ऐसा क्यूँ? शायद हमने उन कष्टों का यातनाओं और अपने ही घर अपमानित होने के दंश को नही सहा है।

पं. श्री राम शर्माजी, पालीवाल जी पं. हरिशंकर शर्मा जीआदि दिग्गजोंं ने कलम को ही तलवार बना दिया था। इनके सौष्ठव कलेवर में साहित्यकार की आत्मा भी थी।बाबा, किसी पत्रिका का संपादकीय पृष्ठ भी लिखते थे, जोशीले, उत्साह वर्धक लेख संयत भाषा में लिखते और कृपाशंकर चाचाजी रमेश चाचा जी, बाबूजी और उनके मित्र छिप कर उनको जनता में वितरित करते थे। बाबा, और उनके सम वयस्क साथी श्री रोशनलाल गुप्ता करुणेश जी, प्रेमवती मिश्रा बुआजी, श्री भोगी लाल मिश्रा जी, श्रीजगन प्रसाद रावत जी, पं. यज्ञदत्त शर्मा जी। हमारी प्रिय रानी सरोज रानी गौरिहार जी, हमारा सौभाग्य है ये आज भी समाज सेवा और साहित्य सेवा कर रही हैं।ईश्वर इनको शतायु करे। गांधीवादी थे। इनकी कार्य प्रणाली धीर गंभीर थीऔर कलम के हथियार के प्रयोग में विश्वास रखते थे।

चाचाजी आदि युवा वर्ग क्रांतिकारियों से प्रभावित था। जोश और उत्साह से भरे ये युवक तोड़-फोड़ में विश्वास रखते थे।नागरी प्रचारणी का पोस्ट ऑफिस और बिल्लोचपुरे का रेलवे स्टेशन जला दिया।

दो साथी आ गये पुलिस की पकड में। पंद्रह वर्षीय रमेश चाचाजी के ऊपर भीगे हुए कितने ही बेंत टूट गये किंतु यह देश भक्त्त नही टूटे, कुछ भी नही बताया। दूसरा साथी नही सह पाया सभी के नाम और ठिकाने बता दिये ।

श्री राम शर्मा बाबा की वीरांगना बेटी कमला बुआजी ने साड़ी के तीन सैट पहन लिये कि जेल में तो वस्त्र प्राप्त होंगे नहीं। बाबा के घर आकर पुलिस कमिश्नर ने सम्मान सहित कहा ‘चलिये पंडित जी’ बाबूजी और चाचाजी को भी साथ ले जाने लगे। बाबा के कहने पर बाबूजी को छोड़ दिया कि एक पुरुष तो चाहिये घर में।

बाबूजी और चाचाजी बी.ए. पार्ट-वन और टू के विद्यार्थी थे। घर का खर्च चलाने के लिये बाबूजी ने हिंदी साहित्य का इतिहास हिंदी में और अँग्रेजी साहित्य का इतिहास अँग्रेजी में लिखा। आगरे के ही विनोद पुस्तक भंडार ने प्रकाशित की दोनों पुस्तके और कुछ आर्थिक सहायता मिली। चाचा जी ने हथकड़ियों के साथ पुलिस कस्टडी में बी.ए. की परीक्षा दी। बाबा ने जेल में ही श्री कृष्ण संदेश और अन्य पुस्तके लिखी।

महात्मा गांधी को जेल से छोड़ा गया तभी नौ माह बाद बाबा तथा अन्य महानुभाव व्यक्तियों को भी छोड़ दिया।चाचा जी और साथियों को लगभग एक वर्ष बाद छोड दिया। और अंत में सभी देशभक्तों के कष्ट और यातनाएं सफल हुईं। पंद्रह अगस्त की रात बारह बजे स्वतंत्रता मिली। जन मानस जैसे पागल हो गया धुँआधार बारिश में सडकों पर ‘आज हम आजाद हैं’.. के नारे लगाते उतर आये। तीन दिन के लिये निःशुल्क बिजली दी गयी।गली-गली चमचमा उठी विद्युत प्रकाश से। मिठाईयों के थाल के थाल बँट गये।

सच में, कितने उत्साह, आल्हाद से भरा होगा वह पल ।हमने आँखे खोली आजाद भारत में। हम क्या जाने कैसे कैसे कष्ट उठाए गये। हमारे बुजुर्गों ने उनको भगाया और हम चुंबक की भांति खिंच रहें है उधर और अपनी संस्कृति, रीति रिवाजों को भी तिलांजलि देते जा रहें हैं। ऐसा क्यूँ? शायद हमने उन कष्टों का यातनाओं और अपने ही घर अपमानित होने के दंश को नही सहा है। कभी, रात को बिजली चली जाती थी तो गर्मी के मौसम में चंद्रमा की धवल चांदनी में और शीत में गर्म कंबलों में बैठ कर बाबूजी, दादी और माँ से सुनते थे ये पुनीत पावन संस्मरण। गौरवान्वित हैं हम कि स्वतंत्रता के महान यज्ञ में हमारे अपनों ने भी आहुति दी थी।

About the author

डॉ यशोधरा शर्मा

जन्म: ऐतिहासिक नगरी, आगरा

शिक्षा: एम.ए.,पी.एच.डी., हिन्दी साहित्य विषय

अभिरूचियाँ : लेखन, पठन, शास्त्रीय संगीत विशेषकर नृत्य, पाक, कला, बागवानी, गृह सज्जा

संप्रति : शिक्षिका पद से निवृत्त होकर बैंगलुरू में साहित्य सेवा

सम्पर्क: शान्ति निकेतन, व्हाइट फील्ड, बैंगलुरू।

error: Content is protected !!