स्वास्थ्य

कोरोना खत्म हो चला, पर खुद में सिमट गए हम लोग

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। कोरोना महामारी के समय पूरी दुनिया जैसे घर में सिमट कर रह गई थी। अब इस महामारी से उबरने के बाद लगता है कि हम  आज भी खुद में सिमटे हुए हैं। या सिमटते जा रहे हैं। पीएलओएस वन में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि कोरोना ने वास्तव में दुनियाभर में लोगों के व्यक्तित्व को बदल कर रख दिया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि महामारी से पहले की तुलना में 2021 और 2022 में लोग कम बहिर्मुर्खी, कम खुले और कम कर्तव्यनिष्ठ हो गए।
इस अध्ययन में अमेरिका के सात हजार से अधिक लोगों को शामिल किया गया था, जिनका मूल्यांकन महामारी से पहले (2014 से), 2020 में महामारी की शुरूआत में, और फिर बाद में 2021 या 2022 में महामारी में किया गया था।
महामारी पूर्व और 2020 के व्यक्तित्व लक्षणों के बीच बहुत अधिक परिवर्तन नहीं थे। हालांकि, शोधकर्ताओं ने महामारी से पहले की तुलना में 2021/2022 में बहिर्मुखता, खुलेपन, सहमति और कर्तव्यनिष्ठा में बड़ी गिरावट पाई। दिलचस्प बात यह है कि अध्ययन में युवाओं के व्यक्तित्व में सबसे ज्यादा बदलाव आया। उन्होंने महामारी से पहले की तुलना में 2021/2022 में सहमति और कर्तव्यनिष्ठा में उल्लेखनीय गिरावट और उद्विग्नता में काफी बढ़ोतरी दिखाई। यह कुछ हद तक सामाजिक चिंता के कारण हो सकता है।

कोरोना काल में हमने अपनी स्वतंत्रता में रोक-टोक पाया। नौकरियां जाते हुए देखीं। आय घटती हुई देखी। बीमारी सहित कई कठिनाइयों का अरसे तक का सामना किया। इन सभी अनुभवों ने हमें और हमारे व्यक्तित्व को बदल दिया है। और पाते हैं कि एक बार फिर हम खुद में सिमटे हुए हैं।

महामारी के दौरान हम में से कई लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो गए थे। लोग पौष्टिक खाना खाने लगे थे। अधिक व्यायाम करने लगे थे। हममें से कई ने भावनात्मक और बौद्धिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की। मिसाल के लिए, माइंडफुलनेस का अभ्यास करया नए शौक अपना कर। इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई। इन हालात में हम जिन कठोर बदलावों से गुजरे हैं ऐसा होना स्वाभाविक भी है।
महामारी ने कई क्षेत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया जैसे दूसरों के प्रति सहानुभूति और दया दिखाने की हमारी क्षमता। नई अवधारणाओं के लिए खुले रहने की हमारी क्षमता और नई स्थितियों में शामिल होने की इच्छा पर असर पड़ा। अन्य लोगों के सान्निध्य की तलाश करने और उसका आनंद लेने की हमारी प्रवृत्ति बढ़ी। अपने लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास करने की हमारी इच्छा, कार्यों को अच्छी तरह से करने या दूसरों के प्रति जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेने पर बुरा असर पड़ा।
ये सभी लक्षण हमारे आस-पास के वातावरण के साथ हमारे संबंध को प्रभावित करते हैं, और इस तरह, हमारी सेहत में गिरावट में भूूमिका निभा सकते हैं। उदाहरण के लिए, घर से काम करने से हम निराश हो सकते हैं और यह मान सकते हैं कि हमारा करियर वहीं थम गया है। यह हमें चिड़चिड़ा, उदास या चिंतित महसूस कराकर हमारी सेहत को प्रभावित कर सकता है।
आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। मगर समय के साथ कुछ चीजें बदलती जाती हैं। समय के साथ, हमारा व्यवहार और व्यक्तित्व भी बदलता जाता हैं जो हमें उम्र बढ़ने के अनुकूल होने और जीवन की घटनाओं से अधिक असरदार तरीके से निपटने में मदद करते हैं। दूसरे शब्दों में, हम अपने जीवन के अनुभवों से सीखते हैं। बाद में यह हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।
याद रखिए हमने कोरोना काल में अपनी स्वतंत्रता में रोक-टोक पाया। नौकरियां जाते हुए देखीं। आय घटती हुई देखी। बीमारी सहित कई कठिनाइयों का लंबे समय तक का सामना किया। इन सभी अनुभवों ने स्पष्ट रूप से हमें और हमारे व्यक्तित्व को बदल कर रख दिया है। और पाते हैं कि एक बार फिर हम खुद में सिमटे हुए हैं। उम्मीद है आने वाले सालों में हालात सुधरेंगे।

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