स्वास्थ्य

होमियोपैथी से बचा आब्स्ट्रक्टिव हाइड्रोसिफेलस से पीड़ित बच्चा

डॉ. एके अरुण II

आब्स्ट्रक्टिव हाइड्रोसिफेलस यानी मस्तिष्क में जमा पानी एक गंभीर रोग है। इसमें मस्तिष्क के कोटरों में मस्तिष्कमेरु द्रव यानी सीएसएफ का असामान्य जमाव हो जाता है। यह खोपड़ी के अंदर अत्यधिक दिमागी दबाव बना देता है। इससे सिर के क्रमिक बढ़ने, ऐंठन और मानसिक विकलांगता का कारण बन सकता है! यह मौत की भी कारण बन जाता है। नवजात बच्चे ज्यादातर इस रोग के शिकार होते हैं।
इस रोग में मस्तिष्कमेरु द्रव या सीएसएफ अंदर ही संचित होता रहता है जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क के दबाव में वृद्धि होती रहती है। नतीजन मस्तिष्क के अंदर बन रहा द्रव तंत्रिका ऊतक पर दबाव डालता है और निलय यानी कोटरों को फैला देता है। तंत्रिका ऊतक का संपीड़न आमतौर पर अपरिवर्तनीय मस्तिष्क क्षति का कारण बनता है। नवजात शिशुओं में जलशीर्ष होने के समय खोपड़ी की हड्डियां पूरी तरह विकसित भी नहीं होती और इसका दबाव सिर को गंभीर रूप से बढ़ा देता है। इससे बच्चे की जान जा सकती है।
उच्च आंतरिक दबाव को समाप्त करने के लिए विशेषज्ञ सर्जन मस्तिष्क निलयों और उदर गुहा के बीच जल निकासी ट्यूब लगा कर मस्तिष्क में संक्रमण के खतरे को कम करने की कोशिश करते हैं। इस रोग में मस्तिष्क के ऊतकों को नुकसान पहुंचता है जिसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क में जख़्म बन जाता है। इससे प्रभावित बच्चे की मौत हो सकती है।

डॉ. एके अरुण जाने माने जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे विश्व प्रसिद्ध होमियोपैथिक चिकित्सक डा. राजन शंकरन (मुंबई) के साथ मिल कर कई महत्वपूर्ण चिकित्सा ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद कर चुके हैं। वे गंभीर रोगों पर नवीनतम शोधों से भी जुड़े हैं। डॉ. अरुण कोरोना काल में 800 से भी ज्यादा गंभीर मामलों के सफल उपचार करने के साथ बड़ी संख्या लोगों को होमियोपैथिक दवाओं की मदद से महामारी से बचाने में कामयाब रहे।

पिछले कुछ सालों में मैंने जटिल रोगों के कई उपचार किए हैं। ऐसा ही एक बच्चा मेरे पास आया जो जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था। यह केस मेरे लिए एक चुनौती की तरह था। फिर भी सोचा कि एक बार प्रयास अवश्य करूं। बिहार के एक कस्बे का यह शिशु (नाम-हमजा, उम्र-तीन माह) पटना के मशहूर खुर्जी अस्पताल से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली रेफर किया गया। वहां इस बच्चे के मस्तिष्क में नली डाल कर और दवा देकर घर भेज दिया गया।
एलोपैथी में आगे कोई उम्मीद न देख कर बच्चे के माता-पिता उसे दिल्ली से राष्ट्रीय होमियोपैथी संस्थान, कोलकाता उपचार के लिए ले गए। वहां के शिशु रोग विशेषज्ञ नें सलाह दी कि यहां बच्चे की जान को जोखिम है। इसलिए बेहतर है कि उपचार के लिए दिल्ली ले जाएं। वहां स्नातकोत्तर अध्ययन से जुड़ी एक चिकित्सक ने बच्चे के माता-पिता को मुझसे इलाज कराने की सलाह दी। मस्तिष्क में नली लगी अवस्था में यह बच्चा मेरे पास अगस्त, 2022 के अंतिम सप्ताह में आया।
आपको बता दें कि होमियोपैथिक उपचार के महज ढाई महीने में ही यह बच्चा लगभग 80 फीसद ठीक हो गया है। पाठकों को बता दूं कि होमियोपैथी वास्तव में एक वैज्ञानिक चिकित्सा विधि है जो गंभीर रोगों में भी सहज उपचार की क्षमता रखती है। होमियोपैथी जैसे गंभीर विषय की विडंबना यह है कि इसमें आज भी बहुत कम गंभीर और तेजस्वी अध्ययनकर्ता आ रहे हैं। इसमें शक नहीं है कि पूरी दुनिया में भारत आज होमियोपैथी के लिए एक ऐसे क्षेत्र के रुप में उभरा है जहां विकास की असीम संभावनाएं हैं। सरकार और यहाँ का प्रबुद्ध वर्ग यदि थोड़ी और रुचि लें तो हम विश्व में श्रेष्ठ होमियोपैथिक चिकित्सा का केंद्र बन सकते हैं।

About the author

AK Arun

डॉ. एके अरुण देश के प्रख्यात जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक और संपादक हैं। साथ ही परोपकारी चिकित्सक भी। वे स्वयंसेवी संगठन ‘हील’ के माध्यम से असहाय मरीजों का निशुल्क उपचार कर रहे हैं। डॉ. अरुण जटिल रोगों का कुशलता से उपचार करते हैं। पिछले 31 साल में उन्होंने हजारों मरीजों का उपचार किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। कोरोना काल में उन्होंने सैकड़ों मरीजों की जान बचाई है।
संप्रति- डॉ. अरुण दिल्ली होम्योपैथी बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं।

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