कविता काव्य कौमुदी

‘चाय की प्याली’

संगीता सहाय II

शहर के नुक्कड़ पर
चाय की दुकान
मर्दों का जमघट,
उंगलियों के बीच दबा सिगरेट
धुएं के छल्ले बनाते होंठ।
हाथों में गर्म चाय की प्याली
समाज और संस्कृति को
बचाने की गर्मागर्म बहस,
दुनिया जहान की बातें
तो, यह कौन सी नई बात है?

हर चौक-चौराहे पर
अलसुबह से बीती रात तक
बीच दोपहर भी
यह तो आम है
ओह! तनिक रुको भी
अक्सर आम के बीच ही
घटता है खास…
नुक्कड पर खड़ी
लिए चाय की प्याली
समरसता का भान कराती
अपने होने के एहसास को जीती,
स्त्री के सहज स्वतंत्रता की
कथा बयां करतीं
हंसती, बतियातीं दो सखियां,
नया आख्यान ही तो रच रहीं
घर-बाहर, गांव-शहर
गली-चौक-चौराहा
हर मोड़ पर
निषिद्ध को सिद्ध करती
स्त्री के होने का आख्यान।

About the author

Sangita Sahay

लेखिका संगीता सहाय छपरा से हैं। पटना में रहती हैं। शिक्षिका हैं। लेखन में गहरी अभिरुचि है। कविताएं और कहानियां लिखती हैं। प्रासंगिक मुद्दों पर समाचारपत्रों में आलेख भी लिखती हैं। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपती हैं।

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