संगीता सहाय II
शहर के नुक्कड़ पर
चाय की दुकान
मर्दों का जमघट,
उंगलियों के बीच दबा सिगरेट
धुएं के छल्ले बनाते होंठ।
हाथों में गर्म चाय की प्याली
समाज और संस्कृति को
बचाने की गर्मागर्म बहस,
दुनिया जहान की बातें
तो, यह कौन सी नई बात है?
हर चौक-चौराहे पर
अलसुबह से बीती रात तक
बीच दोपहर भी
यह तो आम है
ओह! तनिक रुको भी
अक्सर आम के बीच ही
घटता है खास…
नुक्कड पर खड़ी
लिए चाय की प्याली
समरसता का भान कराती
अपने होने के एहसास को जीती,
स्त्री के सहज स्वतंत्रता की
कथा बयां करतीं
हंसती, बतियातीं दो सखियां,
नया आख्यान ही तो रच रहीं
घर-बाहर, गांव-शहर
गली-चौक-चौराहा
हर मोड़ पर
निषिद्ध को सिद्ध करती
स्त्री के होने का आख्यान।