अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। बच्चों अगर आपका होमवर्क मम्मी के बजाए कोई रोबोट झटपट करा दे तो कैसा लगेगा। सब काम पलक झपकते कर दे तो फिर मजा आ जाएगा। ऐसे दिन आने वाले हैं बच्चों। तब ऐसे रोबोट आपके घर के सामने सफाई कर रहे होंगे। यातायात पुलिस का काम कर रहे होंगे। पापा को दफ्तर पहुंचा रहे होंगे।
आपके क्लासरूम में आपको पढ़ा रहे होंगे। सीमाओं की रक्षा कर रहे होंगे। यानी हमारी दुनिया ही बदल जाएगी। तब आपका शहर बदला-बदला लगेगा। जब हर जगह रोबोट काम करते नजर आएंगे तो थोड़ा अजीब भी लगेगा। हालांकि, अभी इतनी जल्दी ऐसा नहीं होने जा रहा है। मगर अगले पचास साल में यह दृश्य देखा जा सकता है जब ज्यादातर जगह रोबोट मौजूद होंगे।
अभी यह कल्पना है, लेकिन साकार तो होना ही है। करीब बीस-पच्चीस साल पहले किसने सोचा था कि नागपुर में रह रहे दादाजी से कानपुर में बैठा बच्चा मोबाइल फोन पर बात कर रहा होगा। मगर अब तो यह हकीकत है। बच्चों आपको बता दें कि मानव जैसे दिखने वाले रोबोट की संख्या दुनियाभर में 24 करोड़ तक होने की उम्मीद है। यह संख्या बढ़ती जाएगी।
अब तो मौजूदा रोबोटिक ढांचे वाले कुछ शहर भी दिखने लगे हैं। जैसे सऊदी अरब के नियोम में भविष्य का शहर द लाइन, डेनमार्क की ओडेंस सिटी और जापान के तक्शिबा प्रांत में यातायात नौवहन रोबोट। मगर इसको लेकर सवाल भी उठ रहे हैं बच्चों। हम मानवता के विवेक और डिशवॉशर या लॉनमूवर जैसी मशीनों की यांत्रिक प्रकृति के बीच कैसे नियंत्रण करेंगे। या किसी दिन वे हम पर नियंत्रण कर लेंगे।
बच्चों, रोबोट को मनुष्य की तरह काम करने के लिए बनाया जा सकता है। इसे व्यावहारिक रूप से स्वास्थ्य देखभाल, निर्माण, साजो-सामान, अंतरिक्ष शोध, सेना, मनोरंजन, आतिथ्य सत्कार और यहां तक कि घर के कामकाज में इस्तेमाल किया जाता है। उन्हें सत्ता पर कब्जा जमाने और उन्हें हटाने के लिए नहीं बनाया जाता। ऐसे खतरनाक कार्यों जिनमें मानव श्रम की आवश्यकता होती है उनमें रोबोट मानव कार्यबल के विकल्प हो सकते हैं।
अब देखो, कृषि क्षेत्र में ड्रोन से खेती से जुड़ी गतिविधियों में मदद करने की कितनी संभावनाएं हैं। शिक्षा में रोबोट बच्चों की सीखने और खेलने में मदद कर रहे हैं। लिटल सोफिया का मकसद बच्चों को कोडिंग, कृत्रिम बुद्धिमता, विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग तथा गणित के बारे में सीखने के लिए प्रेरित करना है। मगर मनुष्य जैसे रोबोट के इंसान के साथ रहने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सवाल भी उठ रहे हैं बच्चों।
अगर हम रोबोट पर निर्भर हो गए तो एक दिन हम आलसी हो जाएंगे। दूसरा ये कि ये रोबोट धीरे-धीरे जीवन का हर काम संभाल लेंगे। ऐसे में कोई वैज्ञानिक इसकी बुद्धि को और विकसित कर दे, तो ये कहीं हम पर ही कहीं शासन न करने लगें? सवाल कई हैं पर चिंता और नैतिकता के कई पहलू भी है। जिस पर अभी मनुष्य ने सोचा नहीं है। रोबोट हमारे जीवन को आसान बनाएं इससे ज्यादा इस पर अनुसंधान नहीं किया जाना चाहिए। है कि नहीं बच्चों। आप ही बताओ।
अगर हम रोबोट पर निर्भर हो गए तो एक दिन हम आलसी हो जाएंगे। दूसरा ये कि ये रोबोट धीरे-धीरे जीवन का हर काम संभाल लेंगे। ऐसे में कोई वैज्ञानिक इसकी बुद्धि को और विकसित कर दे, तो ये कहीं हम पर ही कहीं शासन न करने लगें? जिस पर अभी मनुष्य ने सोचा नहीं है।