अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। गुलाबी नगरी जयपुर में नगाड़ों की धमक के साथ सोलहवां जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएफ) शुरू हो गया है। विख्यात नगाड़ावादक नाथूलाल सोलंकी और उनके साजिंदों ने जैसे ही राजस्थानी लोक वाद्य यंत्रों पर सुरों की तान छेड़ी क्लार्क आमेर का माहौल झूम उठा। इसी के साथ जेएलएफ की सह संस्थापक नमिता गोखले और विलियम डेलरिम्पल तथा टीमवर्क्स आर्ट्स के संजॉय के रॉय ने उद्घाटन किया। कोरोना महामारी के कारण लगी पाबंदियों के तीन साल बाद जयपुर साहित्य उत्सव का सार्वजनिक रूप से आयोजन हो रहा है।
इस मौके पर नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता अब्दुलरजाक गुरनाह ने कहा कि लेखन केवल कुलीनता और महानता के बारे में नहीं है बल्कि जो कुछ महत्वपूर्ण है, उसे जिंदा बचाए रखने के लिए साधारण सांसारिक काम है। प्रतिरोध के रूप में लेखन पर तंजानियाई ब्रिटिश लेखक गुरनाह ने कहा, प्रतिरोध किसका? शायद यह प्रतिरोध विस्मृति के प्रति है। यह उसके प्रति प्रतिरोध है कि हम जो जानते हैं और जो हम याद रखते हैं, वह अनकहा न गुजर जाए।
मेमोरी आफ डिपार्चर के लेखक गुरनाह ने कहा कि लेखन उपेक्षा का भी प्रतिरोध है और लेखन यह सुनिश्चित करता है कि जो चीजें अहम हैं वे उपेक्षित न रह जाएं या अन्य विमर्शों द्वारा विकृत न हो जाएं। उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि प्रतिरोध जालिम से लड़ने के बारे में ही हो या मंचों पर खड़े होकर लोगों को उत्साहित करने के लिए जबरदस्त भाषण देना ही प्रतिरोध हो। गुरनाह ने कहा, यह उन विचारों और आस्थाओं को बरकरार रखने के बारे में है जिन्हें हम अहम मानते हैं और जिनकी हम कीमत समझते हैं।
जयपुर साहित्य उत्सव 23 जनवरी तक चलेगा जिसमें कहानी कहने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए देश और विदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार और लेखक साहित्य पर चर्चा करेंगे। जयपुर साहित्य उत्सव इस बार विभिन्न देशों के 350 वक्ताओं की मेजबानी कर रहा है। इनमें नोबेल, बुकर, इंटरनेशनल बुकर, पुलित्जर, साहित्य अकादमी, बैली गिफर्ड, पेन अमेरिका लिटरेरी अवार्ड, डीएससी प्राइज, जेसीबी प्राइज से सम्मानित लेखक हिस्सा ले रहे हैं। (यह प्रस्तुति मीडिया में आए समाचार पर आधारित)
जयपुर साहित्य उत्सव में नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता अब्दुलरजाक गुरनाह ने कहा कि लेखन केवल कुलीनता और महानता के बारे में नहीं है बल्कि जो कुछ महत्वपूर्ण है, उसे जिंदा बचाए रखने के लिए साधारण सांसारिक काम है। प्रतिरोध के रूप में लेखन पर तंजानियाई ब्रिटिश लेखक गुरनाह ने कहा, प्रतिरोध किसका? शायद यह प्रतिरोध विस्मृति के प्रति है।