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सख्त नहीं होनी चाहिए भाषा की सरहदें : गीतांजलि श्री

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। चर्चित उपन्यास ‘रेत समाधि’ की लेखिका गीतांजलि श्री ने जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएफ) में कहा कि भाषा की सरहदें सख्त नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की समृद्धि के लिए उसमें लोच और रवानगी अहम है। बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका गीतांजलि श्री ने कहा कि भाषा के शुद्धिकरण के फेर में लोग भूल जाते हैं कि भाषा में जितना लचीलापन, जितनी गति और रवानी रहेगी, भाषा उतनी ही समृद्ध होगी। उन्होंने भाषा में नए प्रयोगों और रूढ़िवादी परपंराओं को तोड़ने पर भी सहमति जताई।
बता दें कि खुद गीतांजलि श्री का उपन्यास रेत समाधि स्वयं कथा कहन की अलग परंपरा के साथ लिखा गया है, जिसमें भाषाई स्तर पर एक नया शिल्प गढ़ा गया है। यह कुछ को अच्छा नहीं लगा तो कई को पसंद भी आया।
लेखिका ने जयपुर साहित्य उत्सव में कहा कि भाषा को शुद्ध करने की कोशिश में जुटे लोग भाषा को संकुचित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी का मस्त मलंग तेवर है, इसे शुद्ध करने की कवायद, इसे संकीर्ण करना है। यह एक प्रकार की बीमारी है। लेखिका का कहना है कि लेखक और आम जनता का रिश्ता व्याकरण से नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति से होता है। उन्होंने रेत समाधि में किए गए प्रयोगों के संबंध में लेखक यतीन्द्र मिश्रा के एक सवाल पर कहा, उपन्यास में अपनाई गई शैली सायास नहीं है, बल्कि वह मन के उद्गार हैं, जिन्होंने खुद को अभिव्यक्त  करने के लिए खुद ही नया शिल्प गढ़ा है। यह कहीं से भी बनावटी नहीं है।
‘एक हिंदी, अनेक हिंदी’ सत्र में चर्चित लेखिका अनामिका ने भी हिस्सा लिया। ‘टोकरी में दिगंत’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित अनामिका ने इंटरनेट के जमाने की हिंदी पर कहा कि इस नए चलन ने भाषायी पदानुक्रम को तोड़ा है और एक भाषायी खिचड़ी पकाई है। उन्होंने कहा कि  खिचड़ी सुस्वादु और सुपाच्य भोजन है, लेकिन उसमें कंकड़ आ जाए तो स्वाद बिगड़ जाता है, उसी तरह इंटरनेट की खिचड़ी हिंदी में स्वाद बना रहना चाहिए, उसमें यह देखना होगा कि कंकड़ न आए।
इसी कड़ी में गीतांजलि श्री ने कहा कि इंटरनेट के दौर में हिंदी के बर्ताव में एक किस्म का फौरीपना है, इसे लेकर सचेत होने की जरूरत है कि कहीं इससे भााषायी लज्जत न बिगड़ जाए। (मीडिया में आए समाचार पर आधारित)

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