स्वास्थ्य

आखिर हमें क्या डरा रहे हैं नए-नए विषाणु

डॉ. एके अरुण II

कोरोना के त्रासद अनुभव के बाद अब देश में एच3एन2 इन्फ्लूएन्जा विषाणु की चर्चा गर्म है। समाचार माध्यमों के अनुसार एच3एन2 वायरस से संक्रमण के बाद लोगों के मौत की खबरें भी आ रही हैं। बताया जा रहा है कि इस इन्फ्लूएन्जा वायरस की वजह से पहली मौत कर्नाटक में तो दूसरी हरियाणा में दर्ज की गई है। अब तक देश में इस विषाणु से ग्रस्त 451 मामले दर्ज किए गए हैं। कोविड-19 जैसे ही लक्षणों वाले इस वायरस का संक्रमण भी तेजी से फैल रहा है। यह वायरस उतना खतरनाक तो नहीं है, लेकिन देश में दहशत फैलाने के लिए पर्याप्त है। इसलिए जरूरी है कि एच3एन2 इन्फ्लूएन्जा के संक्रमण, बचाव व इससे संबंधित प्रमाणिक जानकारी आम नागरिकों तक समय रहते पहुंच जाए। यदि आप इस वायरस के संक्रमण, उससे बचाव, इसकी तीव्रता तथा अन्य संबंधित जानकारी से परिचित होंगे तो यकीन मानें डरने की जरूरत नहीं है।
एच3एन2 इन्फ्लूएन्जा का दूसरा नाम हांगकांग फ्लू है। यह इन्फ्लूएन्जा ए का उप प्रकार एच3एन2 इन्फ्लूएन्जा है। इस विषाणु के संक्रमण से व्यक्ति में सांस संबंधी परेशानी आ जाती है। जुकाम, नाक बहना, गले में खराश, बदन दर्द,  सिर दर्द, ठंड लगना, थकान, उल्टी, दस्त आदि लक्षणों के साथ तीन से पांच दिनों तक बुखार आ सकता है। आम तौर पर ये लक्षण एक सप्ताह तक रह सकते हैं। यह भी ड्रापलेट संक्रमण है इसलिए कोरोना वायरस से बचाव के तरीके अपना कर इस विषाणु संक्रमण से भी बचा जा सकता है। यानी मुंह और नाक को मास्क से ढकना, दूरी बनाए रखना, हाथ धोते रहना आदि सावधानियां इस संक्रमण से बचा सकती है। गर्भवती महिलाएं, युवा व बच्चे, बुजुर्ग तथा गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इस विषाणु से बचाए रखना बेहद जरूरी है। इस बीच भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने परामर्श जारी कर बताया है कि इस वायरस के संक्रमण वालों में दस फीसद लोग गंभीर सांस संबंधी समस्याओं की शिकायत करते हैं जिन्हें आक्सीजन की जरूरत पड़ती है जबकि लगभग सात फीसद मरीजों को आईसीयू में रखने की स्थिति हो सकती है।
एच3एन2 वायरस पहली बार 1968 में हांगकांग में देखा गया था तभी से इसे हांगकांग फ्लू के नाम से जाना जाता है। बाद में इस विषाणु ने सिंगापुर, ताइवान, मलेशिया, वियतनाम, फिलीपींस आदि देशों में अलग अलग स्वरूप के रूप में अपना फैलाव किया तब से इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया। कहते हैं कि एशियन फ्लू 1957 के 11 वर्षों बाद आई इस फ्लू महामारी से तब दुनिया भर में दस लाख तथा अमरीका में एक लाख लोगों की मौत हुई थी। यह वायरस लगभग हर साल फरवरी-मार्च के महीने में फैलता है। यह वायरस समय के साथ-साथ म्यूटेट भी होता रहता है। इसे चिकित्सा की भाषा में ‘एन्टीजन ड्रिफ्ट’ कहते हैं। वायरसों से संबंधित दो बहुत ही समान शब्द ‘एन्टीजन ड्रिफ्ट’ तथा ‘एन्टीजन शिफ्ट’ अक्सर सुनने में आता है। ‘एन्टीजन ड्रिफ्ट’ को ‘एलील ड्रिफ्ट’ भी कहते हैं। यह एक प्रकार की अनुवांशिक भिन्नता है। इस गुण की वजह से यह विषाणु प्रतिरक्षित आबादी में भी फैल जाता है। ‘इन्फ्लूएन्जा ए’ तथा ‘इन्फ्लूएन्जा बी’ ये दोनों वायरस ‘एन्टीजन ड्रिफ्ट’ की वजह से घातक माने जाते हैं। इसलिए इससे बचाव के टीके भी प्रमाणिक रूप से नहीं बन पाए हैं।
इस बीच भारत सरकार ने राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर कहा है कि इन्फ्लूएन्जा महामारी के बीच फिर से कोरोना संक्रमण के मामले भी बढ़ रहे हैं। बीते एक हफ्ते में जहां रोजाना कोई 200 कोरोना संक्रमण के मामले थे अब दोगुना से ज्यादा यानी 400 की संख्या में दर्ज किए जा रहे हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों को मेडिकल आक्सीजन की उपलब्धता, कोविड 19 और इन्फ्लूएन्जा के टीका, दवाइयां व अस्पतालों को तैयार रहने का निर्देश दिया है। केंद्र सरकार की एडवाइजरी में टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट, वैक्सीनेशन तथा प्रोटोकाल पर जोर दिया गया है। कोरोना  संक्रमण और इन्फ्लूएन्जा एच3एन2  संक्रमण के लक्षणों में समानता की वजह से सामान्य तौर पर यह निर्णय ले पाना कठिन है कि कौन सा संक्रमण कोरोना है और कौन सा इन्फ्लूएन्जा? इसलिए सलाह है कि सर्दी-जुकाम, बुखार, बदन दर्द और सांस की तकलीफ यदि लक्षण के रूप में दिखें तो तुरन्त पृथकवास में जाएं और ऐहतियात शुरू कर दें। महामारियों के संदर्भ में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि बचाव ही बेहतर है।
एच3एन2 इन्फ्लूएन्जा के साथ-साथ देश में एच1एन1 का संक्रमण भी पैर पसार रहा है। एच1एन1 संक्रमण को स्वाइन फ्लू के नाम से जानते हैं। भारत सरकार के इन्टीग्रेटेड डिजिज सर्विलान्स प्रोग्राम (आईडीएसपी) के अनुसार दिल्ली सहित कई राज्यों में एच1एन1(स्वाइन फ्लू) वायरस के संक्रमण को भी नोट किया गया है। अब तक एच1एन1 के 1000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और गुजरात,  केरल और पंजाब में मामले सामने आए हैं। आईडीएसजी के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2023 में श्वसन संबंधी बीमारी तथा इन्फ्लूएन्जा के 3 लाख 97 हजार मामले सामने आए थे जो फरवरी में बढ़ कर 4 लाख 36 हजार हो गए थे। इसी आंकड़े के अनुसार 10 मार्च 2023 तक महज एक हफ्ते में ही इन्फ्लूएन्जा के एक लाख 33 हजार मामले सामने आए। ये आंकड़े डर पैदा करते हैं लेकिन मेरी सलाह है कि डरने की बजाय सावधानी बरत कर इन खतरों से बचा जा सकता है। सभी विशेषज्ञ यही कह रहे हैं कि श्वसन संबंधी इन सभी संक्रमणों की सामान्य तौर पर जांच करना संभव नहीं है लेकिन हर संक्रमण में सावधानी बरतने से खतरों से बचा जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यह चेतावनी दे रहा है कि अगले पांच दशक में महामारियां घातक और लाइलाज हो सकती हैं। तमाम दवाओं/टीकों के बावजूद इन वायरस महामारियों को रोक पाना संभव नहीं होगा क्योंकि हमने बेतरतीब विकास के नाम पर अप्राकृतिक झुंड व जमावड़ा खड़ा कर दिया है।

सवाल है कि चिकित्सा तकनीक और सुविधाओं के लगातार बढ़ने और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के बावजूद महामारियां थमने का नाम क्यों नहीं ले रहीं? कोरोना संक्रमण की भयावहता ने दुनिया को दिखा दिया कि तकनीकी विकास और वैभव के आडम्बर से बुनियादी चुनौतियां कम नहीं होतीं। देखा जा रहा है कि बरसों पहले जिन बीमारियों-महामारियों को खत्म कर देने का दावा किया गया था, वे अब फिर से रूप बदल कर पैर पसार रही हैं। यह भी देखा जा रहा है कि सभी घातक बीमारियां और महामारियों से बचाव के टीकाकरण के बावजूद भी स्वस्थ्य एजेन्सियां यह भरोसा नहीं दिला पा रहीं कि बीमारियां लोगों की जान नहीं लेंगी। उपचार और दवाओं के विकास के बावजूद बीमारियों की तीव्रता कम नहीं हो रही। लोगों की जीवनीशक्ति या इम्युनिटी इतनी कमजोर हो गई है कि वह किसी भी सामान्य फंगस, वायरस या बैक्टीरिया का शिकार हो जा रहा है। हमारी जीवनशैली और खानपान में बदलाव ने जीवन के समक्ष संकट को और बढ़ा दिया है। इसलिए दीर्घ जीवन तथा स्वास्थ्य की गुणवत्ता के लिए नए सिरे से सोचने की जरूरत है।
महामारियों के घातक होने के कारणों की पड़ताल जरूरी है। बीते सौ सालों में यदि महामारियों के फैलने और जानलेवा होने की परिस्थितियों को देखें तो वायु के संपर्क आने वाले विषाणुओं में तेजी से फैलाव हुआ है। दुनिया के लग•ाग सभी देश महामारियों से जूझ रहे हैं। कोरोना संक्रमण, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, हांगकांग फ्लू, मस्तिष्क ज्वर (जापानी बुखार) आदि सभी वायरल बुखार हैं लेकिन जानलेवा हैं। दुनिया में प्रकृति की अनदेखी कर कृत्रिम विकास की बहुमंजिली प्रस्तुति क्षणिक आकर्षण तो पैदा करते हैं लेकिन हम यह नहीं समझ पा रहे कि इसकी कीमत भी हम ही जान देकर चुका रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यह चेतावनी दे रहा है कि अगला पांच दशक महामारियों के घातक और लाइलाज होने का दशक है। तमाम दवाओं/टीकों के बावजूद इन वायरस महामारियों को रोक पाना संभव नहीं है क्योंकि हमने बेतरतीब विकास के नाम पर अप्राकृतिक झुंड व जमावड़ा खड़ा कर दिया है। घना शहरीकरण, कटते जंगल, बड़े-बड़े बांध, कूड़े का ढेर आदि वायरस, बैक्टीरिया के आरामगाह हैं जो इन महामारियों के साल-दर-साल फैलते रहने और पहले से ज्यादा घातक होने की अनिवार्य शर्तें हैं।
एच3एन2 तथा एच1एन1 इन्फ्लूएन्जा वायरस मानवता के लिए निश्चित ही चुनौती हैं। हमें यह समझ लेना चाहिए कि बीमारियों महामारियों के इस विकास क्रम में हमने ही योगदान दिया है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में सामान्यत: महामारियां मनुष्यों और जानवरों को अलग-अलग प्रभावित करती हैं। लेकिन इधर देखा जा रहा है कि जानवरों में होने वाली महामारियां अब मनुष्यों को संक्रमित कर रही हैं। जानवरों से मनुष्यों में आई महामारियों ने चिकित्सा विज्ञान के लिए एक अलग प्रकार की चुनौती खड़ी कर दी है। जानवरों और इंसानों के जैविक संरचना में भिन्नता के कारण इन महामारियों के बचाव और उपचार में भी दिक्कतें आ रही हैं।
एक बात और कि ये महामारियां समय के विकासक्रम में अपने को और संशोधित व परिमार्जित कर घातक रूप में प्रकट हो रही हैं। दवाएं/टीके बेअसर हो रहे हैं। महंगे उपचार और महंगी दवाओं को खरीदने में असमर्थ देश की 80 फीसद जनता मौत को ही अपनी नियति मान बैठी है।
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डॉ. ए.के. अरुण जाने-माने जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

About the author

AK Arun

डॉ. एके अरुण देश के प्रख्यात जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक और संपादक हैं। साथ ही परोपकारी चिकित्सक भी। वे स्वयंसेवी संगठन ‘हील’ के माध्यम से असहाय मरीजों का निशुल्क उपचार कर रहे हैं। डॉ. अरुण जटिल रोगों का कुशलता से उपचार करते हैं। पिछले 31 साल में उन्होंने हजारों मरीजों का उपचार किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। कोरोना काल में उन्होंने सैकड़ों मरीजों की जान बचाई है।
संप्रति- डॉ. अरुण दिल्ली होम्योपैथी बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं।

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