बाल कविता बाल वाटिका

अगले जन्म में फिर बनना मेरे पिता

राकेश धर द्विवेदी II

याद आता है
जब मैं छह माह का था
मध्यरात्रि में नन्हें हाथों से
से जगाता था तुम्हें और
घंटों तुम्हारे खेलता था साथ
और सो जाता था थक कर।
तुम उनींदे रह जाते थे
इस रतजगे के कारण।

याद आता है
नामी स्कूल में मेरे दाखिले के लिए
कतार में घंटों फार्म लिए खड़े रहना
मेरा व्यक्तित्व परीक्षण में फेल होना
फिर तुम्हारा व्यक्त्वि परीक्षण होना और
तुम्हारी कई मिन्नतों के बाद
स्कूल में मेरा दाखिला होना।

याद आता है
अनेक परीक्षाओं में मेरा
अनुत्तीर्ण होना और
कमरा बंद कर रोना फिर सो जाना,
तुम्हारा धीरे से आाना
उठाना, खाना खिलाना
और कमरे से चुपचाप निकल जाना।

याद आता है
बैंक से लोन लेकर
मुझे इंजीनियरिंग कालेज में
दाखिला दिलाना
अपने पुराने स्कूटर को
बार-बार किक मारना
लेकिन मुझे नामी कंपनी का लैपटॉप दिलाना।

याद आता है
मेरा स्वदेश में नौकरी न मिलना
फिर विदेश जाकर काम करना
मोबाइल पर घंटों तुमसे बातें करना
और तुम्हारी स्मृतियों में खो जाना

याद आता है
तुम्हारे स्मृति शेष रहने की खबर सुनना
छुट्टी न मिलने पर तुम्हारी अंतिम यात्रा
में शमिल न होना और
तुम्हें याद कर घंटों रोना
सिरहाने रखे तकिए का भीग जाना।

याद आता है
घर की दीवार पर
तुम्हारा तस्वीर बन कर टंग जाना
एकटक तुम्हें देखना और
आंसुओं को पोंछ लेना
ईश्वर से प्रार्थना करना
कि अगले जन्म में तुम्हें ही
मेरा फिर से पिता बनाना।

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ashrutpurva

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