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विनोबा के साथ रह कर प्रभाष जोशी ने जो रिपोर्टिंग की, वह कालजयी : हरिवंश

 अश्रूत पूर्वा II

नई दिल्ली। पुस्तक ‘विनोबा के साथ उनतालीस दिन’ नए पुराने सभी पत्रकारों के लिए प्रासांगिक हैं। यह पुस्तक उन सभी को पढ़ना चाहिए जो विनोबा भावे और महात्मा गांधी को समझना चाहते हैं। यह बात राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने रविवार को विनोबा दर्शन पुस्तक के लोकार्पण समारोह को गाजियाबाद के मेवाड़ शैक्षणिक संस्थान में संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि विनोबा के साथ उनतालिस दिन रह कर उसकी रिपोर्टिंग करना प्रभाष जोशी के करियर की बुनियाद है। उन्होंने जो उनतालीस दिन इंदौर में बिताए और उसकी रिपोर्टिंग की वह अद्भुत है। उन्होंने उस दौरान जो रिपोर्ट लिखी वह कालजयी हो गई। राज्यसभा के उपसभापति ने कहा कि पत्रकारों को रिपोर्टिंग का गुर सीखने और सहज लेखन के लिए इस पुस्तक को जरूर पढ़ना चाहिए। हम आज कहां खड़े हैं और हमें क्या करना चाहिए? यह पुस्तक उसके लिए प्रेरित करती है। विनोबा पश्चिम के भौतिकवादी विकास के विरोधी थे।
वरिष्ठ पत्रकार बनवारी ने कहा कि विनोबा राजनीतिक समस्या का सामाजिक ताकत से हल निकालते रहे। उन्होंने समाज को तोड़ने वाली शक्तियों को रोकने के लिए काम किया। प्रभाष जोशी  ने जो विनोबा के साथ उनतालीस दिन बिताए और उनकी रिपोर्टिंग की, वह साहित्य है या रिपोर्ट है यह कहना कठिन है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि यह पुस्तक विनोबा दर्शन नहीं विनोबा दृष्टि है। यह जीवन जीने की दृष्टि है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के स्वराज के सपने को विनोबा भावे ने कैसे लागू करने का प्रयास किया और उस यात्रा को प्रभाष जोशी ने कैसे अपने रिपोर्टिंग के माध्यम से साकार किया यह पुस्तक उसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
राय ने पत्रकारिता के छात्रों और पत्रकारों के लिए इस पुस्तक को अत्यंत उपयोगी बताते हुए कहा कि यह अकेली पुस्तक है जो सबकुछ बताती है जो विनोबा जी करना चाहते थे। इसी यात्रा के बाद विनोबा को लोगों ने बाबा कहना शुरू किया। उन्होंने ‘दया धर्म का मूल है’ को उद्धृत करते हुए कहा कि भूदान आंदोलन विनोबा के करुणा का उदाहरण है। गांधी के अधूरों कार्यों को विनोबा पूरा करना चाहते थे। यह पुस्तक हमें बताती है कि 1947 में जो स्वराज आया वह गांधी का स्वराज नहीं था। यह बात विनोबा ने कही थी। यह बात आज भी प्रासंगिक है। गांधी की कल्पना के स्वराज को लेकर विनोबा ने गांव-गांव यात्रा की। उन्होंने अपनी यात्रा के लिए जम्मू-कश्मीर, काशी और इंदौर को चुना।
वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार ने कहा कि यह पुस्तक विनोबा और प्रभाष जोशी को समझने के लिए उपयोगी है। सामान्य काम को तो कोई भी कर सकता है लेकिन असाधारण, असामान्य और चुनौतीपूर्ण काम ही व्यक्ति को खास बनाता है। प्रभाष जोशी पत्रकारिता के शिखर पुरुष ऐसे ही नहीं बने। इस किताब को पढ़ते हुए आपको इस बात का एहसास होगा कि यह काम कोई जीनियस ही कर सकता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक अनिवार्य पाठ है।
कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार और प्रभाष परंपरा न्यास के अध्यक्ष बनवारी ने प्रभाष जोशी से जुड़े अपने संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि विनोबा भावे के साथ बिताए उनके उनतालीस दिनों ने उन्हें देश का चर्चित पत्रकार बना दिया। मनोज मिश्र ने पुस्तक की रचना को लेकर अपने अनुभवों को साझा किया। मेवाड़ इंस्टीट्यूट की निदेशक अलका अग्रवाल ने आभार जताया।

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