कविता

सच बतलाना शिव

पल्लवी मिश्रा II

सच बतलाना शिव
बांधा था तुमने जब
अपनी जटाओं में
गंगा की अविरल धार
उस स्निग्ध बंधन में
तुम बंधे थे ?
सच बतलाना शिव
जब बह निकली थी
तुम्हारी जटाओं से
उन्मुक्त गंगा
तुम बिखरे थे उस पल
कुछ टूटा था तुममें ?
सच बतलाना शिव
जब तुम कृष्ण बन
भर रहे थे प्रेम रस
प्रकृति के पोर पोर में
तब तुमने चाहा था
मथुरा नरेश बन जाना ?
सच बतलाना शिव
राम के हृदय में बैठे
तुम कर रहे थे वन में
जब बरसों की गणना
देख लिया था तुमने
सीता का निर्वासन ?
सच बतलाना शिव
जब सती का भस्म
लपेट लिया था तुमने
तब तुममें क्या
सिर्फ क्रोध जागा था
सती सामिप्य ने शीतलता न दी ?
सच बतलाना शिव
जब पार्वती निर्मित गणेश को
तुमने पुचकारा था
प्रथम पुज्य बनाया था
तब स्त्री के ब्रम्हा हो रहे स्वरूप पे
तुम अचंभित हुए थे ?
सच बतलाना शिव
नश्वरता में अमर रहना

                        

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पल्लवी मिश्रा

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