गजानन माधव मुक्तिबोध II
विचार आते हैं-
लिखते समय नहीं,
बोझ ढोते वक्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करत समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में।
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं,
…पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
सांप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त!!
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाते हैं
समय पृथ्वी बन जाता है…।
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नवंबर में 13 तारीख को गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्मदिन था। शायद ही किसी ने उनको याद किया हो। मगर साहित्य के इस नक्षत्र को क्या भूला जा सकता है? इनकी कविताएं किसी भी पाठक के लिए पहले-पहल जटिल लगती हैं, लेकिन बाद में सहज लगती हैं।