राकेश धर द्विवेदी II
जब रात चांदनी रो-रोकर
कोई गीत नया सुनाएगी,
ओस की बूंद बन कर
धरती पर वह छा जाएगी।
उसकी उस मौन व्यथा को
तुम शब्दों का रूप दे जाओगे,
प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे।
जब आंसू बह कर के
कपोलों पर ठहरे होंगे,
जब काजल के शब्दों ने
कुछ गीत नए लिखे होंगे
तब इन गीतों के शब्दों में
तुम ध्वनि बन कर जाओगे,
प्रिय मेरी तुम मेरी कविताओं में आओगे।
जब पीड़ा अपने स्वर को
कैनवस पर मुखरित करेगी
गजल और गीत बन कर वो
मन-मंदिर को हर्षित करेगी
तब तुम श्याम की बांसुरी बन कर
तन-मन को महकाओगे,
प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे।