बाल कविता बाल वाटिका

दादा की शहजादी घूमेगी बाजार

सांवर अग्रवाल II

दादा का हाथ पकड़,
चल पड़ी है शहजादी,
घूमेंगे बाजार में मेला,
खूब मिली है आजादी।

दादा के संग खेलूं लूडो,
मैं दादा की प्यारी गुड्डो,
मुझको रखते हर पल पास,
संग खेलते मेरे ताश।

दादा कहते मुझको परी,
मेरे लिए लाते कैडबरी,
पहना कर दादा मुझको पायल,
हो जाते खुद भी पागल।

मुझे स्कूल से लेकर आते,
होमवर्क पूरा करवाते,
मम्मी से भी मुझे बचाते,
पापा को भी डांट लगाते।

कहते है मुझको रोज,
तुमको डॉक्टर बनना है,
जब मैं बीमार हो जाऊं,
मेरा इलाज तुमको करना है।

About the author

सांवर अग्रवाल

सांवर अग्रवाल कपड़े के कारोबारी हैं। असम के तिनसुकिया में वे रहते हैं। दो दिसंबर 1965 को जन्मे अग्रवाल स्वभाव से मृदुल और कर्म से रचनात्मक हैं। बातों बातों में अपनी तुकबंदियों से वे पाठकों और श्रोताओं को चकित कर देते हैं। वे लंबे समय से बाल कविताएं रच रहे हैं। सांवर अग्रवाल बाल कवि के रूप में चर्चित हैं।

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