रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पाइए, टूटे मुक्ता हार।
समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।
निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।
खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।
संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।
माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।
वृक्ष कबहूं नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।