संजय स्वतंत्र II
तुम नहीं थी
तब भी थी तुम
मेरी शून्यता में
कई शून्य लेकर,
तुम नहीं थी मगर
तुम्हारे शब्द थे,
जिसे सुन सकता था
देख सकता था मैं
शब्दों में तुम्हें
आकार लेते हुए।
तुम न थी
तुम्हारी आहट थी
संगीत था अकेलेपन का।
तुम्हारे मौन में
मुखर था कोई प्रेम गीत
धरती और सूरज के लिए,
चांद की शरारत तो देखो
चला आता है उनके बीच।
तब तुम नहीं
मैं भी नहीं,
हमारे बीच सिर्फ शब्द हैं
जो हमारी शून्यता को
भर रहे हैं आज भी।
सुनो-
तुम्हारे टोकरी में
कितने फूल हैं,
कितने शब्द हैं?
कुछ हफ्ते पहले आसमान में रिंग आफ फायर बनने पर लिखी गई कविता।
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