कविता काव्य कौमुदी

अस्सी घाट का छोटू

सुगंधि कुलसिंघे II

सब कहते हैं कि
छोटू तू बड़ा कमीना निकला,
जब देखता हूं
तब गोरियों को ही
चाय बेचता है हरामी…

पहले तो आपको भी बेचता था
तभी तो कहते थे
चीनी कम, दूध कम
कभी घटिया चाय,
नहीं तो ठंडी चाय
कभी पैसे भी नहीं दिए थे आप।

यहां के हर एक
कहते थे
अरे ओ…
छोटू इधर आ…
चाय ला…
ऐ… लड़का…
चल बे…
कौन पिएगा तेरे से…
तभी तो आप लोग
बड़े मुश्किल से
दस के बदले पांच रुपए दिए थे

प्राय:
सर कहते हैं,
ऐ… छोटू चार चाय दो
तब मेम साहेब,
ना जी, इसका हालत तो देखो,
चलो वहां से कॉलड डार्किंस पिएंगे

घाट पर पड़े बाबा जी
सदैव कह रहे थे
‘क्यों नहीं
दो तीन कस्टमर ला
तब पिऊंगा’

पान चबाने वाले
मल्लाह भी
कहते थे
‘नाव में पोछा लगाओ
वरना नहीं पिऊंगा चाय’

एक दिन एक गोरी मैम
घाट पर अकेली
बैठी थी
टूटी-फूटी हिंदी में बोली
‘छोटू इधर आइए
मुझे एक कप चाय दीजिए
छोटू आप स्कूल क्यों नहीं जाते?’

जिंदगी में पहली बार
गला भर आया-
‘अगर मैं स्कूल जाऊं तो बहन के
स्कूल की फीस कौन भरेगा?’
वह हाथ कंधों पे रख कर
बोली- बी स्ट्रोंग
उसी दिन से मैं चाय नहीं, टी बेचता हूं।

About the author

सुगंधि कुलसिंघे

सुगंधि कुलसिंघे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने उर्दू की भी पढ़ाई की हैं। हिंदी में कविता लिखती हैं। वे अपने देश श्रीलंका की सिंहली भाषा के साहित्य का हिंदी में अनुवाद करती है। सुगंधि यूट्यूब के जरिए सिंहली भाषियों को हिंदी लिखना पढ़ना और बोलना सीखा रही हैं। इस तरह उन्होंने हजारों लोगों को हिंदी सिखाई है। इसके लिए उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है। उनका हिंदी प्रेम बहुत अद्भुत है।
हिंदी की सेवा करने के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने उनको सम्मानित किया है। हिंदी भाषा के विकास के लिए उनको काका साहब कालेलकर राष्ट्रीय सम्मान देने की घोषणा की गई है।

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