कविता काव्य कौमुदी

खाट के नियम

डॉ अनीता सिंह II

वह बुनता जाता
गिनता जाता
इं चं जम(यम) राज
ये कैसी गिनती है
कैसा पहाड़ा
किसी स्कूल में
न पढ़ा न सुना
गिना जा सकता था इसे
एक दो तीन चार
जब तक
जारी रहा बुनना
जारी रहा
गुनना
खाट तैयार होते ही
विजयी मुस्कान लिये
खोला उसने राज
यह महज खाट नहीं
जुड़ा है इससे
उपयोग करने वाले की
स्वास्थ्य सम्पदा
लाभ हानि
हर चार पट्टियों की
है अपनी महिमा
इंद्र घर नींद
चन्द्र घर चोरी
जम (यम) घर मृत्यु
राज घर भोगी
इसलिये
कोशिश होती है कि
बुनने से
ओर॒चन कसने तक
हर खाट में अंततः
सम आये चार का।
(सज्जन बैठे आठ कभी न टूटे खाट
दुर्जन बैठे एक, टूटे खाट अनेक )

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डॉ अनीता सिंह

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