कहानी बाल वाटिका

निकी और परी की बांसुरी

बाल कहानी II

भूगोल की क्लास में मास्टर जी ने कई बातें बताईं। मरुस्थलों के बारे में भी उन्होंने समझाया। लेकिन निकी को यह बात समझ में नहीं आई कि रेगिस्तान में बादल क्यों नहीं बरसते। वहां क्यों नहीं होती हरियाली? स्कूल से घर लौटने के बाद भी वह मरुस्थलों के बारे में ही सोचती रही। खाना खाने के बाद निकी आराम करने के लिए लेटी ही थी कि उसे नींद आ गई।
निकी अब सपनों की दुनिया में थी। उसने खुद को रेगिस्तान में पाया। हर तरफ रेत ही रेत दिखाई पड़ रही थी। दूर-दूर तक न कोई जानवर न आदमी और न ही कोई घर; कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रह-रह कर बांसुरी की आवाज सुनाई पड़ रही थी। सुनसान रेतीले मैदान में बांसुरी की आवाज सुनकर निकी को अचरज हुआ। साथ ही उसे डर भी लगने लगा। घबरा कर वह दौड़ने लगी। डरी-सहमी निकी दौड़ते-दौड़ते इतनी थक गई कि वह गरम रेत पर गिर पड़ी। वह फूट-फूट कर रोने लगी। तभी किसी ने उसके सिर पर हाथ रखा। निकी ने देखा सामने एक परी है। उसने चमचम कपड़े पहन रखे थे। उसकी पीठ पर पंख थे और हाथ में बांसुरी। निकी ने किस्से-कहानियों की किताब में परियों के बारे में जो पढ़ा था ठीक वैसी ही वह परी थी।
निकी ने पूछा-तुम कौन हो। परी ने कहा-मैं रानी हूं। इसी रेगिस्तान में रहती हूं। आओ तुम्हें अपने घर ले चलूं। चलोगी मेरे घर? निकी ने सिर हिलाया। परी उसका हाथ पकड़ कर चलने लगी। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर एक कार दिखाई दी। निकी को आश्चर्य हुआ। रेगिस्तान में कार! भला यह कैसे चलती होगी रेत पर। निकी के मन की बात परी ने जान ली। बोली- यह चलने वाली नहीं उड़ने वाली कार है। निकी ने उड़ने वाली कार के बार में पढ़ा तो था पर उसे पहली बार देख रही थी।
परी और निकी दोनों कार में बैठ गईं। परी ने एक बटन दबाया और कार सर्र से उड़ चली। निकी को बड़ा मजा आ रहा था। उसने शीशे से नीचे देखा। हरे-भरे कई पेड़ हवा में झूम रहे थे। निकी आश्चर्य में पड़ गई। रेगिस्तान में इतने सारे पेड़? परी रानी ने निकी के मन की बात फिर जान ली। बोली-निकी, ये जो तुम पेड़ देख रही हो न, ये दरअसल प्लास्टिक के हैं। परी की बात सुनकर निकी को बहुत अचंभा हुआ। प्लास्टिक के पेड़। लेकिन ये तो सचमुच के लग रहे हैं।
निकी क्या तुम इन पेड़ों को नजदीक से देखना चाहोगी? परी ने पूछा। हां-हां क्यों नहीं! जरूर देखूंगी, निकी बोली। परी ने एक बटन दबाया। कार धीरे-धीरे प्लास्टिक के पेड़ों के बीच उतरने लगी। कुछ ही पल में कार रेत पर खड़ी थी। निकी और परी दोनों कार से बाहर निकले। वहां का वातावरण इतना सर्द था कि निकी भूल गई कि वह रेगिस्तान में खड़ी है। उसने पेड़ों को छू कर देखा। वे सच में प्लास्टिक जैसे थे। यहां तक कि पत्तियां भी। लेकिन वे असली पत्तियों की तरह लग रही थीं।
क्या इन प्लास्टिक के पेड़ों को उगाने के लिए पानी की जरूरत नहीं पड़ती, निकी ने पूछा। परी मुस्कुराई और बोली-ज्यादा तो नहीं थोड़ा पानी से काम चल जाता इन पेड़ों का। यदि असली पेड़ों के साथ ढेर सारे प्लास्टिक के पेड़ लगाए जाएं तो ये बारिश का पानी से ही काम चला कर मरुस्थल को हरा-भरा बना सकते हैं। और जानती हो निकी, मरुस्थल की ठंडी रेतों में जो नमी पैदा होती है उसे ये प्लास्टिक के पेड़ सोख लेते हैं। यही नमी दिन की गर्मी में पेड़ों से बाहर आकर वातावरण को ठंडी कर देती है। निकी परी रानी की बात बहुत ध्यान से सुन रही थी।
परी ने कहा-सबसे अच्छी बात यह है कि प्लास्टिक के इन पेड़ों को किसी रख-रखाव की जरूरत नहीं। इस पेड़ में लकड़ी नहीं होती। इसलिए लकड़ी के लालच में इसे कोई काटेगा नहीं । निकी के मन में सवाल उठा। परी रानी समझ गई, बोली- निकी तुम्हारे मन में यही सवाल उठ रहा है न, कि ये पेड़ किस चीज के बने हैं? दरअसल ये पेड़ अग्नि प्रतिरोधक पालीयूरेथीन और फिलीय फोम से बने हैं। पानी के वाष्पीकरण और उसे फिर से गाढ़ा करने का काम ये पेड़ दूसरे पेड़ों की तरह ही करते हैं। चार साल तक अनुसंधान के बाद तैयार प्लास्टिक के पेड़ों में दूसरे पेड़ों की तरह ही जड़, तना और पत्तियां होती हैं। कड़क नलीदार तने में पालीयूरेथीन भरा रहता है। वही कोशिका क्रिया से पानी को सोखता है। दिन में इसी पानी को हवा में छोड़ता है। बाद में इसी की नमी से रेगिस्तान में बादलों के आने का रास्ता खुलेगा। तब यहां भी हुआ करेगी झमाझम बारिश।
परी रानी यह कह कर चुप हो गई। उसने अपने होठों से बांसुरी लगा ली। बांसुरी की मीठी तान के साथ ठंडी हवा बहने लगी। प्लास्टिक के पेड़ झूमने लगे। निकी बांसुरी की तान में खो गई। उसने देखा परी गायब है। लेकिन बांसुरी की आवाज रह-रह कर सुनाई पड़ रही थी। दूर से उसे कोई पुकार रहा था-निकी ओ निकी। और तभी निकी की आंखें खुल गई। सामने मां खड़ी मुस्करा रही थी।’ ओह कितना अच्छा सपना देख रही थी मैं… निकी ने सोचा और वह उठ गई। उसके कानों में अब भी बांसुरी बज रही थी।  

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ashrutpurva

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