कथा आयाम कहानी

कहानी : तुम लौट आओ ना…

राकेश धर द्विवेदी II

नीले आकाश में बादलों और सूरज के बीच ट्वेंटी-ट्वेंटी का मैच चल रहा था। कभी बादलों के बीच सूरज छिप जाता तो लगता बादल जीतने की स्थिति में आ रहे हैं और यदि बादलों को चीर कर अरुणदेव प्रकाशमान हो जाते तो लगता वे जीत के करीब हैं। मैं दर्शक दीर्घा में खड़ा इस मैच को देख रहा था कि सामने की बालकनी से उसकी आवाज को सुना- अरे हैंडसम, आज कॉफी-डे में तुम कॉफी पिलाओगे या नहीं? तुम कब से मुझे टरका रहे हो?

मैंने बगल की बालकनी की तरफ झांक कर देखा। चांद बालकनी में निकला हुआ था। सूरज उससे शरमा कर फिर बादलों की गोद में छिप गया था। मैंने धीरे से कहा-आज कॉफी जरूर पिलाऊंगा। मौसम भी यही दरख्वास्त कर रहा है। थोड़ी देर में मैं उसके साथ कॉफी-डे में बैठा था। थोड़ी देर में मैं उसके साथ कॉफी-डे में बैठा था। वह बोले जा रही थी-तुम्हें मालूम है, जल्दी ही मौसी आने वाली हैं। वो ढेर सारा विदेशी सामान मेरे लिए लाएंगी।

वो बोलती जा रही थी और मैं चुपचाप उसकी झील-सी नीली आंखों को देख रहा था कि अचानक मैं बोल पड़ा- मौसी तो अमेरिका से आ रही हैं ना? अरे! तुम्हें नहीं मालूम? मौसी तो कनाडा में रहती हैं। उसका मुंह गुस्से से लाल हो गया था।

मैंने उसे फिर मनाते हुए कहा-अरे हां, अमेरिका-कनाडा सब कॉन्टिनेंट तो एक है ना? मुझे लगा ये ब्यूटीफुल है और जब गुस्से में रहती है तो ‘मोस्ट ब्यूटीफुल’ हो जाती है। उसे शायद ये एक्सक्यूज समझ में आ गया था। वह बोली, देखो, तुम कभी-कभी इंटेलीजेंट जैसे बात करते हो। मुझे अपने आप पर भरोसा नहीं हो पा रहा था। आज ये भी मुझे इंटेलीजेंट कह रही है, चाहे कभी-कभी ही सही।

मैंने उत्साह से पूछा- क्या कुछ स्नैक्स भी लोगी? मेरी जेब में पड़ा हुआ हजार का इकलौता नोट मेरे उत्साह को कम नहीं होने दे रहा था। लेकिन वह कुछ और भी खाने के मूड में नहीं थी। वह केवल मौसम के बारे में बता रही थी और मैं एक आदर्श विद्यार्थी की भांति उसकी बातों को सुन रहा था और हां में हां मिला रहा था।

कॉफी की अंतिम सिप खत्म करके वह खड़ी हुई। थोड़ी देर में वह मेरा हाथ पकड़ कर मुख्य सड़क पर थी।

पलक जल्दी, चलो नहीं तो मेट्रो में बहुत भीड़ हो जाएगी। नहीं अमित, आज आॅटो से चलूंगी।  मैंने पैंट में हाथ डाला तो बचे हुए नोटों की सांस बाकी थी। इससे पहले कि मेरे मुंह की नर्वसनेस को वह पढ़ पाती, मैंने आवाज दी- आॅटोऽऽऽऽ। जी सर, कहां चलेंगे?

द्वारका सेक्टर 23, जी जरूर। कितने पैसे लगेंगे? जी 200 रुपए। चलो। मैं उसका हाथ पकड़ कर आॅटो में बैठ गया।

मैंने अपनी पुरानी जिद दोहराई। पलक मैंने एक नई कविता लिखी है, मैं उसे तुम्हें सुनाना चाहता हूं।

नहीं अमित, मैं और बोर नहीं होना चाहती हूं। मैं पहले ही तुम्हारी कविता सुन-सुन कर बोर हो चुकी हूं। रही बात सफलता की, तो तुम पत्रकारिता छोड़ कर कोई दूसरा प्रोफेशन क्यों नहीं चुनते? जिसमें पैसा कमाने का स्कोप हो। कब तक राष्ट्रीय अखबार के स्ट्रिंगर बन कर घूमोगे? और सुनो, कभी तो बताओ कि तुम्हारी सैलरी 20,000 से ज्यादा हो गई है।

मैंने उसे मनाते हुए कहा- ये गुलाब का फूल ले लो। स्पेशली तुम्हारे लिए खरीदा है।

ठीक है, ले लेती हूं और उसने झल्ला कर फूल को पर्स में डाल लिया। …लेकिन तुम मुझे जल्दी ही बतलाओ कि तुमने कोई अच्छा प्रोफेशन चुन लिया है। उधर, आॅटो तेजी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था कि वह फलों की दुकान को देख कर तेजी से चिल्लाई- रोको, मुझे सेब और रसभरी लेना है।

मुझे लगा कि मैं उससे कह दूं कि तुम्हें सेब और रसभरी की क्या जरूरत? तुम्हारी आंखें रसभरी हैं और तुम्हारे दोनों गाल कश्मीरी सेब की खूबसूरती को लज्जित करते हैं।

… पर विचार को अपने मन में रख कर मैं सेब और रसभरी लेने चला गया। जेब में 250 रुपए शेष थे। मैंने 200 रुपए में सेब और रसभरी ली और आॅटो में आकर फिर उसके पास बैठ गया। जेब में अब 50 का इकलौता नोट शेष था। मैं भारतीय आॅटो वालों की इस परंपरा को प्रणाम कर रहा था जिसमें किराया एड्वांस में नहीं देना पड़ता है, नहीं तो आज बेइज्जती तय थी।

आॅटो सेक्टर 23 द्वारका पहुंच गया था। उसने मुझे मुस्करा कर कहा-थैंक्स ए लॉट। अमित मुझे घर छोड़ दो। मैंने उसे उसके घर पर छोड़ दिया और आॅटो को चार कदम दूर अपने मकान पर उतरने के लिए कहा।

घर के दरवाजे पर मां खड़ी इंतजार कर रही थीं। मां, जल्दी से 200 रुपए देना तो। … क्यों? तेरे पास 1,000 रुपए थे?

मां, क्या बताऊं, मेट्रो में जेब कट गई। ये तो भगवान का शुक्र था कि 50 रुपए दूसरी जेब में थे।

अरे, ये बात है, तो यह लो 200 रुपए। और मां ने 200 रुपए दिए और मैंने आॅटो वाले को पैसे दे दिए।

मैं अमित द्वारका में पलक के घर के पास ही रहता था। मैं और पलक दोनों द्वारका के पैरामाउंट स्कूल में साथ-साथ पढ़े थे। पलक की दिली तमन्ना थी कि मैं कुछ ऐसा बनूं कि वो मुझे अपने पैरेंट्स के सामने ‘योग्य’ बता सके। लेकिन मैं उसकी उम्मीदों के बिलकुल विपरीत पत्रकारिता के पेशे में आ गया था, जहां न नौकरी सुरक्षित थी, न भारी-भरकम बटुए की उम्मीद।

मैंने रात में पलक का मोबाइल नंबर मिलाया, लेकिन उसने झल्ला कर कहा कि अमित मैं तुमसे तभी बात करूंगी, जब तुम कोई कमाने वाले प्रोफेशन करोगे। और सुनो यही मेरे पैरेंट्स भी चाहते हैं। मैंने अपने पक्ष को उसके सामने रखने का प्रयास किया, लेकिन उसने मोबाइल काट दिया और साइलेंट मोड में कर दिया था।

कुछ हफ्ते बाद पलक आज फिर मुझसे मिली थी। मैंने मुस्कुरा कर पूछा कि पलक तुम कैसी हो? बिलकुल ईद का चांद हो गई हो? उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि बिलकुल पहले की तरह परफेक्टली आॅल राइट। मैंने सहम कर पूछा, तुमने हम दोनों की शादी के बारे में अपने पैरेंट्स से पूछा?

शादी और तुमसे कभी नहीं। केवल कॉफी डे में कॉफी पिएंगे, वह आगे बोली। मैंने पापा को तुम्हारे बारे में बताया कि अमित कविताएं लिखता है। राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में पत्रकार है। कभी-कभी अखबार के पहले पेज पर छपता है। वह अच्छा लड़का है। उसका फ्यूचर मुझे ब्राइट लगता है।

उन्होंने गंभीर स्वर में पूछा कि उसे तनख्वाह कितनी मिलती है?

जी, 20 हजार के आसपास।

मेरा चपरासी टीपू पे-कमीशन आने के बाद 25,000 हजार रुपए पाता है, पापा ने गंभीर स्वर में कहा। और एक बात तुम्हें बताऊं। वो कविताएं भी बड़ी अच्छी लिखता है। कल घर बुला कर उसकी कविताएं तुम्हें सुनाऊंगा। उन्होंने व्यंग्यात्मक आवाज में कहा। तुम लाइट बंद कर दो। वे ऐसा कह कर अपने कमरे में सोने चले गए।

तो क्या हमारे प्यार का यही अंत होगा? अमित ने कातरता भरे स्वर में कहा। हां, बिलकुल। पलक ने जवाब दिया। मैं अपने पैरेंट्स के अगेंस्ट नहीं जा सकती हूं। इतना कह कर वह चली गई। अमित डूबते हुए सूरज को देख रहा था, जो उसके टूटते हुए सपनों पर कोई कविता सुना रहा था।

वह कई सप्ताह से नहीं दिख रही थी। मैं उससे मिलने की चाहत को टाल नहीं सका। मैं उसके घर के बगल में स्थित सिन्हा आंटी के मकान पर पहुंचा व उनसे कहा, आंटी, पलक बहुत दिनों से नहीं दिख रही है? … अरे तुम्हें पता नहीं? उसकी पीठ पर एक गांठ निकल आई है। बहुत दिनों से उसमें दर्द भी हो रहा है। डॉक्टर ने कैंसर सस्पेक्ट किया है और वो उसे दिखाने टाटा मेमोरियल अस्पताल चले गए हैं।

आंटी की बात सुन कर अमित के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसने सारे देवी-देवताओं को याद किया। हे हनुमानजी! हे शंकर भगवान! पलक को कुछ भी न निकले। वो ठीक हो जाए। वह मुंबई जाने वाली गोवा एक्सप्रेस पकड़कर मुंबई की ओर चल पड़ा। वह ट्रेन में ऊपर की सीट पर बैठा हुआ था। रात के 12 बजने वाले हैं। स्लीपर कोच में सारे यात्री सो रहे थे और वो याद कर रहा था।

… पैरामाउंट स्कूल में वो और पलक साथ-साथ पढ़ते थे। पलक कहती थी- मैं तुम्हें अपनी पलकों पर हमेशा सजा कर रखूंगी अमित। उसकी यह दोस्ती कब जवान हुई, कब उच्च नौकरी न पाने की वजह से जवानी में बुढ़ापे का अहसास करने लगी यह, उसे हाल ही में महसूस हुआ।

ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से बढ़ रही थी। पेड़, पर्वत, पठार, मैदान सब छूटते जा रहे थे। वो यादों के झरोखे से झांक रहा था कि तभी मोबाइल के मैसेज ने उसकी विचार यात्रा को भंग किया- ‘बीएसएनएल वेलकम यू इन महाराष्ट्र। आपकी यात्रा मंगलमय हो।’

मैंने सोचा कि चलो कोई तो है, जो ‘वेलकम’ करता है। नहीं तो ‘वेलकम’ सुने हुए कई महीने बीत गए थे। मैं मुंबई स्टेशन पर पहुंच कर सीधे टैक्सी पर सवार हो टाटा मेमोरियल अस्पताल पहुंच गया। सामने रिसेप्शन पर महिला रिसेप्शनिस्ट बैठी थी।

मैंने उससे पूछा, पलक शर्मा किस कमरे में है? जी, 403, चौथे फ्लोर पर। मैं बिना रुके उसके कमरे की तरफ दौड़ गया। मैं थोड़ी देर में उसके कमरे के सामने था।

मैंने कमरे में झांक कर देखा तो उसके पिताजी और माताजी कमरे में मौजूद थे। पिताजी कमरे की खिड़की पर से पर्दा उठा रहे थे। तमाम कोशिशों के बाद सूरज की रोशनी ने खिड़की की जालियों की बंदिशों को तोड़ कर कमरे में प्रवेश कर लिया था। सूरज की किरणें उसके गौर वर्ण पर पड़ रही थीं। मुझे उसकी यह आभा प्रेयसी से ज्यादा दैवीय लग रही थी।

मैंने ऊपर वाले से कहा कि तुमने पलक के साथ यह क्या किया? उसके पिताजी अचानक बाहर कमरे से निकले और मेरे विचार-मंथन को तोड़ते हुए कहा, अरे अमित, तुम यहां क्या कर रहे हो? अंकल, मुझे परसों ही पलक की बीमारी का पता चला और तत्काल टिकट खरीद कर मुंबई आ गया। मैंने सहमते हुए जवाब दिया। क्या हो गया उसे?

उनकी आंखों में वात्सल्य झलक आया और कहा कि जाओ, देख आओ। ब्रेन ट्यूमर है। कैंसर में तब्दील हो गया है। डॉक्टर ने कहा है कि आॅपरेशन होगा। तुम अंदर चले जाओ और उससे बात कर लो। ऐसा कह वे आगे बढ़ गए।

कमरे में वह अकेली थी। मुझे देखकर वह मुस्कुरा दी। तुम नहीं सुधरोगे, उसने कहा।

 मैं सुधरना भी नहीं चलता, मैंने अपनी बात कही। उसने कहा, बैठ जाओ। सामने के सोफे पर मैं बैठा गया। …मेज पर डायरी रखी है, उसे उठाओ। उसने धीरे से कहा।

इसमें क्या है? उसने कहा, मेरी कविताएं।

अब तक मैं तुम्हारी कविता सुनती रही, आज मैं तुम्हें अपनी कविता सुनाऊंगी।

उसने कविता सुनाना शुरू किया-

‘तुम्हारे प्यार की बातें मुझे अक्सर रुलाती हैं,
तुम्हारे साथ की यादें सपनों में सताती हैं।’

इतने में डॉक्टरों की टीम आ गई। डॉक्टर उसे आॅपरेशन थिएटर में ले गए। मैं बेचैन-सा आॅपरेशन थिएटर के सामने घूम रहा था। डॉक्टरों की टीम थोड़ी देर बाद बाहर निकल आई। मैं ईश्वर से उसकी सलामती की दुआ कर ही रहा था कि पलक के माता-पिता रोते हुए बाहर निकले, क्योंकि पलक अब इस दुनिया में नहीं थी।

पलक के पिताजी ने पलक की डायरी मुझे पकड़ा दी। पलक सफेद कपड़ों में टंकी थी। बिलकुल शांत, निर्मल-सी जैसे कुछ बोल देगी।
 मैंने उसकी डायरी पकड़ ली। उसमें से महीने पहले मेरे द्वारा दिया गया गुलाब का सूखा फूल निकलकर बाहर गिर पड़ा।

वातावरण की मायूसी रो-रोकर मर्सिया सुना रही थी कि मैं थके हुए कदमों से जुहू बीच पर पहुंच गया। समुद्र पर नीले आसमान और चांद की छाया पड़ रही थी। समुद्र की लहरें आती थीं और बच्चों के बनाए रेत के घरौंदों को तोड़ कर चली जाती थीं।

मैं संज्ञाशून्य-सा बैठा था। मैंने नीले आकाश की तरफ देखा। अरे ये क्या? पलक कविता सुना रही है- तुम्हारे प्यार की बातें…

मैंने धीरे से कलम उठाई और पास पड़े कागज पर लिखा-

तुम लौट आओ ना,
कुछ मधुर गीत गुनगुनाओ ना,
आखों में बस जाओ ना।

अरे नहीं, पलक तो अब कभी नहीं आ सकती, तो कविता लिखना व्यर्थ है। मैं किसे अब कविता सुनाऊंगा? मैं बुदबुदाया।

नहीं मैं नीले गगन की तरफ जाऊंगा, जहां वह अपनी कविता सुनाएगी और मैं अपनी। मेरी बेरोजगारी व मेरे स्टेटस का कोई झंझट नहीं होगा।

सोचते-सोचते मैंने समुद्र में छलांग लगा दी और थोड़ी देर में मेरा शव समुद्र में तैरने लगा। थोड़ी देर में पुलिस वाले आ गए। उन्होंने गोताखोरों से शव को निकलवाया। पुलिस आॅफिसर ने कड़कते हुए कहा, चेक करो कि कोई सुसाइड नोट?

मातहत सिपाही ने जेब से कागज निकाले।

क्या लिखा है इस पर? आॅफिसर ने कड़क आवाज में कहा।

सर इस पर कविता लिखी है-

तुम लौट आओ ना,
मधुर गीत फिर गुनगुनाओ ना,
आंखों में बस जाओ ना।

About the author

राकेश धर द्विवेदी

राकेश धर द्विवेदी समकालीन हिंदी लेखन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे कवि हैं तो गीतकार भी। उनकी कई रचनाएं प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। द्विवेदी की सहृदयता उनकी रचनाओं में परिलक्षित होती है। उनकी कुछ रचनाओं की उपस्थिति यूट्यूब पर भी देखी जा सकती है, जिन्हें गायिका डिंपल भूमि ने स्वर दिया है।

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