वंदना सहाय II
रख मुट्ठी भर दाना देखो
और चिड़ियों का आना देखो।
चीं-चीं और खाऊं-खाऊं
दाना छोड़ कहीं ना जाऊं।
भूरी-सी श्रीमती मैना बोली-
आ करते हैं हंसी-ठिठोली
बूढ़ा मैना झट गुर्राया
दाना छोड़ वह चिल्लाया-
तेरा क्या है, ओ री भूरी
डाइटिंग करती, भूख है थोड़ी
घर जाते जाएगी लेट
खिला देगी पड़ा बासी केक।
अभी हम भर पेट खा लें
कब पड़ जाएं खाने के लाले।
मालूम है यह शहर अनूठा
आराम करते छाप अंगूठा।
हम जैसों की भूखी टोली
करते मेहनत खाली झोली।
कल सुबह का क्या भरोसा
बिगड़े हालात को हमने कोसा।
कल लग जाए कौन-सी धारा
जिसने है हम सबको मारा।
अजब देश की गजब कहानी
हम जैसों की होती हानि।
कल की कभी मत सोच रे भोली
कब बम फूटे, चल जाये गोली।
फैशन छोड़, सुन मेरा कहना
सोते में भी जागते रहना।