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स्कूलों में रामायण व महाभारत पढ़ाने की सिफारिश

अश्रुत पूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम में स्कूली बच्चे रामायण और महाभारत भी पढ़ेंगे। पाठ्यक्रम में इन्हें शामिल किया जाना चाहिए। इस आशय की सिफारिश राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की उच्च स्तरीय समिति ने की है। साथ ही यह भी सुझाव दिया है कि स्कूल में कक्षाओं की दीवारों पर संविधान की प्रस्तावना लिखी जानी चाहिए।
एनसीईआरटी की सात सदस्यीय समिति का गठन पिछले साल ही किया गया था। समिति ने इसके अलावा कुछ और भी सिफारिशें की हैं जो पाठ्यपुस्तकों के विकास की नींव रखने के लिए एक अहम दस्तावेज है। हालांकि इन सिफारिशों पर परिषद ने कोई निर्णय नहीं किया है। समिति के अध्यक्ष सीआई आइजैक ने बताया है कि पाठ्यक्रम में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य बच्चों को पढ़ाने पर समिति ने जोर दिया है। उन्होंने कहा कि छात्र किशोर अवस्था में अपने आत्मसम्मान के साथ राष्ट्र और देशभक्ति के लिए गौरव का निर्माण करते हैं।
आइजैक ने सवाल उठाया कि हर साल विद्यार्थी दूसरे देश की नागरिकता चाहते हैं, तो क्या उनमें देशभक्ति की कमी है। इसका जवाब भी खुद दिया कि इसलिए उनके लिए अपनी जड़ों को समझना और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम को विकसित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कुछ शैक्षिक बोर्ड पहले से ही महाभारत और रामायण पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र सहित सामाजिक मूल्यों को महत्त्व देती है। इसलिए इसे स्कूल की कक्षाओं की दीवारों पर लिखने की सिफारिश की है ताकि हर विद्यार्थी इसे आत्मसात कर सके।

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