कविता काव्य कौमुदी

दुर्दिन में आंसू बन कर वह आज बरसने आई।

जयशंकर प्रसाद II

अवकाश भला है किस को,
सुनने को करुण कथाएं
बेसुध जो अपने सुख से
जिनकी हैं सुप्त कथाएं

जीवन की जटिल समस्या है
बढ़ी जटा सी
कैसी उड़ती है धूल हृदय में
किसकी विभूति है ऐसी?

जो घनीभूत पीड़ा सी
मस्तक में स्मृति-सी छाई
दुर्दिन में आंसू बन कर
वह आज बरसने आई।
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* जयशंकर प्रसाद की कविता आंसू से एक ‘अंश’ साभार

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