अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। भोजपुरी साहित्य के सितारे हरिराम द्विवेदी नहीं रहे। ‘हरि भैया’ नाम से लोकप्रिय द्विवेदी काफी समय से बीमार थे। पिछले दिनों सत्तासी साल की उम्र में उनका निधन हो गया। प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर खेद जताया। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, हिंदी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार पंडित हरिराम द्विवेदी जी के निधन से दुखी हूं। ‘अंगनइया’ और ‘जीवनदायिनी गंगा’ जैसे कविता संग्रहों और अपनी विभिन्न रचनाओं के साथ, वे हमेशा हमारे जीवन में उपस्थित रहेंगे।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के शेरवां गांव के निवासी ज्यादातर समय वाराणसी में रहे। वे लिखते तो थे ही, गाते भी कमाल के थे। जाने कितने गीतों में उन्होंने बदरा को अपना विषय बनाया। उनके गीतों में लोकगीतों जैसी मिठास है। हरिराम द्विवेदी तीन दशक तक आकाशवाणी की प्रसारण सेवा से जुड़े रहे। लोक साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान विद्यानिवास मिश्र से इनका संवाद रहा। वहीं जुगानी भाई, चंद्रशेखर मिश्र, कैलाश गौतम और रामजियावन दास जैसे मशहूर कवियों से उनका नाता रहा।
गीतकार द्विवेदी अपनी रचनाओं में कई ऋतुओं का वर्णन करते हैं। उसमें एक पूरी नदी बहती हुई दिखती है। वे आद्रा नक्षत्र में घुमड़ते बादलों को देखते हैं तो उससे बारिश की उम्मीद भी करते हैं। कवि अपने गीतों में बरखा से धरती की हरियाली और जग की खुशहाली का जिक्र करते हैं। उनके संग्रह ‘अंगनइया’ के अंत में एक कविता है- पनिया के मछरी सुनावैले कहानी। यह कविता वस्तुत: एक लोककथा पर आधारित है।
भोजपुरी में प्रकृति को रचने वाले हरिराम द्विवेदी का गंगा नदी से गहरा नाता रहा। वे तड़के जगते ौर पैदल ही गंगा में नहाने के लिए निकल जाते। मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद मित्रों से मिलते। द्विवेदी का लेखन संसार बड़ा है। उनके गीतों में गंगा और काशी की गलियां तो हैं ही, सावन, कजरी, लोकपर्व, नाते-रिश्ते, लोक विश्वास और आस्था भी है। उन्होंने लोक प्रचलित शब्दों यथा किंवाड़, ओसारा, गेहुम, काग, चुचुहिया, बांस-बंसवार और सिकड़ी का भी प्रयोग किया।
जीवनदायिनी गंगा, अंगनइया, पानी कहे कहानी, नदियो गइल दुबराय, पहचान, नारी, पातरि पीर, रमता जोगी और बैन फकीर हरिराम द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं हैं। उन्हें कई सम्मान से नवाजा गया। इनमें साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान, साहित्य सारस्वत सम्मान, राहुल सांस्कत्यायन पुरस्कार और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान शमिल है। इसके अलावा कई सम्मान भी मिले। बारह मार्च 1936 को जन्मे हरिराम द्विवेदी का आठ जनवरी 2024 को निधन हो गया। वे भोजपुरी साहित्य में प्रकृति के चितेरे बन कर सदैव मौजूद रहेंगे।