पुस्तक समीक्षा

प्रतिबिंब : हमारे आसपास की कहानियां

साहित्य डेस्क II

नई दिल्ली। कहानियां जिंदगी का कैनवास होती हैं। उमंग और उर्जा का रंग गुलाबी और लाल होता है तो उदासी का गहरा शेड। मन नीला आसमान होता है, तो भावों की नमी हरी-भरी प्रकृति होती है। इसी तरह स्याह काला जीवन की कालरात्रि की तरह है। इस तरह सभी रंगों की अपनी अभिव्यक्ति होती है। इसी से मुकम्मल बनती है जिंदगी। कहानीकार इसी जिंदगी से कहानियां रचते हैं। ये जिंदगी की जद्दोजहद का प्रतिबिंब हो जाती हैं।
कहानियों के पात्र भी हमारे आसपास ही होते हैं। कहानीकार रश्मि वैभव गर्ग के कहानी संग्रह ‘प्रतिबिंब’ को पढ़ते हुए जीवन और समाज की धड़कन को महसूस कर सकते हैं। कहानीकार का कहना है कि यह पुस्तक उनके आसपास के लोगों का ही प्रतिबिंब है। उन्होंने अपनी भूमिका में लिखा है कि कहानियों के जो पात्र हैं, वो हमारे इर्द-गिर्द ही हैं। हर शख्स अपने अंदर कुछ समेटे हुए हैं। ऐसे ही रंगों से बनी कहानियों का कैनवास है यह। जीवन के विविध रंगों का प्रतीक है यह।
रश्मि वैभव गर्ग के कहानी संग्रह प्रतिबिंब में कुल 14 कहानियां हैं। इसकी शुरुआत ‘केशवी’ शीर्षक से रची लंबी कहानी से हुई है। यह एक ऐसी युवती की कहानी है जिससे हर युवा स्त्री इससे तादात्म्य स्थापित कर सकती है। मध्यवर्गीय परिवार की इस प्यारी सी किशोरी केशवी में आप हर परिवार की उस लाडली को देख सकते हैं जो अपने संस्कार और जीवन मूल्यों से नहीं भटकती। वह अपने प्यार को दिल में दफ्न कर माता-पिता की पसंद के लड़के से शादी कर लेती है।
केशवी के दिल में असीम प्यार है। मगर जब ससुराल में उसे उपेक्षा मिलती है तो उसकी सारी उम्मीदें पति पर टिक जाती हैं जो उसे मन से नहीं, तन से प्यार करता है। घोर उपेक्षा के बाद एक दिन वह टूट जाती है और अंतत: तलाक लेने का फैसला करती है। यह कहानी उन स्त्रियों को संदेश है कि मुश्किलें कितनी भी आए जीवन में प्रेम दस्तक जरूर देता है। केशवी को अंत में उसका खोया प्यार मिल जाता है।
समाज कितनी भी तरक्की कर ले मगर वह पुरानी कुरीतियों में जकड़ कर मानसिक रूप से विकलांग ही बना रहता है। कहानीकार ने विवाह समारोह में विधवा ननद के तिरस्कार को सामने रख कर यह कहने की कोशिश की है कि मानसिक विकलांग आश्रम में समाज सेवा का ढकोसला करने वाले मन से विकलांग है। कहानी ‘मानसिक विकलांग’ एक गहरा संदेश देती है। इसी तरह की छोटी सी कहानी में लेखिका ने रमेश नाम के पात्र से समझाने की कोशिश की है कि जीवन एक रणभूमि है। जब कृष्ण ने जीवन से लड़ने का संदेश दिया तो मनुष्य जीवन से क्यों पलायन करे। कहानियां रचते हुए रश्मि गर्ग यही जताना चाहती हैं कि परिवार के लिए समर्पित लोग जीवन से पलायन नहीं करते। ‘नई फसल’ शीर्षक से लिखी लघुकथा में उन्होंने यही जताने की है।
कहानीकार जीवन को गहराई से देखता है। रश्मि गर्ग की दृष्टि में जीवन का कैनवास सबसे बड़ा है। इसमें वह प्रकृति को भी देखती हैं। कहानी ‘साइकस का अंकुरण’ में गमले में ठूंठ के माध्यम से यही अभिव्यक्त किया है। क्योंकि ठूंठ पर भी जीवन लौटता है।  पत्ते लहलहाते हैं। फूल भी खिलते हैं। इसी तरह लेखिका ने व्रत के नाम पर दिखावा और अन्न का  महत्व बताते हुए बताया है कि सुबह-शाम भोजन करके भी मनुष्य सेहत के मामले में गरीब रहता है। कहानी ‘जन्माष्टमी का व्रत’ आंखें खोल देती हैं। रश्मि गर्ग ने कहानी ‘कच्चा दूध’ के माध्यम से समाज को बड़ा संदेश दिया है। हम लोग मंदिरों में दूध चढ़ाते हैं, मगर कभी गरीब बच्चों को याद नहीं करते कि उन्होंने पिछली बार कब दूध पिया।
जीवन में कुछ जख्म गहरे होते हैं, लेकिन पेट की आग उससे भी गहरी होती है। कहानीकार ने एक आटोवालों की व्यथा को अपनी लघुकथा में इस तरह रखा कि आंखें नम हो जाती हैं। अपने यहां श्राद्ध ऐसी परंपरा है जो आज समाज के लिए जटिल हो गया है। इसमें लेखिका ने परंपरा में खोखलेपन को सामने रखा है। इसी तरह ‘अर्धचंद्र’ में एक दिव्यांग मां का गहन भाव है- कुछ चीजें अधूरी ही पूरी लगती है।  
हर शख्स एक मुखौटा है। इस शीर्षक से कहानी में लेखिका ने नूतन नाम की बार डांसर की पीड़ा बताई है कि जिंदगी की जंग लड़ने के लिए हर मनुष्य को अकसर मुखौटा पहनना पड़ता है। अंतिम ‘शरणागत’ अच्छी कहानी है। इसमें लेखिका ने पारंपरिक मूल्यों से जुड़ी युवती के द्वंद्व को सामने रखा है। पुनर्विवाह के साथ उसके जीवन में प्रेम लौट आता है। पहली कहानी ‘केशवी’ में भी तलाक के बाद पुनर्विवाह का प्रसंग था। लेखिका का मानना है कि स्त्री के जीवन में अगर वैधव्य या तलाक से सूनापन आ जाता है तो उसे अपने जीवन में रंग भरने का प्राकृतिक अधिकार है।  
तो जीवन के कई रंगों से सजीं ये कहानियां हैं रश्मि वैभव गर्ग की। हालांकि इन कहानियों में प्रूफरीडिंग की कमी खटकती है। मगर साफ-सुथरी छपाई और अलग-अलग रेखांकन और सुंदर आवरण ने संग्रह को चित्ताकर्षक बना दिया है। इसे छापा है दिल्ली के स्वतंत्र प्रकाशन समूह ने।  

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ashrutpurva

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