संजय स्वतंत्र II
नई दिल्ली। सुपरिचित कवि ओम निश्चल कहते हैं कि शायर का परिचय उसकी शायरी ही देती है। वही उसकी आत्मकथा है, वही डायरी और वही कविता। इस लिहाज से जब कोई आलोक यादव की ग़ज़लें पढ़ता है, तो वह पाता है कि उनकी पंक्तियों में कभी कविता बह रही है, तो कभी डायरी के पन्ने खुल रहे हैं। आलोक के बारे में मशहूर फिल्मकार मुजफ्फर अली ने एक बार कहा था कि उनकी शायरी जमीन से जुड़ी है, पर इसमें आसमान छूने की कोशिश दिखती है।
आलोक यादव ने सात साल पहले अपने ग़ज़ल संग्रह ‘उसी के नाम’ से पाठकों का ध्यान आकर्षित किया था। बाद में यह उर्दू में भी प्रकाशित हुआ। इसके बाद साल 2022 में उनका ग़ज़ल संग्रह ‘कलम जिन्दा रहेगा’ ज्ञानपीठ से छप कर आया, जिसे काफी लोगों ने सराहा। इसके बाद आलोक यादव शायरी के मैदान में जो जमे तो फिर मजबूती से टिके रहे। देखते ही देखते पिछले कुछ सालों में उनकी पहचान बन गई। यह शायरी शौकिया नहीं थी। भावों के कर्ई रंग थे। सोशल मीडिया से लेकर साहित्य के मंचों पर उनकी प्रतिष्ठा इसी वजह से है।
आलोक यादव ने जिस शिद्दत से दर्द को अपनी शायरी में उतारा है, उसे पढ़ते हुए पाठकों को यह अपना सा लगता है। उनकी आंखें भी नम होती हैं। हाल में प्रकाशित उनका नया ग़ज़ल संग्रह ‘लफ्ज़ चारागरी भी करते हैं’ को पढ़ते हुए लगता है कि वे दुनिया के हर इंसान के जख्मों पर मरहम रख रहे हैं। शायर का यही धर्म है। वे लिखते हैं-
हम शायर हैं दिल बहलाने आते हैं/सोया हुआ एहसास जगाने आते हैं/दुख के मौसम अपनी झोली में लेकर/ मेरी चौखट तक वीराने आते हैं।
अजीम शायर अकील नोमानी के शिष्य आलोक यादव सहृदय हैं। उनकी लेखनी में विनम्रता झलकती है। उनकी गÞज़लों में पक्तियां ऐसे उमड़ती हैं मानो उनकी धमनियों से बाहर आकर जीवन के कई रंगों का कैनवास बना रही हों। पूरा वातावरण सुवासित हो उठता है। फूल, पहाड़, हवाएं और बिजलियां सब मिल कर एक अलौकिक दृश्य रचते हुए अपनी बात कहते हैं-बर्फ गिरने लगी है पहाड़ों पर/ जिस्म को अपने ढक रही है हवा/ बिजलियां रास्ता दिखाती हैं/और दर-दर भटक रही है हवा।
आलोक यादव मंचों पर ही नहीं महफिल नहीं सजाते हैं, उनकी स्मृतियों में भी आप महफिल देख सकते हैं। क्या उनके रंजो-गम को महसूस कर सकते हैं आप? उनके करीबी शायर या लेखक बता सकते हैं कि वे अपने लेखन में कितने जज्बाती हैं। वे भाव प्रधान शायर जरूर हैं मगर उनका समाज और जन के प्रति गहरा सरोकार भी दिखता है। उनके सघन भाव उन्हें शिखर पर ले जाते हैं। … तो वे महफिलें यूं ही नहीं सजाते-
जरा तपती सड़क पर घूम आऊं
तेरी यादों की फिर महफिल सजाऊं
बदन के घाव तो दुनिया ने देखे
जो दिल के जख्म हैं किसको दिखाऊं
चलो इक बार फिर महफिल सजाऊं?
नाउम्मीदियों से आगे बढ़ कर आलोक यादव उम्मीदों के शायर भी हैं। बीती ताही बिसार दे के मंत्र के साथ वे आगे की सुध लेते हैं। उनके लेखन की यही सार्थकता है कि वे दुख-संघर्ष और तमाम चुनौतियों के बीच भी सकारात्मक रहते हैं। यह उनकी ग़ज़लों में साफ दिखता है। यही वजह है कि वह एक तरफ न केवल अधूरी कहानी को पूरा करना चाहते हैं बल्कि एक नई दुनिया बसाने की भी चाह है- गए दिन अब भूलना चाहता हूं/नई दुनिया बसाना चाहता हूं/कहानी जो अधूरी रह गई थी/ उसे आगे बढ़ाना चाहता हूं/मैं अपनी लाश कांधे पर उठा कर/ ठिकाने लगाना चाहता हूं। यह किसी भी शायर के भावों का यह चरम है, जिसमें अपनी लाश का अंतिम क्रियाक्रम कर देना चाहता है। यह उनके लेखन का शिखर है।
शायर बेशक आपका दिल बहला देते हों, मगर हकीकत यह है कि वे आपकी सोई संवेदनाओं को सहलाते और जगाते हैं। जो लोग पिछले पांच सालों से आलोक यादव की ग़ज़लें पढ़ते रहे हैं, वे जानते हैं कि वे आंखों की नमी दिल तक ले आते हैं। उनकी शायरी में उजली धूप यूं ही नहीं चमकती। उनके लेखन में कई मौसम जाने अनजाने आते हैं। क्या होता है शायर, यह उन्हीं से जानिए-
हम शायर हैं दिल बहलाने आते हैं
सोया हुआ अहसास जगाने आते हैं
दुख के मौसम अपनी झोली में लेकर
मेरी चौखट तक वीराने जाते हैं
बस्ती के वीरान खंडहर को हैरत है
सन्नाटे भी शोर मचाने आते हैं।
आलोक यादव की ग़ज़लें उनके ही नहीं तमाम पाठकों के भावों पर भी मरहम हैं। शोक-संताप में उनके शब्द कई तरह से चारागरी (उपचार) करते हैं। यह शायर संघर्ष के धूप में अपना पसीना बहा कर तसल्ली पाता है। यह धूप ही है जो रात की चांदनी बन कर सुकून देती है। उनके लफ्जों की चारागरी का क्या कहना-
लफ्Þज़ चारागरी भी करते हैं
दर्द की पैरवी करते हैं
जब थकन पांव से लिपटती है
फासले भी रहबरी करते हैं
आलोक यादव की ग़ज़लों की खास बात यह है कि वे नदी की धारी की तरह बहती हैं। इसके पीछे भाषा की रवानी है। वे बोलचाल के शब्दों से सीधे पाठकों के दिलों में उतर जाते हैं। सरकारी सेवा में उच्च पद पर आसीन आलोक को सभी ने शायरी के राजपथ पर भी कदम-दर-कदम आगे बढ़ते देखा है। जिंदगी के प्रति उनका गहरा जज्बा है। उनकी शायरी की यही ताकत है- जिंदगी तेरी उंगलियां पकड़े हादसे भी खुदकुशी करते हैं।
गज़ल संग्रह ‘लफ्ज़ चारागरी भी करते हैं’ को सर्वभाषा ट्र्स्ट ने प्रकाशित किया है। कुल 104 पृष्ठों के इस संग्रह का आवरण और छपाई चित्ताकर्षक है।