पुस्तक समीक्षा

‘मनमोदी’ : बेबाक प्रस्तुति लेखक की

डॉ. संजीव कुमार II

‘मनमोदी’ मुकेश भारद्वाज का एक अभिनव प्रयोग है। एक पत्रकार के रूप में इस प्रयोग में वह पूरी तौर पर सफल रहे हैं। वर्ष 2014 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के उपरांत उन्होंने अनेकानेक प्रयोग किए; जैसे रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’, ‘नोटबंदी’, ‘आधारभूत संरचना का विकास’, ‘परिष्कृत विदेश नीति के द्वारा विदेश में संबंधों की नई शुरुआत’ जैसे कितने ही विलक्षण, विस्मयकारी नवीन कदम उठाए गए हैं, जो उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करते हैं। श्री भारद्वाज उनका पूरा लेखा-जोखा अपनी पुस्तक में सामने रखा है।
नरेंद्र मोदी ने हर बार चमत्कृत करने वाले कदम उठाए हैं और लेखक मुकेश भारद्वाज ने इत्मीनान के साथ उन्हें ‘मनमोदी’ में सहेज लिया। उनकी पत्रकारिता की नजर से कुछ बचा नहीं है। बेबाकी इतनी, जिगर इतना कि हर कदम की सकारात्मक या नकारात्मक स्थिति को ‘ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया’-वल्लाह!
प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ के भाषणों को यदि ध्यान से देखा जाए तो एक दृढ़ एवं स्पष्ट विचारधारा का समावेश उनकी बातों में दिखाई पड़ता है। इसी के आधार पर उन्होंने न केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया, अपितु एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर देश को ले गए। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे उद्यम उनकी राजनीतिक एवं सामजिक कुशलता की श्रेष्ठता को स्पष्ट करते हैं और इसी प्रकार वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के गलियारे का निर्माण उनके बहुमुखी दृष्टि कौशल का ही परिणाम स्पष्ट करता है।  
एक वरिष्ठ पत्रकार और संपादक के रूप में अपने स्तंभ लिखते समय मुकेश भारद्वाज ने जहां अच्छे को अच्छा कहा, वहीं सरकार की कमजोर नस दबाने में भी नहीं चूके। महंगाई, बेरोजगारी, संसाधनों की लूट खसोट, मुफ़्त खाद्यान्न वितरण और करोना काल की अफरातफरी-कुछ भी नहीं छोड़ा है लेखक ने। यह एक ऐसा दस्तावेज है जिसे हर भारतीय नागरिकों को अवश्य पढ़ना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार राजनीति के अनुभव एवं कौशल से युक्त वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को साथ लिया, वैसे ही नई पौध को भी पुष्पित पल्लवित होने का मौका दिया, ताकि राजनीतिक नेतृत्व के लिए द्वितीय पंक्ति तैयार की जा सके। यह एक दूरदर्शी कदम है किंतु इस प्रक्रिया में कुछ लोगों का अनादर भी हुआ जिससे बचा जा सकता था।
प्रधानमंत्री ने विभिन्न कदमों को उठा कर राजकोषीय अस्थिरता को विराम देने का प्रयास किया। वहीं भ्रष्टाचार पर रोक लगा कर समाज की अंतिम सीढ़ी पर छूटे हुए गरीबों, किसानों और मजदूरों को हेतुक और अहेतुक सहायता भेजी। इनमें शौचालय बनाने से लेकर गरीबों के निवास बनाने, गैस चूल्हे का वितरण और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे कदम भी उठाए गए। नए प्रबंधन संस्थानों और एम्स आदि की स्थापना से कौशल के विकास की तरफ भी भरपूर ध्यान दिया है, लेकिन इन सब बातों के बीच अनेक उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले। उन्हें गालियां भी मिलीं और बधाइयां भी।
पुस्तक ‘मनमोदी’ में 2014 से 2024 तक यानी पूरे एक दशक के खाके का एक प्रकार से समालोचन किया गया है, जिसका निष्कर्ष निकलता है-मोदी है तो मुमकिन है। और यह सच भी है। कश्मीर में धारा 370, तीन तलाक, नोटबंदी. रुपए की अंतरराष्ट्रीय  व्यापार-व्यवहार में स्वीकृति, आतंकवाद पर नियंत्रण, संरचना क्षेत्र में द्रुत गति से विकास और रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम हंसी खेल नहीं। ‘मनमोदी’ एक बेबाक प्रस्तुति है, जो सचमुच अनुपम है और स्पष्ट करती है कि लेखक में जिगर है। साहस की यही पत्रकारिता है।
‘मनमोदी’ नवीन शैली में लिखी गई पठनीय पुस्तक है। इसमें मुकेश भारद्वाज के पत्रकारिता के अनुभव के साथ राजनीतिक विश्लेषण का कौशल दिखाई देता है।
पुस्तक- मनमोदी
लेखक- मुकेश भारद्वाज
प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स प्रा लि.

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