अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। युवा और सुधी श्रोताओं में अपने गीतों से उमंग और एक नई ऊर्जा भर देने वाले विलक्षण गीतकार देव कोहली नहीं रहे। वे कई महीने से अस्वस्थ थे। उन्हें मुंबई स्थित कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बीते दिनों वे नींद में चल बसे। कोहली विलक्षण गीतकार थे। बीते पांच दशक में उन्होंने एक से बढ़ कर एक गीत रचे। उम्र का एक बड़ा हिस्सा पार कर लेने के बाद सिनेमा के चकाचौंध से दूर वे सामान्य जीवन जी रहे थे। वे खुद मशहूर होने पर कभी गुमान में नहीं रहे मगर उनके लिखे अधिकतर गीत जुबां पर चढ़े।
देव कोहली ने पुरानी पीढ़ी के गायकों और संगीतकारों से लेकर नई पीढ़ी के साथ भी काम किया। तमाम फिल्मों को मिला कर देखें तो उन्होंने सौ से ज्यादा गीत लिखे। साल 1969 से लेकर 2013 तक हर तरह के कलाकारों के लिए गीत रचे। पीढ़ी बदली। संगीतकार बदले, मगर उनके गीतों की मधुरता कभी गुम नहीं हुई। वे कानों में शहद घोलती रहीं।
पाकिस्तान के रावलपिंडी में 1942 में जन्मे देव कोहली जीवन के शुरुआती दौर में देहरादून में रहे। साल 1969 में वे हिंदी सिनेमा से अपना करिअर शुरू किया। फिल्म गुंडा के लिए उन्होंने पहली बार गीत लिखे। इसके बाद पचास साल से भी अधिक बरसों तक गीत लेखन की यात्रा उन्हें नए सोपान पर ले गई। फिल्म लाल पत्थर में उनका लिखा गीत आज भी लोग गुनगुना उठा उठते हैं- गीत गाता हूं मैं गुनगुनाता हूं में, मैंने हंसने का वादा किया था, इसलिए सदा मुस्कुराता हूं मैं।
नब्बे के दशक में आई बड़जात्या बैनर की फिल्म मैंने प्यार किया और हम आपके हैं कौन के गीतों से देव कोहली को खासी प्रसिद्धि मिली। इसी तरह शाहरूख की सुपर हिट फिल्म बाजीगर का गीत ये काली-काली आंखें ने भी धूम मचाई। अंतिम गीत उन्होंने फिल्म रज्जो के लिए लिखा। मैंने प्यार किया में उनका लिखा एक गीत- आते जाते हंसते-गाते, सोचा था मैंने मन में कई बार, होठों की कली कुछ और खिली, ये दिल पे हुआ है किसका अख्तियार…। लता जी का गाया मासूम सा गीत। अपने कई गीतों की वजह से बहुत याद याद आएंगे देव कोहली साहब। विनम्र श्रद्धांजलि आपको।