अश्रुत तत्क्षण

म्यांमा में बर्मीज रामलीला का भव्य मंचन

अश्रुत पूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। पिछले दिनों म्यांमा स्थित भारतीय दूतावास के इंडिया सेंटर में फ़्यापोन रॉयल पैलेस रामायण मंडली द्वारा बर्मीज रामलीला रामलीला का मंचन किया गया। स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक डॉ. आशीष कंधवे ने यह जानकारी दी।
इस आयोजन का उद्घाटन राजदूत विनय कुमार ने दीप प्रज्वलित कर किया।  कुमार ने अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की तरह म्यांमा में रामायण और रामलीला की स्थानीय परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस विशेष कार्यक्रम के आयोजन में भारतीय दूतावास के स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के साथ फियापोन ट्रूप के सहयोग की सराहना भी की। उन्होंने आध्यात्मिक विकास सहित व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर रामायण के शाश्वत महत्व को रेखांकित किया।
अपने संबोधन में मिशन के उप प्रमुख आशीष शर्मा ने भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों पर रोशनी डाली। उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहयोग के लिए प्रमुख शिक्षाविद् डॉ. रामनिवास का आभार जताया।
म्यांमा में रामायण की परंपरा सदियों पुरानी है। मंडली का नाम फियापोन रॉयल पैलेस रामायण मंडली रखा गया है, क्योंकि यह मांडले पैलेस से आया था। इस रामायण के थिएटर संस्करण की शुरूआत 1883 में फ़्यापोन से हुई और तब से 140 वर्षों से अधिक समय से रामायण का मंचन निरंतर किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में दर्शक शामिल हुए जिनमें राजनयिक, म्यांमा के नागरिक और भारतीय समुदाय के सदस्य शामिल थे। स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक डॉ. आशीष कुमार ने उपस्थित सभी कलाकारों एवं अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने उपस्थित दर्शकों को बताया कि बर्मी रामायण के इस संस्करण का पहली बार आयावाडी क्षेत्र से बाहर निकल कर रंगून में प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर रामलीला मंडली के सदस्यों ने भारत और म्यांमार के बीच शांति और सद्भावना भरे संबंधों के लिए प्रार्थना भी की।
इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. रामनिवास ने बड़े ही कुशलता पूर्वक हिंदी और बर्मी भाषा में किया। इस अवसर पर राजदूत ने सभी रामलीला कलाकारों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया।
म्यांमा में रामायण के रंगमंचीय विधा का आरंभ शक संवत १२०० ईस्वी सन १८७८ में फ्यापोन पहुंचा। लगभग चार वर्ष तक छोटे-छोटे कार्यक्रम के रुप में रामायण का मंचन होता रहा। फ्यापोन रामायण मंडली ६४० वर्ष पूरे कर रही है।
शक संवत १२४५ (बर्मी वर्ष), ईस्वी सन १८८३ के प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु समाप्ति के अवसर पर ‘श्वे नाथ को’ पगोड़ा प्रांगण से मंचन प्रारंभ हुआ, तब से लेकर प्रतिवर्ष यह परंपरा चल रही है। पिछले १०० वर्षों के मध्य प्राकृतिक तथा अन्य आपदाओं का सामना करते हुए अपनी अस्तित्व को बचाए रखा। परिस्थिति कैसी भी रही हो, अभी तक रामायण का मंचन प्रतिवर्ष किसी-न-किसी रूप में होते रहा है। रामायण के जितने भी कलाकार पात्र है सभी स्वेच्छा से इसमें भाग लेते हैं।

About the author

ashrutpurva

error: Content is protected !!