अश्रुतपूर्वा विशेष II
माघ का महीना आते ही माघी गंगा स्नान होता है, माघी मेला लगता है और इस प्रकार एक उत्सव का परिवेश निर्मित होने लगता है। कोई भी उत्सव हो उसकी जड़ें धर्म के किसी रूप से अवश्य जुड़ी रहती हैं। इसी माघ महीने, वर्ष 2022 से महाराष्ट्र में माघी गणेश पूजा का भी आरम्भ हो चुका है जिसकी झलक 04.02.2022 को नवी मुम्बई में सर्वत्र मिल रही है। आस्था हतप्रभ होकर पांडालों में माघी गणेश का दर्शन कर रही है। इसके बाद माघ देता है उत्सव का सबसे मोहक और कोमल रूप, वसंतोत्सव। बिदा लेती सर्दी और मौसम के खुलते दरवाजे, मानव के अंतर्मन में भी कल्पनाओं और उमंगों के कई द्वार खोलती है। वसंतोत्सव पूर्ण प्रकृति आधारित है इसलिए इसका कलेवर मानव प्रकृति संग सामंजस्य करता है। साहित्य वसंत पर बहुत कुछ कहते आ रहा है इसके बावजूद भी वसंत अपनी एक विशिष्ट तासीर लिए समीर संग बहते रहता है मानो हवा ही नशीली हो गयी हो। सम्पूर्ण सृष्टि की गतिविधियां धर्म और कर्म पर आधारित है। वसंतोत्सव में वीणा हर बयार में झंकृत प्रतीत होती है और वीणावादिनी की अर्चनाएं हर संवेदनशील मन करता है। वसंत की यह विशेषता है कि वह मानव सहित पूरे परिवेश को वृहद रूप से प्रभावित करता है अतएव इसकी विशालता जड़ों तक पहुंच जाती है परिणामस्वरूप बिना किसी हंगामे के वसंत भीतर स्वतः खिलने लगता है। वसंत जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त सबका व्यवहार बदल देता है। एक कोमलता भरी सुगंध वसंत को उत्सव में परिवर्तित कर देती है।
वसंत भाव से लेकर चेतना तक को प्रभावित करता है तथा मन कभी विद्यादेवी सरस्वती से जुड़कर उत्सव का सहभागी या दर्शनार्थी बन जाता है तो कभी धनदेवी लक्ष्मी के भी जन्मदिवस को मनाने लगता है। यह भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र है कि बिना ईश्वरीय-दैवीय उपस्थिति के किसी भी पर्व के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती। वसंत को प्रणय का मौसम समझनेवाले भी बहुत हैं। पाश्चात्य का “वेलंटाईन डे” का संबंध वसंत मौसम से सीधे जुड़ा है। बहुत करीब की तिथियों के अंतर से वसंतोत्सव और “वेलंटाईन डे” मनाया जाता है। आधुनिकता की बयार में संस्कृतियों का अस्तित्व कितना मुखर होते जा रहा है यह इन दोनों उत्सव के आयोजन पृष्ठभूमि से ज्ञात होता है। भारत पूजा-अर्चना कर आत्मिक आनंदातिरेक में वसंतोत्सव मनाता है जबकि पाश्चात्य सोच भौतिक प्रतीकों और अभिव्यक्तियों द्वारा अलग नाम से वसंतोत्सव मनाता है। भला भौगोलिक सीमाओं में कहां इतना दम कि सीमारेखा की तरह मानवीय संवेदनाओं का भी वर्गीकरण कर सके। सारा जग बस एक समाना है यदि प्रकृति की दृष्टि से संसार का सूक्ष्म अवलोकन किया जाए। सरस्वती देवी के सजे पांडालों में वीणावादिनी और संपदा प्रदायिनी की रचना मनुष्य के आंतरिक चेतना रूपी ऊर्जा का नाद है। विद्या और धन अर्जित करने के लिए जिस तपस्या से व्यक्ति को गुजरना पड़ता है वह न दुरूह है और न कष्टसाध्य है, इसके लिए केवल चेतना में आस्थापूर्ण समर्पण का उद्भव होना चाहिए फिर तो सब वासंती हो जाता है। जीवन में सफल कहे जानेवाले व्यक्ति वासंती ऊर्जा धारित ही तो होते हैं।
मन के झूले पर भावनाओं की पेंग संग बहती बौराई बयार है वसंतोत्सव। प्रणय के फुहार की वैचारिक सिहरन है वसंतोत्सव। कहीं पर यह उत्सव पूजा-अर्चना के रूप में है, कहीं गुलाबी परिधानों की फुलवारी सदृश्य है तो कहीं नयन-नयन कहे गहि बात का मनतरंग है। तार्किकता के अंझुराए मन की खुली जुल्फें है वसंतोत्सव। यहाँ यह भी हर्षपूर्वक उल्लेख किया जा रहा है कि विद्यालय से लेकर वीथिका तक वसंतोत्सव अपनी महत्ता और प्रभाव को वर्ष दर वर्ष बखूबी नयी पीढ़ी में प्रतिपादित करते जा रहा है। वसंतोत्सव वाग्देवी की ऋचा है जिसपर रचनाओं के नए तेवर और प्रभाव सृजित होते हैं अतएव वसंत बन जाना ही वसंतोत्सव है।
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