अश्रुत तत्क्षण

अब नहीं मिलेगी कोई दूसरी लता

फोटो: साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने हर छोटे बड़े संगीतकार की रचनाओं को लोगों के दिलों तक पहुंचाया।  

गुलाम हैदर से लेकर रहमान, विशाल भारद्वाज और जतिन-ललित तक की पीढ़ी के संगीतकारों के लिए गाने वाली लता जी ने देश की लगभग हर जुबान में गाने गाए। बालीवुड की कोई भी प्रमुख हीरोइन ऐसी नहीं है जिस पर लता मंगेशकर के कंठ का कर्ज न हो। हिमालय जैसी शोहरतके बावजूद वे हमेशा विनम्र रहीं- मुझे जितना मिला उसमें मेरी मेहनत सिर्फ दस फीसदी है। बाकी भगवान की कृपा और संगीत प्रेमियों का प्यार है। यह विनम्रता हमेशा एक जैसी रही।

1942 लता मंगेशकर के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण साल था। इस साल लता ने अपने पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर को खोया। बलवंत संगीत मंडली के मालिक मास्टर दीनानाथ के निधन के बाद लता मंगेशकर को अपने परिवार के प्रति समर्पित कर दिया। 1942 में चंद्रमा पिक्चर्स के तहत पहली फिल्म मंगलागौर का निर्देशन अभिनेत्री नंदा के पिता मास्टर विनायक कर रहे थे। फिल्म का संगीत दे रहे थे दत्ता। मास्टर विनायक लता के पिता के अभिन्न मित्र थे। लता ने इस फिल्म के लिए गाया- प्रेम स्वरूप आई, वात्सल्य सिंधु आई…। मराठी के मशहूर कवि एवं प्राध्यापक माधव जूलियन का लिखा गीत लोकप्रिय हुआ था और इसी गीत को मास्टर विनायक ने फिल्म में लिया। जिसकी धुन दत्ता ने बनाई थी।

बाद में नवयुग के निदेशकों से मास्टर विनायक की पटी नहीं और उन्होंने नवयुग छोड़ दिया। नवयुग की टीम-मास्टर विनायक, अभिनेत्री मीनाक्षी, दामुआ मालगावकर, विष्णुपंत जोग उनका स्टाफ और लता मंगेशकर कोलापुर आ गए। यहां इस टीम ने चिमुकला संसार और गजाभाऊ जैसी फिल्में की।

1949 में फिल्म महल का गीत-आएगा आनेवाला के बाद लता मंगेशकर को सही मायने में एक पहचान मिली। खेमचंद प्रकाश इस फिल्म के संगीतकार थे। उसके बाद तो लता मंगेशकर के स्वर परदे पर ऐसे गूंजे कि फिर गूंजते ही रहे। किसी भी फिल्म को लीजिए। उसने उनके स्वर का योगदान अपने आप नजर जाएगा। चाहे मदर इंडिया हो (नगरी-नगरी…,  दुनिया में हम आए हैं, घूंघट नहीं खोलूंगी और मतवाला जिया) या मुगले आजम हो (मोहब्बत की झूठी कहानी, प्यार किया तो) या पाकीजा हो (ठाड़े रहियो, चलो दिलदार चलो, मौसम है आशिकाना) लता की आवाज का जादू सिर चढ़ कर बोलता रहा।

लता सादगी पसंद रहीं। सफेद साड़ी उन्हें पसंद था। शॉपिंग करने का उन्हें खासा शौक रहा लेकिन अपने लिए नहीं दूसरों के लिए। घर में किसी ने बालों में वेणी नहीं बनाई या माथे पर कुमकुम नहीं लगाया तो लता के चेहरे पर नाराजगी के भाव आते। पसंदीदा चीजों की सूची तो काफी लंबी है। इनमें सादा भोजन तो था ही चायनीज खाने का भी शुमार रहा। सादे खाने में भी अगर जीरा या राई ज्यादा हो गई तो उसे निकाल कर अलग कर देतीं। उन्हें विदेश में खाने को लेकर काफी परेशानी होती थी। ऐसी स्थिति में वे दूध से बने पदार्थों को अहमियत देतीं। आम और आइस्क्रीम से भी उन्हें लगाव रहा।

मंगेश और विवेकानंद से लता मंगेशकर को अगाध प्रेम रहा। उनके गले के लॉकेट में ये दोनों तस्वीरें होतीं। रामायण, गीता, ज्ञानेश्वर, कृष्ण और मीरा की चर्चा में डूबना उन्हें प्रिय लगता। कहा जाता है कि तनाव दूर करने के लिए बाबूराव अर्नाडकर वांग्मय उन्हें काफी मदद करता था। इसके अलावा कविताओं और कैमरे से लता मंगेशकर को बहुत प्यार था। वह खुद रायगढ़, सिंहगढ़ और पुरंदर के किले में अक्सर जाती रहतीं।

लता की आवाज की खूबी का कारण तलाशने के लिए निकलने वाले लोग हमेशा असफल रहे। आखिर में सिर्फ इतना ही कह पाते कि लता की आवाज अतुलनीय है। मंगेशकर परिवार को प्रतिक्रियाओं को ही देखिए आशा भोंसले लता मंगेशकर के संघर्षों के बारे में कहती हैं-बाबा का निधन हो गया था। हमारे दूसरे बाबा (लता) मात्र 12 साल के थे। दीदी ने पूरा भार अपने कंधे पर उठाया। दूसरी ओर उनकी बहन उमा कहतीं-दीदी एक परफेक्ट सिंगर हैं। उनका पिकअप बेजोड़ है। और लय का वजन दुर्लभ है।

लता मंगेशकर अपने परिवार का ध्यान किस तरह रखतीं इस बारे में हृदयनाथ मंगेशकर की पत्नी भारती ने काफी समय पहले बताया था कि जब रात में लता जी की नींद खुलती तो वे घर का चक्कर लगातीं यह देखने के लिए कि सब ठीक से सो गए हैं या नहीं। इसी तरह बहन मीना बतातीं कि जब दीदी काम के सिलसिले में बाहर होतीं तो घर बहुत सुनसान लगता।

  • सीमाहीन है इस कंठ की कीर्ति
  • पु.ल. देशपांडे ने कहा था, लता सुर और लय को शंकर और पार्वती मान कर गाती हैं। मशहूर गायक सुधीर फड़के ने लता की आवाज को चमत्कार मानते हुए कहा, लता की आवाज के जरिये परमेश्वर ने एक ऐसा चमत्कार किया है जो फिर नहीं किया जा सकता। मशहूर गायिका हीराबाई बड़ोदेकर के मुताबिक लता की आवाज परमेश्वर का अनोखा वरदान है। पंडित भीमसेन जोशों के शब्दों में लता का अनुकरण करके कोई लता नहीं बन सकती। मेरा ऐसा विश्वास है कि यह जन्म जन्मांतर के बाद मिली ईश्वर की कृपा है।

जहां लता जी के परिवार की प्रतिक्रिया से उनकी निजी जिंदगी का पता चलता है, वहीं संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोगों ने समय समय पर प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं जिससे पता चलता है कि लता की आवाज की तुलना करना कितना कठिन काम है।  मराठी के मशहूर साहित्यकार आचार्य प्रल्हाद केशव अत्रे का कथन देखिए- लता की आवाज मानवीय ध्वनि सृष्टि का अद्भुत चमत्कार है। सरस्वती की वीणा की झनकार है। उर्वशी के नूपुर की रुनझुन और कृष्ण की मुरली की तान को मिला कर विधाता ने लता का कंठ बनाया होगा।

कुछ इसी तरह पु.ल. देशपांडे ने कहा था, लता सुर और लय को शंकर और पार्वती मान कर गाती हैं। मशहूर गायक सुधीर फड़के ने लता की आवाज को चमत्कार मानते हुए कहा, लता की आवाज के जरिये परमेश्वर ने एक ऐसा चमत्कार किया है जो फिर नहीं किया   जा सकता। मशहूर गायिका हीराबाई बड़ोदेकर के मुताबिक लता की आवाज परमेश्वर का अनोखा वरदान है। पंडित भीमसेन जोशों के शब्दों में लता का अनुकरण करके कोई लता नहीं बन सकती। मेरा ऐसा विश्वास है कि यह जन्म जन्मांतर के बाद मिली ईश्वर की कृपा है। दुनिया में कहीं भी जाओ लता मंगेशकर की आवाज सुनने को मिल जाएगी। संगीतकार कल्याणजी.आनंदजी मानते थे कि लता के गाने में जो पूर्णता है वह दुर्लभ है।

लता का कंठ गानों को मधुर बनाने के लिए बरसों सक्रिय रहा। मगर इसकी कीर्ति कम नहीं हुई। लता के कंठ के बारे में ऊपर उल्लेख की गई टिप्पणियां सालों पहले की हैं। ये टिप्पणियों लगातार जारी रहीं। नई पीढ़ी के संगीतकार उनके साथ काम करके अपने को धन्य मानते रहे।

परिपूर्णता का गरूर लता को नहीं रहा। इस संबंध में संगीत कंपनी एचएमवी के एक अधिकारी ने एक बार एक किस्सा सुनाया। काफी समय पहले की बात है। एचएमवी में एक प्यून हुआ करता था। नाम था- सखाराम। वह लताबाई के गानों का अगाध भक्त था। लता गाने की रिकार्डिंग के बाद उससे मराठी में पूछती थीं- काय कसे वाटते गाणे? आवडले? काही चुकल्यासारखे वाटते? (कैसा लगा गाना? पसंद आया? कोई भूल तो नहीं लगती न?) लता मंगेशकर के इन प्रश्नों के बाद सखाराम के दिल की स्थिति क्या होती होगी समझा जा सकता है।

पिता दीनानाथ मंगेशकर के गुण लता मंगेशकर में थे। खासकर स्वाभिमान के मामले में। यहां तक कि अपनी मेहनत के पैसे तक मांगने में संकोच करतीं। पैसे मांगना उनके लिए अपने स्वाभिमान को आहत करने जैसा होता है। स्वाभिमानी उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर भी थे। एक बार तो उन्होंने इंदौर में तुकोजीराव होलकर की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की थी। वाकया 1923 का है। दीनानाथ मंगेशकर की बलवंत संगीत मंडली उन दिनों इंदौर में थी और होलकर के आश्रय में वहां पर अपने कार्यक्रम कर रही थी। एक दिन तुकोजीराव ने गाने के लिए मास्टर दीनानाथ को बुलाया राजवाड़े जाने के लिए मास्टर दीनानाथ, दिनकर कामण्णा और गणपतराव लक्ष्मणराव मोहिते (मराठी और हिंदी फिल्मों के अभिनेता) राजवाड़े पहुंच गए। लेकिन गाने का कार्यक्रम करते हुए तुकोजीराव ने कहा कि आज वह शिकार पर जाएंगे और गाने का कार्यक्रम कल होगा। मास्टर दीनानाथ के कलाकार मन को ठेस लगी। उन्होंने तुरंत कामण्णा और मोहिते से कहा कि कल गाने का कार्यक्रम नहीं होगा। उसके बाद रात में बलवंत संगीत मंडली ने इंदौर छोड़ दिया।  

(लेखक गणेश तिवारी के आलेख से उद्धृत अंश)

About the author

ashrutpurva

Leave a Comment

error: Content is protected !!