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हिंदी की लय को बनाए रखना होगा : गीतांजलि श्री

फोटो-गूगल से साभार

 अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। लेखिका गीतांजलि श्री को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद से न केवल हिंदी बल्कि हिंदी साहित्य चर्चा के केंद्र में है। लब्धप्रतिष्ठित लेखिका का कहना है कि हिंदी के इस लय को बनाए रखने के लिए अब गंभीर प्रयास करने होंगे। उनका कहना है कि बुकर पुरस्कार की घोषणा के बाद से हिंदी साहित्य की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद मिली है। लोगों की साहित्य के प्रति रुचि और उत्सुकता बढ़ी है।

गीतांजलि श्री ने कहा है कि हिंदी को केंद्र में लाने के लिए सतत और संगठित प्रयास करने होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए प्रकाशकों को साहित्य का अच्छा अनुवाद उपलब्ध कराने में बड़ी भूमिका निभानी होगी। लेखिका ने कहा कि यह बात न केवल हिंदी बल्कि सभी दक्षिण एशियाई भाषाओं पर लागू होती है।

  • गीतांजलि श्री ने कहा है कि हिंदी को केंद्र में लाने के लिए सतत और संगठित प्रयास करने होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए प्रकाशकों को साहित्य का अच्छा अनुवाद उपलब्ध कराने में बड़ी भूमिका निभानी होगी। लेखिका ने कहा कि यह बात न केवल हिंदी बल्कि सभी दक्षिण एशियाई भाषाओं पर लागू होती है। 

लंदन मे मौजूद लेखिका से पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात का डर है कि भारत में अंग्रेजी हिंदी पर हावी हो सकती है? इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि किसी एक का चुनाव करने की सवाल ही नहीं होना चाहिए। क्योंकि भाषाएं एक दूसरे को समृद्ध बनाने की क्षमता रखती हैं। हिंदी या अंग्रेजी में से किसी के चयन का सवाल नहीं होना चाहिए।

द्विभाषी या त्रिभाषी या बहुभाषी होने में क्या समस्या है, इस सवाल पर गीतांजलि श्री ने कहा कि मुझे लगता है कि मनुष्यों में एक से अधिक भाषा को जानने की क्षमता है। हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी मातृभाषा या अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी को जानने के लिए प्रेरित करे। इसमे समस्या क्या है। लेखिका ने यह भी कहा कि लेकिन इसके राजनीति में घिर जाने से यह एक तरह की अनसुलझी समस्या बन गया है।

बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका ने कहा कि रचनात्मक अभिव्यक्ति तभी श्रेष्ठ होती है, जो व्यक्ति के लिए सबसे सहज भाषा में की जाए। (यह प्रस्तुति एजंसियों की खबरों पर आधारित)

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