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इला भट्ट:  सो गई महिला अधिकारों की वो मुखर आवाज

अश्रुतपूर्वा II

नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध महिला अधिकार कार्यकर्ता इला भट्ट नहीं रहीं। अहमदाबाद में एक अस्पताल में बुधवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 89 साल की थीं। इला जी को इस बात के याद किया जाएगा कि उन्होंने स्वरोजगार में लगीं महिलाओं के श्रम अधिकारों के लिए पांच दशक से अधिक समय तक लगातार संघर्ष किया। उनके काम को सभी ने जाना और मानय्ता दी। इसके लिए उन्हें पद्मभूूषण और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इला जी ने अपना रोजगार कर रहीं गरीब महिलाओं की पीड़ा को देख कर 1972 में सेल्फ एम्प्लायड वूमंस एसोसिएशन (सेवा) की स्थापना की। शुरुआती दौर में ही इस संगठन के सदस्यों की संख्या सात हजार तक पहुंच गई। फिर सरकार ने इसे ट्रेड यूनियन के रूप में पंजीकृत किया। इस बीच कई चुनौतियां सामने आईं। दिसंबर 1995 तक इसके सदस्यों की संख्या बढ़ कर दो लाख के पार चली गई और यह भारत में महिला श्रमिकों का सबसे बड़ा संघ बन गया।
यह कम बड़ी नहीं कि सेवा के सदस्यों ने अपनी  एकजुटता कारण ही नियोक्ताओं से अपनी शर्तों पर बातचीत करने की शक्ति हासिल कर ली। सदस्यों के लिए स्वास्थ्य, मातृत्व लाभ आदि योजनाओं की व्यवस्था की। सेवा के सदस्यों ने व्यापार समूहों की सहकारी समितियों की स्थापना की, जिसका उद्देश्य कौशल और विशेषज्ञता साझा करना और थोक खरीद तथा बाजार में जगह बनाना था।

इला जी ने अपना रोजगार कर रहीं गरीब महिलाओं की पीड़ा को देख कर 1972 में सेवा की स्थापना की। शुरुआती दौर में ही इस संगठन के सदस्यों की संख्या सात हजार तक पहुंच गई।  कई चुनौतियां सामने आईं। दिसंबर 1995 तक इसके सदस्यों की संख्या बढ़ कर दो लाख के पार चली गई और यह भारत में महिला श्रमिकों का सबसे बड़ा संघ बन गया। 

इला भट्ट का जन्म 1933 में हुआ था। वे पहले वकील थीं। फिर समाज सेवा के क्षेत्र में आई। वे साल 1968 में अहमदाबाद में वस्त्र श्रम संघ की महिला वर्ग की प्रमुख बनीं। इस पद पर रहते हुए उन्होंने स्वरोजगार में लगीं महिलाओं की परेशानियों को देखा और समझा। इन महिलाओं में बुनकर, सिगरेट के रोलर बनाने वालीं, फल, मछली और सब्जियां बेचने वालीं, सूखी लकड़ियां और कचरा बीनने वालीं तथा सड़क निर्माण मजदूर शामिल थीं। इन महिलाओं को दुकानों और औजारों को लिए अधिक किराया देना पड़ता था। साथ ही साहूकार, नियोक्ता और अधिकारी भी उनका शोषण या उत्पीड़न करते थे। अहमदाबाद में, इनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं झुग्गी-झोपड़ियों में रहती थीं। इनमें ज्यादातर निरक्षर थीं, अधिकतर महिलाएं कर्ज में डूबी थीं। और उन्हें अपने बच्चों को काम करने के लिए अपने साथ ले जाना पड़ता था।
इन सब स्थितियों को देखते हुए 1972 में इला जी ने सेवा की स्थापना की। संघ ने 1974 में अपना बैंक भी बनाया। इस बैंक ने हजारों महिलाओं को साहूकारों से बचाया। इससे उन्हें भूमि, छोटी संपत्ति और उत्पादन के साधन जमा करने का अवसर मिला। इस बैंक का ऋण चुकाने वालों की दर सर्वाधिक है।
इला भट्ट 1986 से 1989 तक राज्यसभा की मनोनीत सदस्य थीं। वे 1989 से 1991 तक योजना आयोग की सदस्य भी रहीं। वह दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की ओर से स्थापित वैश्विक नेताओं के एक समूह द एल्डर्स की सदस्य भी थीं। 2010 में इला जी को निवानो शांति पुरस्कार और पहले ग्लोबल फेयरनेस अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साल 2011 में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें उनके कार्यों के लिए सम्मानित किया था। इसके अलावा 2011 में  इला जी को भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में नियुक्त किया गया था। इसी साल उन्हें इंदिरा गांधी पुरस्कार के लिए चुना गया था।
सेवा ने सितंबर 2013 में पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण और पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम संसद में पास कराने में योगदान दिया। यह कानून पथ विक्रय को नियंत्रित करता है और विक्रेताओं को काम के लिए लाइसेंस प्रदान करता है। इस कानून को देश के शहरी गरीबों की आजीविका सुरक्षित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जाता है। इला जी का निधन श्रमिकों और स्वरोजगार में लगीं महिलाओं के लिए अपूरणीय क्षति है। (मीडिया में आई खबर की पुनर्प्रस्तुति है)

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