राकेश धर द्विवेदी II
जाड़े की सुनसान सड़क पर
थिरक रहा पिज्जा हाट
और खींच रहा मॉल का शोर,
दौड़ रही वातानुकूलित कारें।
फाइव स्टार होटल में धनवाले
खूबसूरत सी इम्पोर्टेड कार में
श्वानराज विराजमान हैं।
मालिक ने नहला धुला कर
प्यार से उन्हें बैठाया है
उन्होंने भौं-भौं कर
मालिक को किया है कृतार्थ,
आकर्षित हो श्वान से
एक बालक ठिठुरता सिहरता
पास उसके आ गया
गीत उसके प्रशंसा के गा गया-
हे श्वानराज,
विकासशील भीड़तंत्र के
तुम परिचायक हो,
इस भीड़तंत्र में
तुम हमारे अभिभावक हो
क्यों नहीं संवारते हमारा भी भाग्य
आमंत्रित क्यों नहीं करते सौभाग्य।
श्वानराज धीरे से मुस्कुराए
और फिर बुदबुदाए
भीड़तंत्र श्वान गुण का ग्राहक है
स्वामीभक्ति और दुम हिलाने का परिचायक है,
बोलने की जगह दुम हिलाना सीख लो
स्वामीभक्ति और चापलूसी से नाता जोड़ लो
तब तुम इस तंत्र में सफलतम कहलाओगे
अपनों के बीच व्यस्ततम बन जाओगे।