अश्रुत तत्क्षण

हमेशा याद आएंगी लेखिका उषा किरण

अश्रुत पूर्वा संवाद II

नई दिल्ली। विख्यात लेखिका उषा किरण खान नहीं रहीं। वे कुछ समय से अस्वस्थ थीं। उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी। उन्हें पटना के एक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। बीते रविवार 11 फरवरी को दोपहर तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 78 साल की थीं। उनके निधन की खबर मिलते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। दरभंगा जिले में उनके गांव के लोग भी शोक में डूब गए।
उषा किरण खान नए-पुराने लेखकों के बीच रहती थीं। सभी से उनका आत्मीय लगाव था। उषा किरण ने साहित्य के साथ शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया था। उन्होंने कई कालजयी रचनाएं लिखीं। उन्होंने गांवों-किसानों और स्त्रियों की दशा-दिशा पर लिखा। उनके मैथिली उपन्यास ‘भामती एक अविस्मरणीय प्रेमकथा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी सम्मान मिला था। इसके अलावा उन्हें भारत-भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्होंने कई नाटक भी लिखे। पानी की लकीर, अंगन हिंडोला, सिरजनहार, भामती, अनुत्तरित प्रश्न और सीमांत कथा उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएं हैं।
उषा किरण खान ने अपनी रचनाओं में पाठकों को घर-गांव दिखाया है। वे खुद भी कहती थीं कि जिंदगी की कहानी गांव के भीतर ही है। उषा किरण मैथिली की बड़ी लेखिका थीं, लेकिन उन्होंने हिंदी साहित्य की कुछ विधाओं पर भी काम किया। वे नारी विमर्श से कभी पीछे नहीं हटीं। स्त्रियों का मुद्दा उठाया। बिहार में कई साहित्यिक आयोजनों में अक्सर जाती थीं। वे लेखकों का मार्गदर्शन करती थीं।  
उषा किरण के पति रामचंद्र खान चर्चित आईपीएस अधिकारी थे। वे जितने आस्थावान थे, उषा जी कर्मकांडों से उतनी ही दूर रहती थीं। वे कर्म को ही पूजा मानती थीं। मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया। उन्होंने कहा कि साहित्य जगत में इस क्षति की पूर्ति नहीं हो सकती।

About the author

ashrutpurva

error: Content is protected !!