नई दिल्ली, अश्रुतपूर्वा II
सभी व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने-अपने विशिष्ट क्षेत्र में अपनी एक विशेष और न भुलाई जा सकने वाली पहचान बना ले यह संभव नहीं होता। इसी तरह भारत यायावर बन पाना भी सहज नहीं। अस्सी के दशक में ही भारत यायावर के साहित्यिक कर्म की तूती बोलने लगी थी। फणीश्वरनाथ रेणु पर लिखी इनकी पुस्तक खूब चर्चा में थी। इनका लेखन सतत चलते रहा और रेणु पर किए गए इनका काम मील का पत्थर साबित हो गया । भारत यायावर को पढ़े बिना रेणु को पूर्णतया समझ पाना कठिन है। महावीर प्रसाद द्विवेदी पर भी इनका कार्य अतुलनीय है। हिंदी साहित्य का एक कर्मठ और प्रतिबद्ध साहित्यकार भारत यायावर का देहावसान एक अपूरणीय क्षति है। हिंदी साहित्य की अनिवार्यता भारत यायावर की कृतियां बनी रहेंगी।
भारत यायावर के निम्नलिखित अंतिम दो संदेश जीवन के प्रति उनकी जिंदादिली के गवाह है:-
”मेरी तबीयत ठीक नहीं है । अभी कुछ देर पहले साँसें उखाड़ रही थीं । अभी इलाज चल रहा है ।”
दूसरे दिन अर्थात जिस दिन उन्होंने देह त्याग किया उस दिन का संदेश-
”मेरा स्वास्थ्य कल रात बिगड़ गया था इलाज से धीरे-धीरे ठीक हो रहा है । अब पहले से बेहतर महसूस कर रहा हूँ । ”
भारत यायावर का जीवन-मृत्यु पर गद्य और पद्य में कहे गए भाव श्रद्धांजलि की इस बेला में प्रासंगिक हो उठते हैं:-
तबियत भी, तबीयत भी
प्रायः बोलचाल में लोग पूछ लेते हैं, आपकी तबियत कैसी है? कोई कहता है, इन दिनों मेरी तबियत ठीक नहीं है । तबियत अर्थात् स्वास्थ्य । सेहत । दूसरे शब्दों में कहें, तन की स्थिति । लेकिन मन की स्थिति के लिए तबीयत लिखा जाता है ।
लेकिन एक शेर है :
“मेरी हिम्मत देखिए, मेरी तबीयत देखिए जो सुलझ जाती है गुत्थी, फिर से उलझाता हूँ मैं”
यहाँ तबीयत का अर्थ है मन का स्वभाव । दुष्यंत कुमार ने कहा है कि एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। यहाँ तबीयत का अर्थ है मन के पूरे सामर्थ्य के साथ ।
कुछ लोग तबीयत का रोना रोते रहते हैं, लेकिन जब तक कोई काम तबीयत से नहीं करेंगे तो उनकी पहचान कैसे बनेगी? तबीयत खराब होती है, फिर ठीक हो जाती है लेकिन तबीयत प्रायः बनती ही नहीं । जब तबीयत से यानी मन से युक्त होकर कोई मनुष्य कोई काम करता है, तब वह बेहतरीन होता है ।
जहाँ तक बन पड़े तबियत का ध्यान रखिए और अपने तबीयत को बरकरार रखिए ।
मरना
निराला ने कहा है
मरा हूँ हजार मरण !
और महसूस करता हूँ
कि मैं भी रोज़ मरता हूँ
पल-पल मरता हूँ
मरता ही रहता हूँ
कुछ लिखे पर मरता हूँ
कुछ दिखे पर मरता हूँ
किसी की बात पर मरता हूँ
किसी की जान पर मरता हूँ
किसी की मुस्कान पर मरता हूँ
जीवन मरन का ही नाम है
जो मरता है, वहीं जीता है
कोई जीते हुए मरता है
कोई मरते हुए जीता है
फिर एक दिन मिट जाता है
मिटना ही मिट्टी होना है
मिट्टी ही सत्य है
जो कभी मिटती नहीं ”
समाज के लिए, साहित्य के लिए सम्पूर्ण जीवन को हवन बना देने वाले भारत यायावर को अश्रुतपूर्वा की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।
कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि
ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति
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