अश्रुत पूर्वा II
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि साहित्य समाज की विचार-परंपरा का जीवंत वाहक है। एक समाज जितना अधिक सुसंस्कृत होगा, उसकी भाषा उतनी ही अधिक परिष्कृत होगी। समाज जितना अधिक जागृत होगा, उसका साहित्य उतना ही व्यापक होगा। देश की समृद्ध भाषाई विविधता की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे भारत की राष्ट्रीय ताकत करार दिया। वे भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से आयोजित 33वें मूर्तिदेवी पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति नायडू ने सार्वजनिक भाषणों में शालीनता का पालन करने का आह्वान किया और कहा कि लेखकों से अपेक्षा की जाती है कि वे समाज में बौद्धिक विमर्श का निर्माण करें। समारोह में विख्यात लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को उनके उत्कृष्ट कार्य ‘अस्ति और •ावति’ के लिए इस साल का मूर्तिदेवी पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रो. तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में आचार्य और अध्यक्ष पद से वर्ष 2000 में सेवानिवृत्त हुए थे। र्वे 2013 से 2017 तक साहित्य अकादेमी दिल्ली के अध्यक्ष भी रहे।
उपराष्ट्रपति ने मूर्ति देवी पुरस्कार समारोह में सुझाव दिया कि सभी को अन्य भारतीय भाषाओं में कुछ शब्द और मुहावरे सीखने चाहिए। यह देश की भाषाई और भावनात्मक एकता के लिए एक महत्त्वपूर्ण कवायद है। प्रत्येक भारतीय भाषा को एक ‘राष्ट्रीय भाषा’ बताते हुए उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया से सभी भारतीय भाषाओं और उनके साहित्य को पर्याप्त जगह देने का भी आग्रह किया।
फोटो गूगल से साभार
उपराष्ट्रपति ने इस मौके पर सुझाव दिया कि सभी को अन्य भाारतीय भाषाओं में कुछ शब्द और मुहावरे सीखने चाहिए। यह देश की भाषाई और भावनात्मक एकता के लिए एक महत्त्वपूर्ण कवायद है। प्रत्येक भारतीय भाषा को एक ‘राष्ट्रीय भाषा’ बताते हुए उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया से सभी भारतीय भाषाओं और उनके साहित्य को पर्याप्त जगह देने का भी आग्रह किया। उन्होंने ‘शब्द’ और ‘भाषा’ को मानव इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण आविष्कार बताया।
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिम्मेदारी से उपयोग करने की जरूरत पर भी जोर दिया ताकि दूसरों की आस्था या भावनाओं को ठेस न पहुंचे। नायडू ने लेखकों और विचारकों को राष्ट्र की बौद्धिक राजधानी के रूप में चित्रित किया, जो इसे अपने रचनात्मक विचारों और साहित्य से समृद्ध करते हैं। (स्रोत : एजंसी)
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