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ज्ञानपीठ से सम्मानित पुस्तकें छापेगा वाणी प्रकाशन

फोटो : साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। हिंदी का प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह वाणी प्रकाशन ज्ञानपीठ से सम्मानित हो चुकी पुस्तकें फिर से प्रकाशित करेगा। इस संबंध में प्रकाशन समूह ने ज्ञानपीठ से समझौता किया है। इस समझौते से समूह को ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुकीं प्रसिद्ध पुस्तकों के प्रकाशन के लिए अधिकार प्राप्त हो गया है। इस तरह देश के दो बड़े प्रकाशन बेहतरीन पुस्तकों को सामने लाने के लिए एक साथ आगे आए हैं।

भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना 1943 में हुई थी। इसके संस्थापक साहू शांति प्रसाद जैन रहे। बता दें कि ज्ञानपीठ से रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और लक्ष्मी चंद्र जैन जैसे अपने दौर के प्रमुख और बड़े साहित्यकार जुड़े रहे। इसका उद्देश्य ज्ञान की विलुप्त शाखााओं को सामने लाने का था। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत में सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। पहला पुरस्कार 1965 में मलयालम भाषा में जी. शंकर कुरुप को दिया गया था। वाणी प्रकाशन से करार के बाद अब बिना किसी रोक के श्रेष्ठ पुस्तकों फिर से प्रकाशित किया जा सकेगा।

इस महती जिम्मेदारी को लेते हुए वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा है कि प्रत्येक भाषा के साहित्य को वह ख्याति मिले जिसकी वह हकदार है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय ज्ञानपीठ के प्रकाशनों की जिम्मेदारी वास्तव में गहन सम्मान का विषय है। ज्ञानपीठ से गौरवशाली अतीत से जुड़ कर वाणी प्रकाशन समूह गौरवान्वित और उत्साहित है।  

भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना 1943 में हुई थी। इसके संस्थापक साहू शांति प्रसाद जैन रहे। बता दें कि ज्ञानपीठ से रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और लक्ष्मी चंद्र जैन जैसे अपने दौर के प्रमुख साहित्यकार जुड़े रहे। इसका उद्देश्य ज्ञान की विलुप्त शाखााओं को सामने लाने का था। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत में सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है।

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