स्वास्थ्य

महामारी का खौफ और जिंदगी की उम्मीदें !

फोटो : साभार गूगल

डॉ. एके अरुण II

देश में लगभग 120 करोड़ लोगों में टीकाकरण के दावे किए जा रहे हैं। सरकारी विज्ञापनों की मानें तो 100 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कोरोना संक्रमण से बचाव की खुराक यानी वैक्सीन लगवा ली है। फिर भी कोई इस महामारी से बचाव के लिए आश्वस्त नहीं है। महानगरों को छोड़ दें, तो गांवों, छोटे शहरों और आम लोगों में महामारी से बचाव के एहतियात को लेकर अब भी कोई जागरूकता नजर नहीं आ रही। शादी, त्योहार, चुनावी रैलियां और जलसे आदि में लोगों की भारी भीड़ इस बात की गवाह है, लेकिन सच तो यह है कि संकट पूर्ववत कायम है।

अभी बीते साल नवंबर में जब चिकित्सा वैज्ञानिकों ने दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना में एक नए प्रकार के कोरोना वायरस का सैम्पल देखा तो दुनिया में इस संक्रमण के तीसरी लहर की आशंका तेज हो गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वेरिएन्ट को बी.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन का नाम दिया है। चिंता की बात यह है कि दिसंबर 2021 के अंत तक कोरोना का यह स्वरूप भारत सहित 70 से ज्यादा देशों में पहुंच चुका है।

आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का निर्माण करने वाली वैज्ञानिक प्रो. डेम स्परा गिल्बर्ट ने चेतावनी दी है कि हमें कोरोना से भी ज्यादा खतरानाक महामारियों के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने इसके लिए बड़े फंड की जरूरत भी बताई। प्रो. गिलबर्ट ने कोरोना के नए स्वरूप ओमिक्रॉन के बारे में बताया कि यह वेरिएन्ट थोड़ा अलग प्रकार का है, अत: यह संभव है कि टीके से बनने वाली एन्टीबॉडी या दूसरे वेरिएन्ट के संक्रमण से बनने वाली एंटीबॉडी ओमिक्रॉन के संक्रमण को प्रभावी तरीके से नहीं रोक पाए। इसलिए जब तक कि हम इस स्वरूप के बारे में अच्छी समझ नहीं बना लेते सभी को सावधान रहने की जरूरत है।

महामारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण अहम होता है लेकिन केवल टीके की अनिवार्यता से ही महामारी की रोकथाम हो सकती है यह समझ से परे है। एक वायरल संक्रमण को रोकने के लिए उसके संक्रमण की शृंखला को तोड़ना जरूरी है। कोरोना संक्रमण में शुरू से ही देखा जा रहा है कि संक्रमण के फैलने के सभी रास्ते सहज रूप से खुले हुए हैं, केवल टीके पर जोर डाला जा रहा है। जाहिर है सरकार और कंपनियां महामारी की रोकथाम के नाम पर धंधे और मुनाफे को ज्यादा तवज्जो दे रही हैं।

कोरोना के ओमिक्रॉन स्वरूप को लेकर जो दहशत है, वह गैरवाजिब नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इससे चिंतित है। अभी तक इस स्वरूप के 30 से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं और यह म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में हुए हैं जो बेहद चिंताजनक हैं। यदि ओमिक्रॉन का बदलाव खतरनाक हुआ तो वैक्सीन के बावजूद संक्रमण की तबाही मच सकती है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से बचाव के अब तक उपलब्ध सभी टीकों की समीक्षा करनी पड़ेगी।

फोटो : साभार गूगल

कोरोना संक्रमण की विडंबना यह है कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) इस वायरस के सैकड़ों हिस्से को तो पहचान सकता है लेकिन दूसरे छह ऐसे हिस्से हैं जो संक्रमण रोकने में महत्त्वपूर्ण होते हैं और प्रोटीन में होते हैं, ये स्पाइक प्रोटीन कोशिका से वायरस को चिपकाने में मदद करते हैं। खतरा यह है कि यदि वायरस के इस नए स्वरूप के स्पाइक में बदलाव आ गया तो हमारा इम्यून सिस्टम वायरस को नहीं पहचान पाएगा और टीकाकरण के बावजूद संक्रमण का खतरा बना रहेगा।

कोरोना के ओमिक्रॉन स्वरूप को लेकर जो दहशत है, वह गैरवाजिब नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इससे चिंतित है। अभी तक इस वेरियन्ट के 30 से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं और यह म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में हुए हैं जो बेहद चिंताजनक हैं। यदि ओमिक्रॉन का बदलाव खतरनाक हुआ तो वैक्सीन के बावजूद संक्रमण की तबाही मच सकती है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से बचाव के अब तक उपलब्ध सभी टीकों की समीक्षा करनी पड़ेगी। इस स्वरूप के साथ एक दिक्कत और हो सकती है कि इसका पता लगाने के लिए सामान्य आरटीपीसीआर जांच की जगह जिनोम सिक्वेंसिंग तक का सहारा लेना पड़ सकता है।

महामारी तो एक बहाना है। बीते दो वर्षों को याद कीजिए। महामारी की आड़ में हमें किस कदर लाचार बना दिया गया। हम मूर्ख भी बने, लेकिन फिर भी अभी बहुत कुछ बाकी है। यदि हमने अपने विवेक और समझ से अब भी सबक ले लिया तो महामारी तो जाएगी ही, मूर्खता और नकारात्मक राजनीति का भी अंत हो सकता है। ध्यान रहे, महामारी भी कमजोर इम्यूनिटी वाले को ही निशाना बनाती है और कट्टरता तथा जाहिलपना भी बुद्धि-विवेक हीन लोगोंं को ही प्रभावित करती है। अपने अंदर के इंसान को जगाइए, आपकी इम्यूनिटी भी मजबूत हो जाएगी। इसी उम्मीद और उत्साह के साथ आप को नववर्ष की शुभकामनाएं।

About the author

AK Arun

डॉ. एके अरुण देश के प्रख्यात जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक और संपादक हैं। साथ ही परोपकारी चिकित्सक भी। वे स्वयंसेवी संगठन ‘हील’ के माध्यम से असहाय मरीजों का निशुल्क उपचार कर रहे हैं। डॉ. अरुण जटिल रोगों का कुशलता से उपचार करते हैं। पिछले 31 साल में उन्होंने हजारों मरीजों का उपचार किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। कोरोना काल में उन्होंने सैकड़ों मरीजों की जान बचाई है।
संप्रति- डॉ. अरुण दिल्ली होम्योपैथी बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं।

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