राधिका त्रिपाठी II
कहते हैं इनसान के जीवन में जिस रिश्ते की कमी होती है वह उसे उम्र भर तलाशता रहता है। उसकी आंखें हर आंखों में उसी प्रेम और अपनेपन को ढूंढता है जिससे वह वंचित रहता है। किसी के दो शब्द प्यार के बोलने से वह उसी का हो कर रह जाता है। जबकि उम्र जब बाल्यावस्था की हो तब तो उसे अच्छे बुरे की समझ भी नहीं होती। वह तो गीली मिट्टी का मन लिए फिरता उड़ता है कभी इस डाली, तो कभी उस डाली। कभी पूरा आसमान छानने के सपने पालता है अपनी अबोध आंखों में…!!
उस बच्ची ने खुशी से चहकते हुए कहा, अंकल मैंने सारे सवाल कर लिए हैं। मैं प्रथम आई। वे प्यार से हाथ फेरते हुए, ठीक है बेटा। ये लो एक रुपया तुम्हारा इनाम।, मन में… मैंने इतने सारे सवाल हल किए और इनाम सिर्फ एक रुपया। इन्होंने तो दस रुपया बोला था। तभी भैया बोले, क्या देख रही। इनाम की कीमत नही देखते जो मिला वो संभाल कर रख लो। उसने मुस्कुरा कर कहा, ठीक है और बूटीदार फ्रॉक में उछलते-कूदते हुए अपने कमरे में चली गई।
उम्र के ऐसे पड़ाव में जहां उसे पिता के साथ मां के आंचल की जररूत थी, वह दोनों से वंचित अपने मकान मालिक के परिवार और उनमें में ही माता-पिता का अक्स देखती। किशोरावस्था में कदम पड़ते ही वह शारीरिक बदलाव और मानसिक बदलाव से गुजर रही थी, संभालने और समझाने के लिए मां भी हर वक्त साथ न होती वह एकाकी ही इन बदलाव की गुत्थियों में उलझी हुई बालों को सुलझाती …।
अचानक ही कुछ घट गया, वह समझ पाती उसके पहले ही वह सहम गई यह क्या किया, क्यों किया, गलत किया, सही किया, बुरा लग रहा है, दर्द हो रहा, ये अंकल बहुत गंदे है। गंदे तरीके से छुआ मुझे। पापा ऐसे थोड़े होते हैं, अपनी बेटियों को तो ऐसे नहीं छूते ये, फिर ठाकुर साहब का पुलिसिया अंदाज किसी से कुछ कहना मत …।
वह सहमी, अच्छा अंकल।
कुछ दिन बाद। आंटी आज आप बहुत सुंदर लग रही हो। कहीं जा रही हैं, हां, बेटा एक लड़की की शादी में, अच्छा फिर आप खाना क्यों बना रही हैं, अंकल बेटियों की शादी में खाना नहीं खाते बस भेंट देते और चले आते हैं….। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये इतने अच्छे है और मेरे साथ ये क्या किए।
अचानक ही कुछ घट गया, वह समझ पाती उसके पहले ही वह सहम गई यह क्या किया, क्यों किया, गलत किया, सही किया, बुरा लग रहा है, दर्द हो रहा, ये अंकल बहुत गंदे है। गंदे तरीके से छुआ मुझे। पापा ऐसे थोड़े होते हैं, अपनी बेटियों को तो ऐसे नहीं छूते ये, फिर ठाकुर साहब का पुलिसिया अंदाज किसी से कुछ कहना मत …।
वह सहमी, अच्छा अंकल।
फोटो : साभार गूगल
लगभग एक साल बाद। गर्मी के मौसम में बाहर चारपाई पड़ी थी मकान मालिक की। वह अपने कमरे से निकली। गरमी बहुत होने के कारण नींद नही आ रही थी उसे। वह मां से बोली, बाहर जो चारपाई है उस पर सो जाऊं। मां ने कहा देखना कोई कुछ कहे न, अभी तो कोई है नहीं। अभी अपनें कमरे को बंद किए सो रहे कूलर चला कर। मेरे कमरे में पंखा भी नही है। वह वहीं सो गई लेकिन आधी जगी हुई थी। जैसे ही कुछ समय बीता वह अचानक उठ बैठी देखा, अंकल उसे फिर से छूने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बार वह तेजी से चरपाई से उठी और बोली, अंकल आप मेरे पापा की उम्र के हैं। आपको शर्म आनी चाहिए ऐसी हरकत करते हुए। आपकी भी दो बेटियां है ….। वह आवाक सा बोला, सो जाओ, सो जाओ। अगली सुबह उसका मुंह देखने लायक था जैसे किसी ने कालिख पोत दी हो उसके चहरे पर।
कुछ दिन बाद वह और उसकी मां वहां से कमरा खाली कर दूसरे स्थान पर रहने लग।े लेकिन वह समय उसे लड़ना और आत्मरक्षा करना सीखा गया अब भीड़, या फिर बस, आटो या सड़क पर वह हमेशा तैयार रहती अपने साथ दूसरों की भी रक्षा करने के लिए…। जरूरत है चुप न रहें। पलट कर दें आवाज। जवाब दें। कुछ न कर सकें, तो शोर मचाएं। सब को बताएं कि यह यह इंसानों के बीच में गिद्ध पल रहा जो नरम मुलायम गोश्त को नोचने की जुगत लगाए बैठा है और मौका मिलते ही झपट पड़ेगा…!!
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