राधिका त्रिपाठी II
गले लगना या गले लगा लेना, दोनों ही कितना सुकून से भर देता है। दोनों को अमीम खुशी मिलती है इसमें। यानी जो गले लगता है और जो लगा लेता है। कहते हैं न जादू की झप्पी कभी-कभी दवा का काम करती है। कभी हौसला बढ़ा देती है, तो कभी ठहरे हुए कदम को ताकत दे देती है।
…उस दिन उसके आगे बढ़ते हुए कदम अचानक थमगए, जब पीछे से हाथ पकड़ कर उसने अपने गले से लगा लिया। उस पल लगा कि समय बस यहीं ठहर जाए। वह बार-बार उंगलियों से उसका चेहरा ऊपर करने की कोशिश करता रहा। वह कहता रहा, तुम चेहरा तो ऊपर करो। लेकिन वो उसके सीने से एक बच्ची की तरह लग कर सुबक पड़ी। कुछ बाद देर में उसने खुद को संभाल लिया और अलग कर लिया खुद को।
…जाते हुए उसने आखिरी बार पीछे पलट कर देखा। मानो कहना चाह रही हो कि ये होना नहीं चाहिए था। लेकिन जो हुआ सो हुआ, तुम आगे बढ़ो खुश रहो। और वह तेजी से कमरे के बाहर सड़क पर निकल गई। तभी सामने से आ रही तेज रफ्तार कार से टकरा जाती है। काफी भीड़ जमा हो गई। किसी ने उसका फोन उठाया और आखिरी कॉल देख कर उसी नंबर पर डायल कर दिया। उधर से हेलो की आवाज आते ही उसे बताया कि एक लड़की का एक्सीडेंट हो गया है। सर आपका नंबर डायल था तो मिला दिया। यह कोई रिलेटिव हैं आपकी। आप इसे जल्दी से अस्पताल पहुंचाइए नहीं, तो बहुत देर हो जाएगी।
जब तक वह पहुंचा, तब तक सच में बहुत देर हो चुकी थी। वह निष्प्राण हो चुकी थी। हमेशा हंसती-मुस्कुराती प्यारी सी वो लड़की अब सड़क पर खामोश पड़ी थी। तभी भीड़ में एक सज्जन निकल कर आए और बोले, भाई साहब बॉडी को सड़क किनारे लिटा देते हैं। नहीं तो जाम लग जाएगा। बॉडी शब्द सुन कर वह सकते में आ गया। एक चुलबुली सी लड़की अब मृत शरीर यानी बॉडी हो गई थी। वह लड़की जो कुछ देर पहले तक तितली सी उड़ती दिखाई देती थी। अब दो लोग उठा कर भी नहीं, लगभग घसीट कर सड़क किनारे लिटा देते हैं। जिसकी नाक पर कभी मक्खी भी नहीं बैठती थी आज उसके चेहरे पर भिनभिना रही है।
कहते हैं वक्त सब भुला देता है और सब ठीक हो जाता है। लेकिन कुछ तो है जो कभी नहीं भूलता। कभी ठीक नहीं होता। आज वह दो बच्चों का पिता है। अपनी बेटी का नाम भी उसने वही रखा जो नाम उसे पसंद था। काशी अच्छा नाम है न? उसने पूछाा था। हां बहुत अच्छा है। तुम्हें यह नाम क्यों पसंद है? …अरे यार, इसलिए कि शिव ने यह नगरी स्वयं ही बसाई है। और यह नगरी मुक्ति भी देती है। इसलिए पसंद है मुझे यह नाम। ठीक है हम दोनों की बेटी हुई तो पक्का यही नाम रखेंगे। हम दोनों की नहीं, तुम्हारी बेटी हुई तो भी रखना। अरे ये क्या बोल रही हो?
उसने कहा था, इसलिए बोल रही कि कभी हम अलग हो गए, कोई हादसा हो गया तो भी जीवन में आगे तो बढ़ना है। जीवन तो कभी रुकेगा नहीं। और हां बेटी का नाम तुम यही रखना। तुम्हें मेरी कसम है। हवा में हाथ लहराते हुए वह बाय-बाय बोलते हुए कब हवा हो गई, पता नहीं चला और वो उसे देखता रह गया। जब कभी वह साथ होती तो ऐसी अनगिनत बातें करती। मानो उसे आने वाले समय से अवगत करा रही हो।
वह अकसर कहती, श्रीमान हर रिश्ते की एक उम्र होती है। जिस दिन से वह रिश्ता शुरू होता है उसी दिन से उसकी उम्र घटने लगती और एक दिन उस रिश्ते की उम्र पूरी हो जाती है। रिश्ते की उम्र पूरी होने और रिश्ते का बीच में दम तोड़ देने में ज्यादा फर्क नहीं होता है। जब कोई रिश्ता अपनी उम्र पूरी कर लेता है तो वह जन्म देता है एक नए रिश्ते को। और जब कोई रिश्ता दम तोड देता है तब भी नए रास्ते को जन्म देता है। … मैं तो अपने इस रिश्ते की पूरी उम्र जियूंगी। और जन्म दूंगी एक नए रिश्ते को उसका नाम काशी होगा। और वह यह कह कर खिलखिला देती।
जब तक वह साथ थी, तब तक यह सब बातें मेरी समझ से बाहर थी। सब दार्शनिक लगीं। आज वह नए रिश्ते में मुझे बांध कर खुद तितली सी उड़ गई। अब अपने पंखों के रंगों से मेरे जीवन में रंग भर रही है। तभी वहां आई नन्ही काशी तुतला कर बोली, पापा…। मेरा ध्यान उसकी तरफ गया। उसे उठा कर मैंने गले से लगा लिया। ऐसे ही एक दिन वो गले मिली थी। फिर वह कभी नहीं मिली। एहसास होता है कि सच में वह काशी के रूप में मुक्ति देने आई है..।
…जाते हुए उसने आखिरी बार पीछे पलट कर देखा। मानो कहना चाह रही हो कि ये होना नहीं चाहिए था। लेकिन जो हुआ सो हुआ, तुम आगे बढ़ो खुश रहो। और वह तेजी से कमरे के बाहर सड़क पर निकल गई। तभी सामने से आ रही तेज रफ्तार कार से टकरा जाती है।