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बीटिंग रिट्रीट से हटाया गया स्काटलैंड के कवि हेनरी का गीत

सभी फोटो : साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा II

नई दिल्ली। स्कॉटलैंड के चर्चित कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट का लिखा एक स्तुति गीत ‘अबाइड विद मी’ को ‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह से हटा दिया गया है। यह महात्मा गांधी के पसंदीदा गीतों में से एक था जिसकी धुन 1950 से बीटिंग रिटीट्र समारोह में सुनाई दे रही थी। समारोह के अंत में यह धुन बजाई जाती थी। बताया गया है कि इस बार समारोह के आखिर में ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन बजाई जाएगी।  

महात्मा गांधी को ‘अबाइड विद मी’ की धुन बेहद पसंद थी। अब इस धुन को इस साल 29 जनवरी को होने वाले बीटिंग रिट्रीट समारोह के समापन वाले दिन लोग नहीं सुन पाएंगे। स्कॉटलैंड के कवि हेनरी ने 1847 में गीत अबाइड विद मी लिखा था। यह 1950 से बीटिंग रिट्रीट समारोह का हिस्सा रहा। इसी धुन के साथ समारोह का समापन होता था। नौसेना का बैंड दस्ता इसे बजाता था। बता दें कि 2020 में भी इसे हटाया गया था। मगर विवाद होने पर दोबारा शामिल कर लिया गया था।

अब बीटिंग रिट्रीट समारोह के लिए 26 धुनों की सूची बनाई गई है। ये इस साल के विजय चौक पर होने वाले समारोह में सुनाई पड़ेंगे। इस बार जो 26 धुनें बजाई जाएंगी उनमें हे कांचा, चन्ना बिलौरी, जय जन्म भूमि, नृत्य सरिता, विजय जोश, केसरिया बन्ना, वीर सियाचिन, हाथरोई, विजय घोष, लड़ाकू, स्वदेशी, अमर चट्टान, गोल्डन एरोज और स्वर्ण जयंती शामिल हैं। भारतीय सेना ने इन धुनों का ब्योरा 23 जनवरी को जारी किया।

एक जून 1793 को जन्मे स्कॉटिश कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में गीत अबाउट विद मी लिखा था। इसकी धुन प्रथम विश्व युद्ध में प्रसिद्ध हो गई। बेल्जियम से फरार हुए ब्रिटिश सैनिकों की मदद करने वाली ब्रितानी नर्स इडिथ कैवेल ने जर्मन सैनिकों के हाथों मरने से पहले इस गीत को गाया था। विख्यात कवि अल्फ्रेड टेनिसन ने हेनरी की इस बहुचर्चित रचना को अंग्रेजी भाषा की बेहतरीन कविताओं में से एक माना है।

तस्वीर : ब्रितानी नर्स इडिथ कैवेल  

दरअसल, बीटिंग रिट्रीट सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है। यह परंपरा उस समय से चली आ रही है जब सूर्यास्त के समय सैनिक युद्ध से अलग हो जाते थे। मगर बिगुल की धुन बजने के साथ वे लड़ना बंद कर अपने हथियार समेटते हुए युद्ध के मैदान से लौट आते थे।

कवि हेनरी का लिखा स्तुति गीत पूरी दुनिया में मशहूर है। भारत में इस धुन को लोगों ने तब जाना जब महात्मा गांधी ने इसे कई जगह बजवाया। उन्होंने इस धुन को सबसे पहले साबरमती आश्रम में सुना था। तब वहां इसे मैसूर पैलेस बैंड बजा रहा था। बाद में आश्रम की भजनावली में रघुपति राघव राजाराम, लीड काइंडली लाइट और वैष्णव जन के साथ इसे भी शामिल कर लिया गया।

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