अनुज कुमार II
कोलाहल
कोलाहल मन में हो,
या हो जल में,
न छेड़ो,
कुछ समय दे दो,
जल में तल दिखेगा तब,
मन को कल दिखेगा तब,
मन बहने दो,
बहे जस जल।।
आत्महत्या बड़ी समस्या
कर लेते हैं कई आत्महत्या
अपने जीवन से ही कुढ़ कर
अपनी खामियों का हल न पा कर
कोसते रहते हैं खुद को जीवन भर
भ्रम पाल लेते वो मन में
हल इसका बस खुद की हत्या है
पर जाते ही दुनियाँ से उनके
कितनी मालाएं टूट बिखर जाती हैं
कुछ मोती एक दूसरे के सहारे
ठहर जाते हैं किसी कोने को पकड़ कर
पर कई चूर हो जाते हैं गिर कर
और कुछ तो खो जाते हैं उसी पल
बेगाना कर वो अपने प्रिय बंधु को
छोड़ जातें हैं रोते रहने को
कसक बस दिल में सबकी रह जाती
अपना समझ कर कुछ बताया तो होता |
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