पुस्तक समीक्षा

राधामोहन चौबे ‘ अंजन ‘ की कविता का आलोक

ज्योतिष जोशी II

श्री राधामोहन चौबे ‘ अंजन ‘ ( जन्म स्थान- अमहीं बांके, कटेया, गोपालगंज, बिहार। जन्म – 4 दिसम्बर, 1938, निधन-15 जनवरी, 2015) भोजपुरी की आधुनिक और समकालीन कविता की मूर्धन्य उपस्थिति रहे। उन्होंने विपुल लेखन किया और कविता को अनेक रूपाकारों में साधा। एक समय करोड़ों भोजपुरीभाषियों की आकांक्षाओं और संघर्षों को स्वर देनेवाले अंजन असाधारण लोकप्रियता के शिखर पर रहे। उन्होंने भोजपुरी और हिंदी में 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनकी भोजपुरी पुस्तकों में – कजरौटा, फुहार,ओहार, संझवत,पनका,सनेस, कनखी, नवचा नेह, अंजुरी,मन सायन, पोटली,हिलोर जैसे बेहद महत्वपूर्ण कविता और गीत संकलन हैं। उन्होंने दियरी बाती नामक कहानी संकलन,अतवरिया नामक उपन्यास, खोंता जैसा प्रबंध तो लिखा ही, हिंदी में गुच्छे अंगूर के, धुंध छा गयी ( गीत संकलन), आहत क्षण ( हिंदी काव्य) तथा देवी भागवत का हिन्दी पद्यमय अनुवाद भी प्रकाशित कराया।

भोजपुरी कविता में अपने अप्रतिम गीतों और मुक्तकों से अपार लोकप्रियता पानेवाले कविवर अंजन के अनेक गीत भोजपुरी जीवन-संस्कार का हिस्सा हो गए। उन्हीं गीतों में एक है- भाई के दुलार। उसकी आरंभिक पंक्तियां हैं-

जब जब याद आयी भाई के दुलार तहरा,
तब तब काटे धाई अंगना दुआर तहरा।।

मइया कोरा में खेलवली, जहिया झोरा में झुलवली,
अंगना एके एक दुअरिया, घर के एके एक डगरिया,
सपना बाबूजी के एक, हमरे बबुआ होइहें नेक,
सपना केतने .फूलइले एके डार तहरा।
जब जब याद आयी भाई के दुलार तहरा।।

यह गीत भाइयों के बीच बंटवारे की वेदना को व्यक्त करता है जिसे कमअक्ल भाई के मुंह से कहलवाया गया है, पर चतुर भाई इन तर्कों को नहीं मानता।

इसी तरह लोकलाज जैसी कविता में वर्तमान की अनैतिक स्थिति पर कटाक्ष करते हुए कवि अंजन लिखते हैं-

लोकलाज के लकवा मरलसि, मिरगी धरम करम के,
रँगदारन के पौ बारह बा, चलती गोली बम के।
भमल भूलइया के भाषण बा, मतलब के बा नारा,
देश घातकी बोल रहल बा,भारतवर्ष हमारा।

उनका एक प्रसिद्ध भोजपुरी गीत जवान सुगना है, जो उनके संग्रह ‘ संझवत ‘ में संकलित है। इस गीत में देश की सीमा पर डटे हुए जवान को उसकी बूढ़ी मां कुछ सामान उसके एक सैनिक मित्र के हाथ भेजती है और सन्देश देती है कि उसे करोड़ों माताओं की रक्षा करनी है। गीत देखिए-

बाबू ले ले जइह हमरो सामान हो, कि पूछिहें जवान सुगना।
पानी में पनडुब्बी चढि़के करे सिंधु रखवारी,
रक्षा खातिर लागल होइहें , ले बनुखि तैयारी,
उपर गरजत होई नेटवा विमान हो-कि पूछिहें जवान सुगना।।

अंजन की कविता के नाना रंग हैं जिसमें भोजपुरी कविता का अंग अंग खिल उठता है। सामाजिक विषमता, समाज में व्याप्त कुमार्ग, देश की दुर्व्यवस्था और ग्राम्य समाज में नष्ट हो रहे भाईचारे के साथ-साथ कवि अंजन ने प्रकृति और देह सौंदर्य को जिस तरह से आंका है, वह दर्शनीय है। भोजपुरी जगत में लोकप्रिय यह बंद देखिए-

रउवा ताकबि त केना मरि जाई,
बाटे जादू शरीर उखरि जाई,
अब हीं खोलीं मत जुड़ा, रहे दीं,
ना त नागिन के नांव बिसरि जाई।
बिना काजर जे काटे करेजा,
रचबि काजर त गांव जरि जाई,
पांव धीरे से राखीं, उठाईं,
ना त बगिया के फूल बिखरि जाई।
तनिका घूंघट उठा के त देखीं,
मिले चन्दा, जमीन उतर जाई,
बिना बाते के लोग बाटे पागल,
बात कइनीं जवार हहरि जाई।।

कवि अंजन के अमर गीतों में ‘ बेटी के विदाई ‘ और ‘ हमार जिनगी ‘ का महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों गीतों में कवि अंजन ने करुणा को जिस तन्मयता से विन्यस्त किया है, वह अप्रतिम है। पहले गीत का एक बंद देखिए-

बेटी भोरे भोरे जब ससुरार जइहें,
सबके अँखियाँ में अंसुआ निहार जइहें।
छतिया पीटे लागल मइया, सिसके भीतर भीतर भइया,
रोवें बाबू बारम्बार, रोवे अंगना दुआर,
सखियां भेंटें अँकवार, छूटल नान्हें के दुलार,
अब त डोलियो पर तानि के ओहार जइहें।
बेटी भोरे भोरे जब ससुरारि जइहें।।

दूसरा गीत बचपन में मां के गुजरने के बाद बच्चे की वेदना की अभिव्यक्ति के रूप में आता है-

भरल कंटवा में बाड़ी हमार जिनिगी,
कहिया जाने विधना करिहें किनार जिनिगी।
जहिया काकी गरियावे,बढ़नी ले के मारे धावे,
बोले लवना लगाइबि, तोहके बारी में पेठाइबि,
सुनि सुनि सोची अपने मनवाँ, लिखले बाड़े का बिधनवां
जरते जरते में हो गइल ई छार जिनिगी,
भरल कंटवा में बाड़ी हमार जिनिगी।।

अपनी भाषा की चित्रमयता, लाक्षणिकता, वस्तु के अनुरूप संवेदना तथा लोक जीवन के व्यवहार और प्रक्रिया को उसकी समूची संभावनाओं में व्यक्त करनेवाले कविवर अंजन बड़े कवि थे। उनको याद करना एक पूरे भाषा समाज को समझने जैसा है जिसके होने से हिंदी को भी आश्वस्ति है।

यह सुखद है कि उनके पुत्र कवि श्री भावेश अंजन ने उनकी रचनाओं को सामने लाने का स्तुत्य प्रयत्न किया है। जाहिर है, यह टिप्पणी उसी पर आधारित है।

About the author

ज्योतिष जोशी

साहित्य, कला, संस्कृति के सर्वमान्य आलोचक के रूप में
प्रतिष्ठित ज्योतिष जोशी ने आलोचना को कई स्तरों पर
समृद्ध किया है।
इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं-सम्यक्, जैनेन्द्र संचयिता, विधा
की उपलब्धि : त्यागपत्र, आर्टिस्ट डायरेक्टरी, कला विचार,
कला परम्परा, कला पद्धति, प्रतीक-आत्मक (दो खण्ड),
(सम्पादन), जैनेन्द्र और नैतिकता, आलोचना की छवियाँ,
उपन्यास की समकालीनता, पुरखों का पक्ष, संस्कृति विचार,
साहित्यिक पत्रकारिता, विमर्श और विवेचना, भारतीय कला
के हस्ताक्षर, आधुनिक भारतीय कला के मूर्धन्य, आधुनिक
भारतीय कला, रूपंकर, कृति आकृति, रंग विमर्श, नेमिचन्द्र
जैन (आलोचना), सोनबरसा (उपन्यास) तथा यह शमशेर
का अर्थ |
कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित

हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव रह चुके श्री जोशी इन
दिनों केन्द्रीय ललित कला अकादमी (संस्कृति मन्त्रालय,
भारत सरकार) में हिन्दी सम्पादक हैं।

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