समीक्षा

भ्रमित युवाओं को दिशा देती एक किताब

फोटो : साभार गूगल

 देवेश भारतवासी II

संपूर्ण विश्व आज भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। इस उम्मीद का सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत युवाओं का देश है। जिस भी देश में युवाओं की जनसंख्या अधिक होती है, उस देश में विकास की रफ्तार बढ़ जाती है। युवाओं की वजह से देश जवान रहता है और ऊर्जा से लबरेज। आचार्य प्रशांत द्वारा लिखी यह किताब भारत के युवाओं की उन समस्याओं पर बात करती है जिन पर सामान्यत: बात न के बराबर होती है।

आचार्य प्रशांत युवाओं के मार्गदर्शक हैं। गुरु हैं। उनकी पढ़ाई आइआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों से हुई है। वे एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी हैं। उन्होंने इस किताब के माध्यम से युवाओं को एक सहारा देने का प्रयास किया है, उन युवाओं को सही मार्ग सुझाया हैं जो इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर के शिकार हो रहे हैं।

भारत के युवा पढ़ाई, परिवार, समाज, करिअर, प्रेम आदि मुद्दों को लेकर अक्सर परेशान रहते हैं। इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण वे भ्रमित हो जाते हैं। एक भ्रमित युवा देश को विकास की ओर कैसे ले जा सकेगा। प्रशांत जी ने इस किताब के माध्यम से तमाम पहलुओं पर बात की है जिससे युवा अपने भटकाव को खत्म कर सकेंगे।

 इस किताब में कुल 30 अध्याय हैं। सभी अध्याय युवाओं से संबंधित है। खास तौर पर युवाओं की पढ़ाई और करिअर से संबंधित हैं। मसलन, मैं किसी भी नियम पर चल क्यों नहीं पाता? एकाग्रता क्यों नहीं बनती? पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगता। कॉलेज की शिक्षा ज्यादा जरूरी है या आध्यात्मिक शिक्षा। इन सब चर्चा की गई है। पूरी किताब ऐसी है जो शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखती है। किताब की सबसे खास बात यह है कि प्रशांत जी ने हरेक विषय पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जवाब दिए हैं। जटिल से जटिल विषयों को समझाने के लिए उन्होंने कहानियों का भी सहारा लिया है। भाषा सहज होने के कारण यह किताब और पठनीय बन गई है।

  • भारत के युवा पढ़ाई, परिवार, समाज, करिअर, प्रेम आदि मुद्दों को लेकर अक्सर परेशान रहते हैं। इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण वे भ्रमित हो जाते हैं। एक भ्रमित युवा देश को विकास की ओर कैसे ले जा सकेगा। प्रशांत जी ने इस किताब के माध्यम से तमाम पहलुओं पर बात की है जिससे युवा अपने भटकाव को खत्म कर सकेंगे।

सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस किताब को किसे और क्यों पढ़ना चाहिए? मेरा विचार यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल तक एक विद्यार्थी रहता है। उसकी सबसे बड़ी पहचान उसके अध्येता होने की ही है। हम हर दिन कुछ नया सीखते-पढ़ते और जानते हैं। विकास की इस सतत यात्रा में अक्सर हम खुद को कमजोर या कभाी-कभी हारा हुआ भी महसूस करते हैं। यह किताब वापस से ऊर्जा भरने और मनोबल बढ़ाने में सहायक हो सकती है। इस किताब के माध्यम से हम वह जान सकेंगे जो अब तक शायद हम नहीं जान सके।

हम कोई भी काम करते हैं तो उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है। फिर पढ़ाई क्यों कर रहे हैं? क्या जीवन का उद्देश्य बस नौकरी पाना, शादी करना और बच्चे पैदा करना है? क्या इससे आगे भी कुछ है? अगर आपको जानना है कि इसके आगे भी क्या है, तो यह किताब आपके लिए रामबाण साबित हो सकती है।

एक ऐसा लेखक जिसने देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई की हो और सिविल सेवा अधिकारी के रूप में काम किया हो उनके अनुभव क्या हैं, देश के युवाओं को लेकर यह भी आप इस किताब के माध्यम से जान सकते हैं। यह किताब आप अमेजन से 300 रुपए में खरीद सकते हैं।

About the author

देवेश भारतवासी

युवा लेखक देवेश भारतवासी मूल रूप से कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले हैं। स्कूल तक की पढ़ाई गोरखपुर से और स्नातक स्तर की पढ़ाई नेशनल पीजी कॉलेज (लखनऊ विश्वविद्यालय) से हुई है। वर्तमान में देवेश भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी ) से हिंदी पत्रकारिता का अध्ययन कर रहे हैं। वे पढ़ाई के साथ-साथ समाचारपत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखते हैं। तमाम डिजिटल मंचों के लिए कंटेंट भी तैयार करते हैं। किताबों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध और समसामयिक विषयों पर लिखना उन्हें पसंद है। कभी-कभार कविता लिख लेते हैं। मंचों पर काव्य पाठ भी कर लेते हैं।

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